हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का माहौल बढ़ रहा है। भाई कारगिल और मुंबई धमाके तो होते ही रहते हैं, इसे दोनों देश आजकल की कड़वी सच्चाई मान चुके हैं। भारत सरकार आई एस आई पर आरोप लगाती है, पाकिस्तान इन आरोपों को तुंरत बर्खास्त भी कर देता है। चलिए छोड़िये ये दर्द भरी दास्ताँ, कुछ प्यार प्रेम की बात करते हैं।
हाँ तो मैं कह रहा था की पाकिस्तानी गायक भारत में प्रसिद्द क्यों होते हैं? कल सोचने लगा। वैसे तो अदनान सामी, रेशमा, गुलाम अली, आतिफ असलम के नाम ज़हन में आते हैं, लेकिन इनकी फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है। और हाल ही में काफ़ी सारे नौजवान पाकिस्तानी गायक भारत आना चाहते हैं।
मुझे लगता है कि भारत में पैसे कमाने की लालसा प्राथमिक कारण है इनके आगमन का। फिर चाहे भारत में उन्हें अपना मनपसंद खाना भी न नसीब हो , लेकिन अपने नसीब पर जमी धूल को पैसों-रूपी पोंछे से पोंछने के लिए भारत आकर मुंबई नगरी में डेरा क्यों न जमाया जाए?
भारत में इन्हें पसंद क्यों किया जाता है? क्योंकि दोनों देशों की भाषा और संस्कृति में बहुत समानता है। मालूम है, लाल कृष्ण अडवाणी और मुशर्रफ़ में कोई समानता नही, लेकिन आम जनता दोनों देशों में एक ही संस्कृति से जुड़ी है। जब जगजीत सिंह की ग़ज़ल सुनते हैं तो कभी सोचा है कि वो हिन्दी में नहीं, उर्दू में गा रहे हैं? आम आदमी दोनों देशों में एक ही तरह का संगीत सुनता है, चाहे उनके सरकारी आका उन्हें ऐसा करने से मना कर दें। दूसरी तरफ़ भारत में भी कुछ लोगों को पाकिस्तानी गायकों का भारत में आकर गाना पसंद नहीं है।
जहाँ मज़हब और सम्प्रदाय के नाम पर चंद लोग दोनों देशो के बीच खाई खोद रहे हैं, वहीं ये गायक इस खाई में मिट्टी भर कर इसे पाटने का काम कर रहे हैं। जहाँ राजनेता तोड़ने में लगे हुए हैं, वहीं ये कलाकार जोड़ने का काम कर रहे हैं। इतनी नफरत के बावजूद प्रेम के गीत गाने और सुनने के लिए में दोनों देशों के लोगों की प्रशंसा करता हूँ.
क्या आपकी नज़र में भारत में पाकिस्तानी गायकों का बढ़ता वजूद अच्छा है? कृपया टिप्पणी करें!
बुधवार, 16 जुलाई 2008
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4 टिप्पणियां:
सिर्फ गायक ही नहीं पूरा पाकिस्तान भारत आना चाहता है। और ये उनकी दिली आरज़ू आख़िरी ख्वाहिश भी
कला और कला के प्रेमी सरहदों से सारोकार नही रखते.
अनिल भाई बात यह हे की एक ही भाषा , ओर एक ही संस्क्राति जो हे, ओर भावनए भी एक जेसी, ओर आम नागरिक भी एक जेसे ही हे
मुझे अपने कमरे में लगे उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब और मेहदी हसन साहब के पोस्टरों को देख कर जेहन में तो कभी हिन्दुस्तान-पाकिस्तान नहीं आया.
संगीत न हिन्दू होता है न मुसलमान और हिन्दुस्तानी-पाकिस्तानी तो कतई नहीं.
ये बात दीगर है कि आडवाणी और मुशर्रफ़ और बुश और टोनी ब्लेयर वगैरह ज़रूर एक ही जाति के सदस्य हैं और मौक़ा देखकर अपना पाला और संगीत शिफ़्ट करते रहते हैं.
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