मेरे पिताजी कुंदनलाल सहगल की गायकी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। कुछ साल पहले, अपनी नौकरी की तरक्की की खुशी में वो सहगल की २० कैसेटों का ढेर खरीद लाये, और हर रविवार को सुबह-सुबह सुनने लगे। रविवार को मैं म्युजिक सिस्टम के बगल में रखे पलंग पर सो रहा होता हूं। सहगल के वो गीत सुबह सुबह मेरी नींद को आधा तो कर देते थे, लेकिन फिर उस आधी नींद में वे पुराने गीत सुनने में बहुत मज़ा आता था।
२ महीने बाद वो २० की २० कैसेटें मेरे पिताजी ने सुन डाली, और उन्हें वापस संदूकची में सहेज कर रख दिया गया। इसके बाद रविवार की सुबह टीवी पर वही "नौरमल" चैनल चलने लगे। मैंने पाया कि आजकल के नये गानों में बहुत बड़ी ताकत है मेरी नींद तोड़ने की। १० मिनट ही में आजकल के "हिट" गाने सुनकर मेरे सर में दर्द हो जाता था और मैं विवश होकर दूसरे कमरे में सोने चला जाता था।
फिर ५ साल बीत गये। मैं घर से दूर कहीं और आ गया।
कुछ दिनों पूर्व अपने कंप्यूटर पर मैंने ६००० गानों को बेतरतीब लगाकर छोड़ दिया। कुछ नहीं पता कि कौनसा गाना बजने वाला है। एक गाना सहगल का भी बजा, फिर किशोर, फिर नये हिंदी गाने, फिर लता -- जाने क्या क्या बजा। मैंने देखा कि ५० साल से भी पुराने उन हिंदी गानों में कुछ तो है जो वो मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। मेरी उम्र अभी ३० भी नहीं हुई, लेकिन अपने हमउम्र अधिकतम युवाओं की तरह मैं इन गानों से दूर नहीं भागना चाहता। इनमें कला है, और कला पुरानी होकर भी कला ही रहती है। किसी चीज़ के सिर्फ पुराने होने की वजह से उससे दूर नहीं भागना चाहिये, ऐसी मेरी सोच है।
सहगल के एक गीत पर मुलाहिज़ा फ़रमायें:
"दो नैना मतवारे तिहारे
हमपर ज़ुल्म करें"
कितनी सरलता से गायक अपनी मुख्य बात कह गया! सिर्फ दो ही पंक्तियों में, और गाने की लय भी खूब बनी रही।
अब पेश हैं हाल ही के कुछ गीत:
"टुनक टुन टुन्ना"
(जैसे कि रसोई में थाली पर चम्मच मारी जा रही हो)
"भूतनी के"
(एक गाली-भरा संबोधन)
"खोल के बैठी है क्या"
(बहुत बेशर्मी है)
"मां का दीना"
(माकारेना को मां का दीना बना दिया अनु मलिक ने)
चुम्मा चुम्मा दे दे चुम्मा
(तेरी मां ने तुझे नहीं दिये क्या चुम्मे बचपन में जो बड़ा होकर मांग रहा है?)
"तुणक तुणक तुण धा धा धा"
(भाई गा रहे हो या किसी को पीट रहे हो?)
फिर संगीत की पश्चिम से चोरी! ये तो हद हो गयी! भारत में बसे १०० करोड़ लोग जैसे मूर्ख हैं, पश्चिमी धुनों के चुराये जाने को नहीं पहचान पायेंगे। भारतीय संगीत में जो बल है वो विश्व में और कहीं विरले ही देखने को मिलता है। बल्कि पश्चिम से गायक अकसर भारत आकर अपने संगीत में सुधार लाने की कोशिश करते हैं।
मेरा सभी भारतीय संगीतकारों से ये अनुरोध है कि चंद दिनों की प्रसिद्धि के लिये इस तरह संगीत का गला न घोँटें। कृपया संगीत का आदर करें।
शनिवार, 12 जुलाई 2008
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3 टिप्पणियां:
अनिल भाई, पुराने गीतो का कया कहे, मेरे बच्चे यहां ( जर्मन) मे पेदा हुये हे, ओर अभी १८ साल के भी नही उन्हे भी आप के यह पुराने गीत ही पंसद आते हे,ओर सुनते भी हे,
आज से बीस साल पहले टी सीरीज ने सहगल के गानों का सम्पूर्ण कलेक्शन निकाला था हमने भी खरीद लिया था.
कोई मांग कर लेगया और कलेक्शन गायब.
आपका चढ़ा गीत बहुत पसन्द आया.
K L सहगल और बाबा सहगल के बारे मे कहें तो एक संगीत का उच्चतम बिंदु है तो दूसरा न्यूनतम :)
Nice Post.
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