tag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post6905892583286449109..comments2023-10-14T03:27:45.029-05:00Comments on अनिल का हिंदी ब्लाग: वाह रे गोरी चमडी, तेरा जवाब नहीं!Anil Kumarhttp://www.blogger.com/profile/06680189239008360541noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-8184333044461338912009-05-04T10:34:00.000-05:002009-05-04T10:34:00.000-05:00व्यापार में हम भी कहां पिछे थे। मुगलों के जमाने मे...व्यापार में हम भी कहां पिछे थे। मुगलों के जमाने में हमें यों ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था।<br /><br />कहते हैं जहांगीर के दरबार में जब पहले-पहले अंग्रेज व्यापारी पहुंचे, उनके पास ऐसा कोई सामान था ही नहीं जो बादशाह के लायक हो।<br /><br />अकबर स्वयं व्यापार करते थे, और बंदूक, घोड़े आदि के व्यापार में उनका इजारा था। मुगलों की बेगमें भी व्यापार में मंजी हुई थीं।<br /><br />अंग्रेजों ने यहां आकर इस परंपरा को नष्ट करने की भरसक प्रयास किया, पर पूरी तरह सफल नहीं हुए।<br /><br />मारवाड़ी, पटेल, चेट्टियार, जैन आदि व्यापारी कौमें अंग्रेजों के समय भी खूब फले-फूले।<br /><br />आजादी के बाद उनकी जमात में और लोगों को भी जुड़ने का मौका मिला। इसी तरह हमारे इन्फोसिस, रिलाएन्स, सत्यम आदि बने।<br /><br />पैसे के पीछे भागने को हम हिकारत की दृष्टि से देखते हैं। पर यदि इसे ईमानदारी से किया जाए तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-92131063890753411962009-04-05T04:23:00.000-05:002009-04-05T04:23:00.000-05:00विदेशी जो कर रहे हैं उसे हम लोग ही तो बढ़ावा देते ह...विदेशी जो कर रहे हैं उसे हम लोग ही तो बढ़ावा देते हैं। मैं स्वयं विद्यार्थी जीवन तक बबूल का दातून किया करता था पर बाद में टूथ पेस्ट इस्तेमाल करने लग गया जो कि विदेशी कंपनियों के द्वारा बनाया जाता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-91525893569924075722009-03-17T12:38:00.000-05:002009-03-17T12:38:00.000-05:00धन का एक ही रंग होता है भैया- गोरी हो या काली या प...धन का एक ही रंग होता है भैया- गोरी हो या काली या पीली- सभी पैसे का ही तो चक्कर है:)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-79288248124757555892009-03-17T08:22:00.000-05:002009-03-17T08:22:00.000-05:00अनिल जी: यह बात जमी नहीं. गोरी चम्म्दी पर इतना गुस...अनिल जी: यह बात जमी नहीं. गोरी चम्म्दी पर इतना गुस्सा क्यों! अपने इतिहास पर भी तो निगाह डाल कर देखिये. बुरी तरह बटा हुआ प्राचीन भारत , जो की रजवाडो का एक जमावडा था. मुगलों ने यहाँ आकर राज किया, कितने शर्म की बात है. राज ही नहीं किया, वास्तव में भारतीय सभ्यता तथा संकृति के साथ भी खिलवाड़ किये , बोधिस्म को भारत से बहार निकाल फेंका.भारत की जनता तथा लोग क्या कर रहे थे तब? अंग्रेज इतने लम्बे टाइम टिके रहे, गलतिया हमारी भी थी.not neededhttps://www.blogger.com/profile/17780210127869685473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-54300636942232996502009-03-17T05:21:00.000-05:002009-03-17T05:21:00.000-05:00व्यवसाय का जमाना कब नहीं था? हमही घर पर बैठ गए थे ...व्यवसाय का जमाना कब नहीं था? हमही घर पर बैठ गए थे और तब पुर्तगाली और अँगरेज़ आकर लात मारकर गए.. <BR/><BR/>बेहतर है कि हम इनसे कुछ सीखें, न कि इन्हें हम कोसें..<BR/>वैसे मैं कई स्पेनिसों और पुर्तगालिओं को जानता हूँ, जो भारत से बहुत प्यार करते हैं, और हिंदी की दुर्दशा पर दुखी हैं. वे हिन्दी सीख रहे हैं, किसी स्वार्थ के खातिर नहीं, बल्कि वे भारत को चाहते हैं..Sachihttps://www.blogger.com/profile/04099227991727297022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-5909507789429757132009-03-17T05:18:00.000-05:002009-03-17T05:18:00.000-05:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Sachihttps://www.blogger.com/profile/04099227991727297022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5310871667756610125.post-48745802958304792842009-03-16T23:34:00.000-05:002009-03-16T23:34:00.000-05:00ये अँगरेज़ बड़ी शातिर कौम है...पैसे के लिए कुछ भी ...ये अँगरेज़ बड़ी शातिर कौम है...पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरने वाली...आपने इनका एक दम सही चित्रण किया है...<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com