अपने ही चिट्ठा पै, सौ बार करे विजिट ।
सबको कहते फिर रियो, मेरो चिट्ठो हिट ॥ १ ॥
ब्लॉग जगत ने रच दिया, ऐसा विधि-विधान ।
या बन गयो लेखक-कवि, वा बन गयो विद्वान ॥ २ ॥
निंदन की टिप्पण कर, दूजै न देत दुखन ।
तेरो चिट्ठो पै वा लिक्खेगा, हो जावेगी अनबन ॥ ३ ॥
चील उड़ाके ले गयो, न्यों चुरायो चिट्ठा ।
पुंगीबाज भागत रहिन, लाज लग गयो बट्टा ॥ ४ ॥
ब्लॉग-व्लाग सब छोड़िये, अब मेरे मन मीत ।
कछु नाहि धरा है इनमें, हो जागौ मुरछीत ॥ ५ ॥
यहाँ पढिये चिट्ठाकारों के दोहे भाग १
बुधवार, 30 जुलाई 2008
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4 टिप्पणियां:
वाह क्या बात है! सत्य वचन!
सहमत हूँ आपसे.
सही है.
हा हा हा
बहुत खूब.
:) :) :)
हा हा!! बहुत मजेदार!!
अनिल दास जी के दोहे, धन्यवद
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