tag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post1791228145201142687..comments2023-10-14T03:27:45.029-05:00Comments on अनिल का हिंदी ब्लाग: अबे पत्रकार, यहाँ देखAnil Kumarhttp://www.blogger.com/profile/06680189239008360541noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-17164309957552875642019-05-31T00:46:37.087-05:002019-05-31T00:46:37.087-05:00National Parks in Hindi
PCB in Hindi
Battery Charg...<a href="https://www.gkkhoj.com/national-parks-in-india-hindi" rel="nofollow">National Parks in Hindi</a><br /><a href="https://www.gkkhoj.com/pcb-hindi" rel="nofollow">PCB in Hindi</a><br /><a href="https://www.gkkhoj.com/battery-charger-hindi" rel="nofollow">Battery Charger in Hindi</a><br /><a href="https://www.gkkhoj.com/inventions-that-changed-the-world-hindi" rel="nofollow">Inventions That Changed the World in Hindi</a><br /><a href="https://www.gkkhoj.com/ngo-hindi" rel="nofollow">NGO in Hindi</a><br /><a href="https://www.gkkhoj.com/metals-hindi" rel="nofollow">Metal in Hindi</a>Paise Ka Gyanhttps://www.blogger.com/profile/15340577986204047274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-15596923720910179382009-04-07T05:18:00.000-05:002009-04-07T05:18:00.000-05:00सही राय रखी है आपने, किन्तु यह परिपक्वता आने में स...सही राय रखी है आपने, किन्तु यह परिपक्वता आने में समय लगेगा यहाँ.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-64759858524332486132009-04-07T04:19:00.000-05:002009-04-07T04:19:00.000-05:00मैं तो कहता हूं भारत में खबरिया चैनल हैं ही नहीं, ...मैं तो कहता हूं भारत में खबरिया चैनल हैं ही नहीं, सब विज्ञापनी चैनल हैं। पांच मिनट "खबर" दिखाते हैं और 15 मिनट फूहड़ विज्ञापन।<BR/><BR/>लेकिन लोगों को टीवी से अलग करना आसान नहीं है। टीवी की एक सम्मोहनी शक्ति है जो लोगों को लत सी लगा देती है।<BR/><BR/>इतने सारे चैनल आ जाने से दर्शक के हाथ में विकल्प तो आ गया है, पर हर चैनल एक-दूसरे के क्लोन जैसे हो गए हैं। फिर भी रिमोट हमारे हाथ में झांसी की रानी की तलवार के समान है। मैं रिमोट लेकर ही टीवी के सामने जमता हूं। जैसे ही कोई अप्रिय विज्ञापन या खबर नजर आए, तुरंत अपनी तलवार चला देता हूं। पर घंटे-दो-घंटे टीवी के सामने बैठकर भी संतोष नहीं होता कि कुछ उपयोगी चीज देखी-सुनी है।<BR/><BR/>शायद पेइड टीवी चैनल आने लगें, तो मामला सुधरे, पर लगता नहीं कि भारत के मुफ्तखोरी की आदत वाले लोग पेइड चैनल को सफल होने देंगे। हम तो सब कुछ सस्ते में प्राप्त करने में विश्वास करते हैं, चाहे वह सोफ्टवेयर हो या किताबें।<BR/><BR/>कहां विक्रम साराभाई जैसे महान वैज्ञानिकों को उपग्रह और टीवी से आशाएं थीं कि ये देश को अशिक्षा और अज्ञान से उद्धार करेंगे, और कहां आजकल के चैनल और उनके कार्यक्रम।<BR/><BR/>अब तो ऐसा लगने लगा है कि अपना पूराना दूरदर्शन इन चैनलों से कहीं बेहतर है, कम से कम उसमें साहित्य, पुस्तकें, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, शिक्षण आदि प्रासंगिक विषयों की चर्चा तो होती है, जैसे मृणाल पांडे का साहित्यकारों का इंटरव्यू (कार्यक्रम का नाम याद नहीं आ रहा)। ऐसे कार्यक्रम क्या किसी कमर्शियल चैनल में कभी दिखाए जा सकते हैं?<BR/><BR/>विचारशील लोगों को अखबार और टीवी को नमस्कार करके पुस्तकों का आश्रय लेना चाहिए, जहां अब भी लेखक ईमानदारी से और निर्भीकता से अपनी विचार रख सकता है। पर वहां भी प्रकाशकों के खस्ता हाल के कारण हर किताब छप नहीं पाती, और छप भी जाती है, तो लाइब्रेरियों की अलमारियों की शोभा बढ़ाती है, वास्तविक पाठकों के हाथों में नहीं पहुंच पाती।<BR/><BR/>स्थिति हर तरह से निराशाजनक लगती है, पर हमें अपनी वैचारिक स्वतंत्रता के लिए लड़ना जरूर चाहिए।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-2929585041961919562009-04-07T02:46:00.000-05:002009-04-07T02:46:00.000-05:00पत्रकारिता का स्तर कुछ दशक पहले इतना गिरा हुआ नहीं...पत्रकारिता का स्तर कुछ दशक पहले इतना गिरा हुआ नहीं था। हाल ही में कुछ ज्यादा गिरावट आयी है। जहाँ दुनिया आगे जा रही है, वहीं हमारी पत्रकारिता पीछे फिसलती जा रही है। पड़ोसनों के झगड़ों और बंदर-भालू के नाच भी देख चुका हूँ खबरी चैनलों पर।<BR/><BR/>दुर्गाप्रसाद जी की टिप्पणी ध्यान देने लायक है। हमें चाहिये कि बेकार की खबरें पढ़ने-सुनने की बजाय उसका सार्वजनिक विरोध करें, फिर चाहे वह पड़ोस की बैठक में हो या अंतर्जालीय चिट्ठों पर। जब लोग सुनेंगे ही नहीं तो ऐसी खबरें अपने आप चलनी बंद हो जायेंगी।