रविवार, 12 अप्रैल 2009

भारत में नशे का महाजाल: एक साक्षात्कार और कुछ सुझाव


आज से ६ साल पहले एक नशा करने वाले व्यक्ति से साक्षात्कार हुआ था। अपनी डायरी के पन्नों से उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। लेख के अंत में सुधारबिंदु भी दिये गये हैं।


नमस्ते! मेरा नाम डॉ. अनिल कुमार है। कहिये यहाँ कैसे आना हुआ?

जी स्मैक की आदत है। छोड़ना चाहता हूँ। इसीलिये आपके अस्पताल आया हूँ। कृपया मेरी मदद कीजिये।

नशे की आदत शुरू कैसे हुयी? और इस आदत को बढ़ावा कैसे मिला?


नौ साल की उम्र में एक दोस्त ने बीड़ी पिलायी थी। वह कहता था कि बीड़ी मर्दानगी की निशानी है। मैं भी बड़प्पन दिखाने के लिये घरवालों से छिपाकर स्कूल में बीड़ी पीने लगा। शुरू में मेरा दोस्त मुझे बीड़ी मुफ्त में देता था, लेकिन फिर उसने मुझे अपने पैसे से खरीदकर पीने के लिये कहा। बीड़ी नहीं पीता था तो "हुड़क" मचने लगती थी, और चोरी करके पैसे जुटाकर पीनी ही पड़ती थी।

स्कूल से निकलते-निकलते मैं बीड़ी और सिगरेट का आदी हो चुका था। बिना बीड़ी पीये पैखाना नहीं निकलता था। कॉलेज में एक त्यौहार के दिन भांग भी पी। गाँव गया तो एक साधु को चिलम पीते देखा। मैंने भी उसके साथ बैठकर चिलम पी - इस तरह गांजा भी शुरू हो गया। शहर आया तो पार्टियों में दोस्तों के साथ बीयर भी पीनी शुरू की। नहीं तो मेरा सामाजिक तिरस्कार हो जाता।

शादी होने के बाद एक दोस्त ने एक पाउडर देकर कहा कि इसे चमकीली पन्नी पर रखकर इसका धुँआ लो, विवाहित जीवन सुखमय रहेगा। लेकिन मुझे पता नहीं था कि वह पाउडर स्मैक थी, जिसे मैं २५ बरसों से पी रहा हूँ, और छोड़ नहीं पा रहा। अब स्मैक के धुयें से असर नहीं होता, तो उसे इंजेक्शन में भरकर नसों में लगाना पड़ता है। सारी नसें भी अब इंजेक्शन लगा-लगाकर बंद हो चुकी हैं।

नशे पर रोजाना कितना खर्चा आ जाता है?

बीड़ी, सिगरेट, शराब, और स्मैक पर कुल मिलाकर दिन के १००० रुपये खर्च होते हैं। इस चक्कर में पुश्तैनी घर बेच चुका हूँ, और मेरे ऊपर दो लाख रुपये का कर्ज भी है।

यदि किसी कारणवश नशा न मिले तो क्या होता है?

यदि दिन में तीन बार नशा न मिले तो बहुत बुरा हाल होता है। बदन टूटने लगता है, दिमाग फटने लगता है, आँखों के आगे अंधेरा छाने लगता है। नाक से पानी और आँखों से आँसू निकलने लगते हैं, दस्त भी लग जाते हैं। नींद भी नहीं आती। ऐसे में लगता है कि मर जाओ तो अच्छा। और इतनी बुरी हालत तब तक रहती है जब तक दोबारा नशा न मिले। कभी कभी तो खाना खाने के पैसे भी नशे में लगाने पड़ते हैं।

गाजियाबाद में और कितने नवयुवक हैं जो आपके जैसे ही नशे के आदी हैं?

मेरे जितने दोस्त थे, उनमें से तकरीबन आधे मेरी ही तरह नशे के आदी हो चुके हैं। नशे की दुकान पर मैं कई बार अपने पड़ोसियों को भी देख चुका हूँ। मेरे अनुमान से गाजियाबाद के आधे व्यक्ति नशा कर रहे हैं।

आपके विचार में आपके नशे के जाल में पड़ने के लिये कौन जिम्मेदार है?

जिम्मेदारी तो मेरी ही है। मुझे लगता है कि यदि मैं नौ साल की उम्र में उस पहली बीड़ी के न्यौते को अस्वीकार कर देता तो आज मैं भी आपकी तरह एक नौकरीशुदा पेशेवर होता, और खुश जिंदगी जी रहा होता।



सुझाव के लिये विचार:

१) बीड़ी, सिगरेट और गुटका खरीदने के लिये न्यूनतम आयुसीमा का सख्ती से पालन किया जाये: ज्यादातर नशे छोटे पैमाने पर बीड़ी-सिगरेट-गुटके से शुरू होते हैं। यदि इनकी बिक्री सिर्फ वयस्कों के लिये हो, तो बचपन से ही नशे की आदत लगने वाले लोगों की कमी होगी।

