पिछले हफ्ते मैंने इस विषय पर चर्चा करके जैसे सागर-मंथन शुरू करवा दिया है। सोचा भी न था कि बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी। मेरे उस चिट्ठे को मेरे कुछ मित्रों ने ईमेल के ज़रिये आगे बढाया, और मुझे पता भी न चला कि कब वो चिट्ठा सैकडों डॉक्टरों ने पढ़ कर गहन चर्चा-परीक्षा कर डाली। अब वही ईमेल मुझ तक पंहुचा है वापस, लेकिन ढेरों टिप्पणियाँ लिए हुए। उन टिप्पणियों का निचोड़ मैं यहाँ अपनी भाषा में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
वातानुकूलित कक्ष में बैठ कर इम्पोर्टेड चाय कि चुस्कियां लेते हुए जब मैनेजमेंट और मंत्रिगण कहते हैं कि डॉक्टरों को गाँवों में जाना अनिवार्य कर देना चाहिए, तो ये शायद दुर्गत हिंदुस्तान की एक और दुर्गति का मार्ग बनाया जा रहा है। पिछले साल केन्द्र सरकार ने देश के सभी MBBS डॉक्टरों को पढ़ाई पूरी होने पर १ साल की अनिवार्य ग्रामीण-सेवा करने का आदेश दिया था। हरियाणा के बल्लबगढ़ में जब मैं मरीजों की सेवा करता था, तो बहुत तरस आता था जब में ताऊ को ६५ रूपये की एक गोली ७ दिन तक खाने को कहता था। ताऊ कहता कि " बेट्टा पीसे होत्ते मेरे धोरे तो सरकारी अस्पताल मैं क्यूं आंदा?" ("यदि मेरे पास इतने पैसे होते तो मैं सरकारी अस्पताल में क्यों आता?")
मुलाहिजा फरमायें, गाँव में डॉक्टर है, उसने मरीज़ को दवाई भी लिखी है, लेकिन वह महंगी है, इसलिए हॉस्पिटल में नहीं बँटती। मरीज़ को ख़ुद खरीद कर खानी होगी। लेकिन बिचारे मरीज़ के पास दवाई खरीदने के पैसे नहीं हैं। १ के बदले ५० डॉक्टर रख दीजिये हर गाँव में, जब तक दवाइयाँ नहीं होंगी, कुछ सुधार नहीं होगा।
देश भर में MBBS छात्रों द्वारा विरोध होने पर अनिवार्य ग्रामीण-सेवा का वह कार्यक्रम वापस ले लिया गया था।
लेकिन अब यही पिटा हुआ फार्मूला स्नाताक्पूर्व यानि के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों पर थोपने का निर्णय लिया गया है। जो लोग डाक्टरी राजनीति की थोड़ी भी परख रखते हैं, वे ये भली भांति जानते हैं कि MBBS डॉक्टरों की तुलना में MD डॉक्टरों पर कानून लादना आसान होता है क्यूंकि वे बेचारे पहले ही सरकारी अस्पतालों में रोज़ १० से १५ घंटे काम करके अपना हौंसला खो चुके होते हैं। यकीन नहीं आता तो पूछ लीजिये अपने पास के किसी भी डॉक्टर से।
MD डॉक्टर की उम्र करीब-करीब ३० के आसपास होती है, और इस उम्र में अधिकाँश के छोटे-छोटे बच्चे भी होते हैं। यदि ये डॉक्टर गाँव में अपने परिवार सहित रहेगा तो उसके बच्चों को पढने के लिए अच्छा स्कूल भी चाहिए होगा। नहीं तो उसके बच्चे भी भारत के गाँवों में गिल्ली-डंडा खेलते रह जायेंगे। हालात और भी मुश्किल हो जाते हैं अगर डॉक्टर साहेब की बीवी भी डॉक्टर है, उसे कहाँ रखियेगा?
जब कूटनीतिज्ञों (डिप्लोमैट) को दूर-दराज के इलाकों में भेजा जाता है तो उन्हें अतिरिक्त भत्ता दिया जाता है। डॉक्टर को क्यों नहीं? हिमाचल प्रदेश की सरकार ने वादा किया था की जो डॉक्टर गाँवों में जायेंगे, उन्हें १ लाख रूपये दिए जायेंगे। बहुत से डॉक्टर गए हिमाचल के गाँवों में, सेवा भी की, लेकिन हिमाचल सरकार ने वादाखिलाफी करते हुए कुछ भी पैसा नहीं दिया डॉक्टरों को। क्या ये उनकी डाक्टरी और मेहनत का अपमान नहीं?
कई अनुभवी और दिग्गज डॉक्टरों की इस विषय पर चर्चा जारी है। कई सुझाव सामने आ रहे हैं, अभी-अभी एक और ईमेल की घंटी बजी है। भाग ३ में उन सभी द्वारा दिए गए सुझावों की व्याख्या करूंगा।
भाग ३ पढने के लिए यहाँ चटकाएं.