<BR/><BR/>श्रीमति अजित गुप्ता जी की टिप्पणी भी वाजिब है। मेरा एक मित्र पत्रकार है, जो असली खबरें दिखाना चाहता है। लेकिन संपादक है कि टी आर पी के चक्कर में चैनल का स्तर पाताल तक गिराने को आमादा है। नौकरी बचाने की फिराक में बेचारे मित्र को खबरों के नाम पर जाने क्या-क्या परोसना पड़ता है!<BR/><BR/>बेनामी जी, प्रशंसा के लिये धन्यवाद। आप यह प्रश्न लिये बहुत दिनों से फिर रहे हो, सैकड़ों सज्जनों से पूछ चुके हो। सोचा कि आज आपको उत्तर दे ही दूँ। दरअसल मैं <A HREF="http://www.apple.com/mac/" REL="nofollow">"मैक" कंप्यूटर</A> इस्तेमाल करता हूँ जिसमें सभी भारतीय भाषाओं को लिखना बहुत ही सरल है - किसी "टूल" की आवश्यकता नहीं। क्विलपैड को फिर कभी देखेंगे। फिलहाल राम राम!Anil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/06680189239008360541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-49377586617439425972009-04-07T02:41:00.000-05:002009-04-07T02:41:00.000-05:00सही कहा आपने।मीडिया पश्चिम का अनुसरण तो करता है ले...सही कहा आपने।मीडिया पश्चिम का अनुसरण तो करता है लेकिन सिर्फ़ गलत बातों का अच्छी बात का अनुसरण करना तो शायद हमने सीखा ही नही।सहमत हू आपसे शत-प्रतिशत,बावज़ूद इस्के कि मै भी एक पत्रकार हूं।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-30023145162675256732009-04-07T01:57:00.000-05:002009-04-07T01:57:00.000-05:00अच्छी लेखनी हे..../ पड़कर बहुत खुशी हुई.../ आप कौन...अच्छी लेखनी हे..../ पड़कर बहुत खुशी हुई.../ आप कौनसी हिन्दी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे..? मे रीसेंट्ली यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा था तो मूज़े मिला.... " क्विलपॅड " / ये बहुत आसान हे और यूज़र फ्रेंड्ली भी हे / इसमे तो 9 भारतीया भाषा हे और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप भी " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...?<BR/>www.quillpad.inAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-22668804687190046352009-04-07T00:58:00.000-05:002009-04-07T00:58:00.000-05:00अभी तो मीडिया बिकी दुकानों की तरह है. पश्चिम के मा...अभी तो मीडिया बिकी दुकानों की तरह है. पश्चिम के मापदंड का और कोन अनुसरण कर रहा है? राजनेता,नीतिकार, अफसर, पुलिस? फिर मीडिया से काहे का गुस्सा!not neededhttps://www.blogger.com/profile/17780210127869685473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-79135161836901241122009-04-07T00:51:00.000-05:002009-04-07T00:51:00.000-05:00दर्पण में यदि पत्रकार अपना चेहरा देखेंगे तो वहाँ म...दर्पण में यदि पत्रकार अपना चेहरा देखेंगे तो वहाँ मानवता को निगलता हुआ एक राक्षस दिखायी देगा। यह भी सत्य है कि सारे ही पत्रकार दूषित नहीं हैं लेकिन वे सब बेचारे हैं। कुछ मुठ्ठी भर लोगों का गिरोह है जो देश की अच्छाई को निगल जाना चाहता है। वे अपने आपको इस देश का नागरिक नहीं मानते अपितु खुदा मानने लगे हैं। अब एक क्रांन्ति की आवश्यकता है इनके विरोध में। तभी यह देश बच पाएगा।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-79304206391485028532009-04-07T00:40:00.000-05:002009-04-07T00:40:00.000-05:00निष्पक्ष पत्रकारिता फले फूले, इसके लिए जितनी अपेक्...निष्पक्ष पत्रकारिता फले फूले, इसके लिए जितनी अपेक्षाएं हमें पत्रकारों से करनी होगी उससे कहीं ज़्यादा खुद से भी करनी होगी. घटिया पत्रकारिता को प्रश्रय तो हमीं देते हैं. कभी अनुचित का प्रतिरोध हम नहीं करते. इसीलिए यह सब फलता-फूलता है.डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04367258649357240171noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-5551823917561425122009-04-07T00:25:00.000-05:002009-04-07T00:25:00.000-05:00निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए अभी लंबा इंतजार करना ह...निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा हमें।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-64057340795653557032009-04-07T00:23:00.000-05:002009-04-07T00:23:00.000-05:00हम भी सहमत हैं .हम भी सहमत हैं .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-55869008432249433372009-04-07T00:12:00.000-05:002009-04-07T00:12:00.000-05:00अभी हम उस स्तर से बहुत पीछे हैं।अभी हम उस स्तर से बहुत पीछे हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com