सोमवार, 18 अगस्त 2008

अखिल की हार में भी जीत है!



मुक्केबाज़ अखिल कुमार १०-१५ मिनट पहले अपना पदकीय मैच हार गए हैं। सुनकर निराशा हुयी क्योंकि अखिल ने पदक का भरोसा दिलाया था, और वह भी स्वर्ण पदक का। अभी अभी एक SMS आया और दिल टूट गया। लेकिन थोडी देर बाद एक गरम कॉफी पीकर ठंडे दिमाग से सोचा, तो इतना भी बुरा नहीं है। विश्व चैम्पियन को हराया अखिल ने, और काफी आगे तक गए। ऐसा कहा जा रहा है की उनकी पिछली जीत जिस आक्रामक रुख की वजह से हुयी थी, वही उनके लिए मुसीबत बन गया। खैर मैं मुक्केबाज़ नहीं, ये खेल के दांवपेंच नहीं जानता। इसलिए सिर्फ़ काम की बात कहूँगा।

हम भारतीय जीतना भूल चुके हैं। और इक्का-दुक्का जब कोई जीतने लगता है तो हमें आदत नहीं होती। न खिलाड़ी को, न ही दर्शकों को। आने वाले कुछ सालों में दुआ करता हूँ कि हमें जीतने की आदत पड़ जाए। फिर चाहे क्वार्टर फाइनल तक ही क्यों न सही, लेकिन आदत तो पड़े! मुझे लगता है की जीत की इस आदत की शुरुआत कर चुके हैं बिंद्रा, अखिल एंड कंपनी।

इसीलिये मैं कहता हूँ कि अखिल की हार में भी जीत हुई है!

6 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

एक और पदक का सपना तो फ़िर एक बार टूट गया.
खैर जीतेन्द्र और विजयेन्द्र से अभी काफ़ी उम्मीदें है.
वो दोनों जरुर पदक जितने में कामयाब हो यही प्रार्थना है.

Nitish Raj ने कहा…

अनिल ये सिर्फ जीत और हार का सवाल नहीं है। ये अखिल के करियर की बात भी है। मैं जितना उसे जानता हूं इधर उधर से क्योंकि कुछ तो उसके साथ के हैं जो कि हमारे साथ है। कि अखिल इस बार बहुत ही उम्मीद से ओलंपिक गया था। शायद वो अब ३१ साल की उम्र में दोबारा ओलंपिक नहीं जा सकेगा। सही कहा है आपने कि हां वो ही अक्रामकता ही उसे ले डूबी। लेकिन क्या उसे ये नहीं बताया गया होगा कि यदि कोई डिफेंसिव हो जाए तो क्या करना है। आज दूसरे राउंड के बाद उसकी हालत ये हो गई थी कि चेहरे से लग रहा था कि वो दिल से कह रहा हो कि क्या करूं कुछ भी समझ नहीं आ रहा। तीसरे राउंड में तो यदि वो भी डिफेंसिव हो जाता तो ये मैच शायद अखिल ही जीतता। लेकिन अखिल ने एक अड़ियल रुख को बनाए रखा और इस रुख का काट गोजेन के पास था लेकिन उस बॉक्सर की काट अखिल के पास नहीं थी।
विजेंदर और जितेंदर दोनों ही अखिल को गुरु मानते हैं और जितेंदर का मुकाबला तो अब चैंपियन से होने जा रहा है जो कि काफी खतरनाक है वैसे भी उसकी चिन कट चुकी है। और रही विजेंदर की बात तो ७४ किलो में कई धांसूं फाइटर अभी बाकी हैं। लेकिन हमें आस तो है ही। साथ ही खुशी भी कि अखिल वहां तक गया। लेकिन चैंपियन से लड़ी फाइट अखिल की सबसे जानदार फाइट थी।


अनिल ये सब मेरी अगली पोस्ट का हिस्सा था जो कि अब मैं पोस्ट करने नहीं जा रहा हूं। मैं बॉक्सिंग का बहुत ही बड़ा पंखा हूं और साथ ही अखिल से मुझे बहुत ही उम्मीदें थी। लेकिन अखिल से बेहतर लड़ा दूसरा फाइटर और समझदारी से भी। सही मायने में तो आज का दिन भारत के लिए था ही नहीं खास तौर पर खेल में। एम फैक्टर ने मारा डाला आज।

Anil Kumar ने कहा…

नितीश आपकी विस्तृत टिप्पणी देखकर लगता है कि आपने भी मुक्केबाज़ी के घेरे में बहुतों को धूल चटाई है। यह बात सही है कि अखिल अब शायद अगली बार ओलंपिक में नहीं जा सकें, लेकिन उन्हें चाहिये कि अभ्यास जारी रखें, और खेल में मुक्के जमाने के साथ-साथ प्रतिद्वंदि के मन को पढ़ने का भी इलाज करें। मैं अखिल को उनके कोच जगदीश सिंह से भी बेहतर कोच बनते देखना चाहता हूं ताकि जो काम अखिल खुद न कर पाये, वो उनके चेले करें।

अखिल के हारने से पहले विजेंद्र और जीतेंद्र से भी अखिल जैसी ही उम्मीदे लगायी जा रही थीं - देखते हैं कि अब उन दोनों का क्या होता है। इसी का नाम तो खेल है! दुआ रहेगी कि जो अखिल ने न किया, वे दोनों करें!

बाकी ये "एम फैक्टर" क्या बला है? थोड़ा प्रकाश डालने की कृपा करें! :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

उम्मीद तो हमे भी हे, देखो

Udan Tashtari ने कहा…

बचे दो उम्मीददायकों को शुभकामनाऐं.

शोभा ने कहा…

aap sahi eh rahe hain. hamko apne khiladiyon ka utsah badhana chahiye.keep it up