बुधवार, 16 जुलाई 2008
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3 टिप्पणियां:
सभी को अपना दुख दूसरे के दुख से बडा लगता है, शायद आप को भी उसी व्याधि ने आ घेरा है, कोशिश करें कि कुछ गांव की भी सुध लें।
anil ji docteron ki samasya to sahi ginayi aapne lekin gaon walon ki pareshaniya kam nahi hai.aaj bhi gaon me kirana dukan wale dawa bech rahe hain,jhola chhap docter dawa de rahe hain,jhaad phuk karne waale baba-baiga logo ki dukaan bhi khub chal rahi hai.kya gaon waalon ko achha elaaz nahi milna chhaiye.aapke sawaal ekdum durust hain doc ki samasyaon par bhi vichar hona chahiye sath hi graminon ka bhi khayaal rakha jaana chhahiye.aap ko batate hue mujhe sharm bhi aa rahi aur gussa bhi,aap gaon ki baat karte hai main pure chhattisgarh ki baat kar raha hun,is pure rajya ke sarkari aspatalon me ek bhi neurosurgeon nahi hai,rajdhaani ke aspataal me bhi nahi.aur kya kahun kehne ko bahut kuchh hai baki fir kabhi fursat se,aur haan mari koi baat buri lagi ho to maaf kar dena
लगता है कुछ लोगो को इस इस चिटठे का मूलभूत सार समझ नही आता..............यदि समझ नही आया, तो मै प्रकाश डालना चाहूँगा की इस चिटठे में गाँव की समस्याओं और उनकी समस्याओं को सुलझाने के व्यावहारिक पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है, न की किसी डाक्टर द्वारा अपनी समस्याओं को दिखाने और आंसू बाहने की कोशिश!
परंतु राजनेताओं के साथ साथ कुछ देशवासी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित लगते है...........जो बिना सोचे समझे, बिना ये जानने का प्रयास किए की अगला प्राणी क्या कहना चाह रहा है, अपने तरकश में पहले से तैयार रखे ready made तीरों को दागने लगता है..........श्री सतीश पंचम जी की टिपण्णी इसी का एक अच्छा उदहारण है...........इस चिटठे में स्पष्ट तोर पर समझाया गया है, की ऐसा नही है की गाँवो में सरकारी हस्पताल या डाक्टर नहीं है.........जिन जगहों पर डाक्टर है भी, वहां पर उनके होने का भी लाभ तक तक प्राप्त नही होगा, जब तक की बाकि चीजे जैसे की सस्ती या फ़िर मुफ्त दवाएं उपलब्ध न करवाएं जाए..........ऐसे ही और कई पहलु है जिनकी तरफ़ प्रकाश डालने की आवश्यकता है............न की महज डाक्टर को कटघरे में खड़ा कर नैतिकता के उपदेश पिलाने की.........और ज्यादातर उपदेश ऐसे ही लोग देते पाए गए है, जिन्होंने ख़ुद गाँवो के उत्थान में एक ढेला भी जोड़ा हो...........
अनिल पुशाद्कर जी की बातों से मै सहमत हूँ..........मै ख़ुद छत्तीसगढ़ की मिटटी में पला और बड़ा हुआ हूँ, और मुझे पता है की यह बात सच है की वहां के सरकारी हस्पताल में एक भी neurosurgeon नही है...........गाँवो में दूर दूर तक सरकारी हस्पताल या तो नही है, या खाली है.............परन्तु बात गाँव की समस्या की है, और गाँव वालो को एक neurosurgeon से पहले एक प्राथमिक चिकित्सक की कहीं ज़्यादा ज़रूरत है...........वहां पर वह भी नही है...........परन्तु फ़िर तरकश से तीर दागने से पहले पूर्वाग्रह त्यागने की आवश्यकता है, और इमानदार मन से इस बात पर विचार करने की आवशकता है की अगर छत्तीसगढ़ के दूर दराज़ गाँवो में डाक्टर नही है, तो क्यों नही है? क्या उसके लिए सिर्फ़ एक चिकित्सक के इक्षाशक्ति का आभाव ही एक कारण मात्र है??..........रायपुर शहर से १० Km आगे निकलते ही बुनियादी सुविधाओं (पानी, बिजली और सड़कें) की कैसी हालात है, यह मुझे दुबारा समझाने की ज़रूरत नही है...........गाँव तो छोडिये, रायपुर शाशकिया हस्पताल तक में अधिकांश दवाएं मरीज़ को ख़ुद ही खरीदनी पड़ती है, क्या इसके लिए भी डाक्टर जिम्मेदार है??........विचार करें तो पाएंगे की काफी चीजों को सुधरने की आवश्यकता है.......
जो लोग डाक्टर को गाँव जाने के सलाह बिना सोचे समझे देते है, मै उनसे पूछना चाहूँगा, की यदि आज आपको डाक्टर बना दिया जाए, तो क्या आप गाँव जा कर बसना पसंद करेंगे?? यदि आप थोड़े से भी ईमानदार है, तो आपका जवाब होगा 'नही'...........क्योंकि आप गाँव में बसने से पहले कुछ मूलभूत चीजों की अपेक्षा रखते है, और वह चीजे गाँव में नही है..........यदि आप आज ख़ुद गाँव में नही रह रहे है, तो क्यों नही रह रहे है यह सवाल ख़ुद पूछे??........यदि हम ख़ुद गाँवो में नही रह सकते, तो हम दूसरो को गाँव जा कर बसने का उपदेश कैसे दे सकते है??............तो इस फ़िर समस्या का समाधान ये नही है की किसी को पकड़कर जबरिया गाँव भेज दे........यह अनैतिक है और अव्यवहारी भी..........ज़रूरत समस्या को जड़ से समाप्त करने की..........बिजली, पानी, सडको और स्कूलों की, यदि यह सब गाँव में होगा,.... तो आप भी गाँव जाना चाहेंगे, और डाक्टर भी!
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