आज सुबह किसी परिचित का ईमेल आया, जिसमें लिखा था कि कोई ६ साल की बच्ची है जिसे कैंसर है। आगे लिखा था कि उस ईमेल को हर बार फारवर्ड करने पर माइक्रोसौफ्ट पाँच रुपये उस बच्ची के इलाज के लिये दान करेगा। ईमेल को पहले भी हजारों लोगों ने फारवर्ड किया हुआ था जिनके नाम नीचे लिखे हुये थे। १० साल पहले मैं भी ऐसे ईमेल फारवर्ड किया करता था। लेकिन जैसे-जैसे कंप्यूटर तकनीक का ज्ञान बढा, मैंने जाना कि ऐसे सारे ईमेल झूठे होते हैं।
आपके अलावा और कोई नहीं बता सकता कि वह ईमेल आपके पास आया है, या आपने किसको फारवर्ड किया है। तो फिर माइक्रोसौफ्ट कैसे पैसे देगा? और वह बच्ची पिछले दस साल से ६ साल की ही कैसे है? साफ है कि जिसने वह ईमेल लिखा था, सरासर झूठ लिखा था।
लेकिन उसने क्या सोचकर लिखा होगा? जूठ बोलने में उसका क्या फायदा था?
ऐसे ईमेल लंबे समय तक लोग एक-दूसरे को फारवर्ड करते हैं। हर फारवर्ड के साथ एक नया ईमेल पता उसके अंत में जुडता जाता है, और अंत में लिस्ट बहुत लंबी हो जाती है। फिर उस ईमेल को शुरू करने वाला कहीं न कहीं से उस ईमेल को दोबारा पाता है, लेकिन साथ में उसे सैकडों लोगों के ईमेल पते भी लिखे मिलते हैं जिन्होंने उस ईमेल को फारवर्ड किया था। इन नये ईमेल पतों को कचरा-ईमेल (junk email या spam) भेजे जाते हैं, कि फलानी दवाई खरीद लो, फलाना सौफ्टवेयर खरीद लो। ऐसे ईमेल पतों की लिस्टों की खरीद-फरोख्त भी होती है।
सब पैसे की महिमा है, ६ साल की बच्ची तो मात्र बहाना है।
और यदि किसी के कंप्यूटर में वायरस है, तो ईमेल के साथ जुडकर वायरस भी आगे फारवर्ड हो जायेगा। वायरस बनाने वालों की भी मुफ्त में चाँदी।
यदि आगे से आपको ऐसा कोई ईमेल आये तो उसे बिना खोले तुरंत मिटा डालें। और ईमेल भेजने वाले को ऊपर लिखा मेरा विवरण चिपकाकर भेज दें, ताकि वह भी आगे से सावधान रहे।
और कभी किसी को वास्तव में इलाज के लिये मदद की आवश्यकता हो तो उसकी मदद अवश्य करें!
3 टिप्पणियां:
सही है.. मैं तो इनको नजरअंदाज कर सिधे delete करता हूँ.
अच्छी जानकारी दी ... वरना लोग तो यह समझ नहीं पाते और व्यर्थ ही समय और श्रम का नुकसान करते हैं।
अनिल जी:
लिखाड़ शब्द आप पर फिट है.
कृपया देखिये www.mifindia.org और मुझे इस ईमेल पर pedia333@gmail.com एक पंक्ति लिख भेजिएय ताकि मैं आपको संपर्क कर सकूं
डॉ मुनीश, chicago
एक टिप्पणी भेजें