शुक्रवार, 6 मार्च 2009

"मैं लाइन में आपके पीछे खड़ी हूं"



मैं तीन साल पहले अमेरिका आया था, अौर रोज़मर्रा की जिंदगी में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जो भारत से बिलकुल अलग हैं। आज सुबह ही की बात ले लीजिये। मैं सब्जी खरीदने सुपरमार्केट गया। सब्जी खरीदने के बाद नकद भुगतान के लिये काउंटर पर गया। ४ लोग मुझसे पहले से ही मौजूद थे। तीन गोरे थे, फिर एक भारतीय महिला, और आखिर में मैं। भारतीय महिला गोरे के कुछ ज्यादा ही करीब खड़ी थी, जैसे कि आमतौर पर भारत में लाइन में खड़े लोग करते हैं। भारत में लाइनें ही इतनी लंबी होती है, क्या करें! लोग पास-पास खड़े होते हैं ताकि लाइन के अंत में नये लोगों के लिये खड़े होने की जगह रहे।

लेकिन गोरों को किसी के ज्यादा करीब खड़े होने की आदत नहीं होती। शायद भारतीय महिला के अधिक पास आने से उसके "व्यक्तिगत दायरे" में कुछ घुसपैठ का-सा अहसास हुआ होगा। तो गोरा लाइन से दो कदम हटकर इधर-उधर झांकने लगा। भारतीय महिला को लगा कि गोरे और उसके बीच में काफी अधिक दूरी हो गयी है, और उसने कहा "मैं लाइन में आपके पीछे खड़ी हूं"। शायद उसे लगा कि चार लोगों की इतनी छोटी सी लाईन में जो गोरे ने एक छोटी सी जगह छोड़ी है, उसमें कहीं कोई अौर न आकर खड़ा हो जाये। लेकिन गोरे की शक्ल से लग रहा था कि उसे बिलकुल समझ में नहीं आया कि भारतीय महिला ने उससे ऐसा क्यों कहा?

मुझे अचानक भारत की याद आ गयी!

भारत में हर जगह लाइनें लगती हैं। लाइन में खड़े होना आम बात है। लाइनें बहुत लंबी भी होती हैं। बचपन से ही लाईनों में खड़े हो-होकर हम लोग लाइनलग्गू कला के विशेषज्ञ हो जाते हैं। जब आपके और सामने वाले के बीच दूरी अधिक बढ़ जाती है तो कभी-कभी आप सामने वाले को कह देते हैं "मैं आपके पीछे खड़ा हूं" ताकि बीच में कोई और न घुस जाये।

लेकिन हर जगह ये मारामारी क्यों? बढ़ती आबादी के कारण हर जगह मारामारी बढ़ रही है, और लोग अपने आपको मारामारी में शामिल होने के लिये अनुकूलित भी कर रहे हैं। लेकिन हर चीज को एक सीमा तक ही खींचा जा सकता है - आबादी की सीमा भी उनमें से एक है। यदि हमने जल्द ही अपनी आबादी को नियंत्रित नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिये भी लाइनें लगा करेंगी।

अभी भी समय है, आइये सुधर जायें! भारत की आबादी को नियंत्रित करने का संकल्प लें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को लंबी लाइनों में खड़े होकर अपनी कीमती जिंदगी न बितानी पड़े।

5 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

ham shayad american logon ki taraf adhik dhyan dete hain aur apne hav bhav ke prati savdhaan rehte hain ki hamaari koi baat unhen buri na lage magar vo log doosron ki bhaavnaaon se laparvaah rehte hain main ek baar los angles[santa claara] gayee to apne saath kuchh hindi patrikayen le gayee socha vahan india bazar me rakh doongi koi pad lega maine patrikaayen akhbaaron ke paas rakh di ham log saamaan lene lage maine door se dekha ek bhartiye ladke ne idhar udher dekha ki koi dekh to nahi raha usne patrika uthha kar jaldi se apni jeb me rakh lee pata nahi ham bharatiye hone me sharam kyon mahsoos karte hain vahan jaa kar maine kai aise anubhav kiye hain kya aap uska karan bata sakte hain apka ddosaron ke manobhav padhne kaachha gyan hai aap bahut achhe lekhak banenge ashirvaad

Anil Kumar ने कहा…

निर्मला जी आपकी टिप्पणी और आशीर्वाद दोनों ही बहुत अच्छे लगे! आपका बहुत शुक्रिया, उम्मीद है आगे भी मेरा लिखा आपको पसंद आये!

