आज ऐसे ही बैठे-बैठे बचपन की वो सीनरी बनाने का मन कर गया. हजारों बार इसी सीनरी को बना-बनाकर नन्ही उंगलियों में कला की उमंगें भरीं. तो आज कई सालों बाद उसी सीनरी को फिर से कंप्यूटर पर बनाया! वही पहाड़ और पेड़, वही झोंपड़ी और सूरज, वही फूल और नदी! जाने फिर से बचपन वापस लौट आया! ऊपर "Play" बटन दबाकर आप भी देखें कि मैंने कैसे बनायी ये सीनरी!
शनिवार, 28 मार्च 2009
चलो बचपन की वो "सीनरी" बनायें
आज ऐसे ही बैठे-बैठे बचपन की वो सीनरी बनाने का मन कर गया. हजारों बार इसी सीनरी को बना-बनाकर नन्ही उंगलियों में कला की उमंगें भरीं. तो आज कई सालों बाद उसी सीनरी को फिर से कंप्यूटर पर बनाया! वही पहाड़ और पेड़, वही झोंपड़ी और सूरज, वही फूल और नदी! जाने फिर से बचपन वापस लौट आया! ऊपर "Play" बटन दबाकर आप भी देखें कि मैंने कैसे बनायी ये सीनरी!
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3 टिप्पणियां:
बिलकुल यही बचपन में हम भी बनाया करते थे, यधपि ब्रश इतना अच्छा नहीं चलता था अपुन का!
कला और कलम,
दोनों को सलाम।
बचपन के दिन वापस आए,
जब भी आए, चित्र बनाए!
फूल हँसाकर, नदी बहाए,
सूरज को ख़ुशकर मुस्काए!
वही झूमते पेड़ बनाए,
जिनके नीचे खेल रचाए!
वही झोपड़ी मन को भाए,
जिसमें रहकर चित्र बनाए!
बचपन के दिन वापस आए,
जब भी आए, चित्र बनाए!
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