बेनामी ने कहा…

हा हा........सही कहा आपने.......दरअसल भारतीय लाइन में इसलिए पास पास खड़े होते है, क्युकी वो असुरक्षा की भावना से ग्रसित होते है की कहीं उनके और सामने वाले के बीच में कोई और न घुस आये........और यह असुरक्षा की भावना इसलिए विकसित हुई क्युकी लोग ऐसा करते भी है! कोई भी किसी दुसरे के अधिकार का सम्मान नहीं करना चाहता, जहाँ जगह मिली घुस जाओ, ज़रूरत पड़ी तो लड़ भी लो की मै तो यहीं पर था.......
कई बार तो लाइन में सिर्फ एक ही मित्र खडा होता है, और बाकि सरे मित्र इधर उधर invisible हो कर घूम रहे होते है.....जैसे ही फिल्म की ticket की खिड़की खुलती है, अचानक से बाकि सारे मित्र पता नहीं कहाँ से आपके सामने लाइन में घुस जाते है यह कह कर की हमारा मित्र लाइन में है, और हम भी लाइन में थे.........
@निर्मला कपिला
हमें भारतीय होने में शर्म नहीं आती, कुछ भारतीय हरकतों पर आती है.......आपकी घटना में ही में किताब को बिना पूछे चुराना कोई महान कृत्य तो नहीं है न? अपनी आलोचना और उसमे सुधर करके ही हम आगे बढ़ सकते है, कमियों को अनदेखा करके नहीं.

बेनामी ने कहा…

वो तुम ही हो ?
वो तुम हो,
हाँ वो तुम ही तो हो,
जिसने उठाई,
आज इक ‘तर्जनी’ मुझ पर |
जो,
मेरे अस्तित्व और अहम् को,
धकिया देना चाहती हैं |
२.
कल जिस सोच पर,
नाज था तुम्हे,
आज वही सोच मेरी,
सोच में दाल जाती हैं तुम्हे |
३.
अतीत में,
जिस चूजे को पंख दिए,
आज,
उन्ही पंखो को तुम,
कुतर देना चाहते हो,
कर देना चाहते हो पंखविहीन |
४.
कभी,
प्रभावित थे जिन गुणों से तुम,
लड़ जाते थे,
औरो से मेरे लिए |
समझ नहीं पाती हूँ,
आज क्या बात हुई,
जो,
मेरी उन्ही खूबियों से घबडाकर,
लड़ जाते हो तुम,
उन्ही औरो के साथ हो मुझसे |
५.
ऐसा नहीं,
आज मेरे सिद्धांत तुम्हे नहीं सुहाते,
फरक बस इतना हैं,
मेरी वही बातें,
अब तुम औरो में ढूंढते हो |
६.
शायद इसलिए कि,
तब मै अप्राप्य थी
और आज प्राप्य हूँ |
महसूस करती हूँ,
दबा देना चाहते हो,
खुद के भोज से मुझको |
वो तुम हो,
हाँ वो तुम ही तो हो,
जिसने उठाई,
आज इक ‘तर्जनी’ मुझ पर |
जो,
मेरे अस्तित्व और अहम् को,
धकिया देना चाहती हैं |

सपना सिंह (सोनश्री)
ईमेलsapanasingh_dr@rediff.com


“लाइन में पीछे खडी हूँ” विचार अच्छे हैं | आज सवाल ये नहीं की लाइन कौन- सी और कहाँ हैं ? आज हर कोई लाइन में ही हैं | सोचना ये हैं की जब लाइन में आगे लग के काम हो जाए, तो आगे का रास्ता भी खुल जाए,पर ऐसा होता नहीं हैं,क्योंकि इक टाइम के बात हम खुद को वही पाते हैं जहा से शुरुआत करते हैं | जिस सहारे से हमें हिम्मत मिलती हैं, लाइन का सामना करके मिलने वाली सफलता के शुरुआत में ही,किसी भय के वशीभूत वो सहारा aapkaaapkaaआपका साथ छोड़ देता हैं | लाइन से नहीं विचारों,शंकाओं के भय से घिरे इंसान से भयभीत होने की जरूरत हैं |

sonsri ने कहा…

जीने,
नहीं देगा,
हो,
बुद्धिजीवी
या,
कोई अनपढ़ |
बस,
उसको हो,
यकीन,
इस बात का,
कि
वो ही हैं,
अपने क्षेत्र का,
‘ धुरंधर ’ |
पर,
धुरंधरों को भी,
कर देता हैं,
धुल-धूसरित,
देता हैं,
समय,
मात जब |
जो,
सच्चे हैं,
उनका,
ही देता हैं,
समय,
साथ तब |
|||

सब के सब अपने क्षेत्र में बुद्धिमान हैं, भला लाइन में लगने की चाहत किसे हैं, पर सिस्टम के साथ काम करना हैं, तो कतार में आना तो पडेगा | हां, पर कतार इंसानों की हो तो बुराई नहीं पर विचारों की कतार हमेशा से ही बुरी होती हैं | जनसँख्या रोकनी चाहिए,परन्तु कतार ही मूल समस्या लाइन की होती तो, आज चीन जैसा देश हमसे आगे नहीं होता | और देश जहां लोगो की संख्या कम हैं ,वहां की सोच हमसे भी छोटी और गन्दी हो सकती हैं, वहां बहुत सी बुराइयां भी हो सकती हैं, शायद वहां लाइन से कही बड़ी बड़ी समस्याए होती होगी,पर हम लोगो की इक समस्या हैं, हमारे पास जो होता हैं ,उसकी हमें कदर नहीं होती हैं | | soni