२) स्कूली पाठ्यक्रम में नशे के खिलाफ मुहिम जारी हो: यदि स्कूल में बच्चों को शुरू से ही बताया जाये कि नशा बुरी बात है और इससे शरीर और मानसिकता को नुकसान होते हैं, तो कई बच्चे इन आदतों को शुरू ही नहीं करेंगे।

३) जो अभिभावक खुद नशा करते हों, वे अपने बच्चों के सामने नशा करने से बचें। सर्वोत्तम तो यही होगा कि वे नशा छोड़ दें। लेकिन यदि किसी कारणवश छोड़ नहीं पा रहे हों तो बीड़ी-सिगरेट घर से बाहर जाकर पीयें ताकि बच्चों पर बुरा प्रभाव न पड़े।

४) सार्वजनिक स्थलों पर नशे की सामग्री बेचने पर पाबंदी हो: हाँलांकि नियम बना दिये गये हैं, लेकिन नशे की सामग्री अभी भी कई जगहों पर खुलेआम बिक रही है। इसका सख्ती से पालन किया जाये।

५) नशे के परोक्ष विज्ञापन पर रोक लगे: नशे के प्रत्यक्ष विज्ञापनों पर तो रोक लगा दी गयी है। लेकिन दिल्ली में अभी भी कई दुकानों पर गुटखे के पैकेट फूलमालाओं की तरह लटके मिलते हैं। नशे के इस परोक्ष प्रचार पर पाबंदी लगे, और बीड़ी, सिगरेट, गुटखे इत्यादि को दुकानों में छिपाकर रखा जाये, मांगने पर ही दिया जाये।

६) नशामुक्ति के लिये विशेष अस्पताल खोले जायें: गाजियाबाद का नशामुक्ति केंद्र अपने आप में एक मिसाल है। लेकिन यह सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है। नशे से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में ऐसी और सुविधायें खोली जायें ताकि लोगों को न सिर्फ नशे से छुटकारा पाने में मदद मिले बल्कि नशे के कुप्रभावों के प्रति जनचेतना जागृत हो।

७) नशे के व्यापारियों को पुलिस और राजनेताओं का संरक्षण रोका जाये: जिस व्यक्ति से मैंने यह साक्षात्कार किया था, उसने मुझे बताया कि गाजियाबाद में नशे का सबसे बड़ा व्यापारी कौन है। वह कहता है कि जब भी यहाँ कोई नया पुलिस अफसर आता है, नशे का यह व्यापारी उसके घर दो कारें "तोहफे" के रूप में पहुँचा देता है। ऐसे में पुलिस भी उसके विरुद्ध कुछ नहीं करती।

८) डॉक्टरों की आचार-संहिता में नशे के विरुद्ध परिवर्तन किये जायें: यदि कोई मरीज अपने डॉक्टर से कहता है कि उसने फलाने व्यक्ति से अवैध मादक पदार्थ खरीदे, तो डॉक्टरों की आचार संहिता कहती है कि डॉक्टर को सिर्फ मरीज का इलाज करना चाहिये। नशे के कारोबार को रोकने का काम पुलिस का है, डॉक्टर का नहीं। इस आचार-संहिता को बदला जाये। सभी डॉक्टरों को नशे की घटनाओं की सूचना मरीज का नाम/पता जाहिर करते हुये जिला अधिकारियों को भेजना अनिवार्य किया जाये।

यदि भारत को विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो देश को लील रहे इस घिनौने कारोबार को हमेशा के लिये बंद करना होगा! आइये फेंक दें इन बीड़ी-बोतलों को और शुरु करें एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण!

7 टिप्‍पणियां:

Anil Pusadkar ने कहा…

नशे के मकड़जाल मे अब युवा और अबोध बच्चे भी फ़सते जा रहे है।रेस्त्रां मे अब बिना-तम्बाखू के हुक्के रखे जा रहे जो नशे की लत की शुरूआत समझी जा सकती हैं। नशे से दूर रहने वालों को समाज के कथित माडर्न लोग पिछड़ा मानते है और देखा-देखी बीयर-शराब पीने पर मज़बूर हो रहे हैं लोग्।सही लिखा आपने आज के लिये बेहद ज़रूरी पोस्ट।

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया पोस्‍ट है य‍ह ... इतनी कम उम्र में नशा की आदत पडने में सारी जवाबदेही अभिभावको की है ... अपनी महत्‍वाकांक्षा को पूरी करने में लगे मां बाप बच्‍चों के सोसाइटी पर बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं देते ...और बच्‍चों को जो बुरी आदतें लगती हैं उनसे बाद में पूरा परिवार तबाह होता है ... बच्‍चे जबतक होशियार न हो जाएं बच्‍चों को गलत सोसाइटी मिलनी ही नहीं चाहिए ... यह जवाबदेही अभिभावकों की ही है।

not needed ने कहा…

अनिल जी: बहुत ही प्रासंगिक सामाजिक तथा स्वस्थ्य से सम्बंधित मुद्दा उठाया है आपने. अमेरिका तथा पाश्चात्य देशों में तो दृग्स (drugs) का बहुतायत दुरूपयोग व् इस से होने वाले नुक्सान दुनिया देख ही रही है. भारत में इसका क्या इन्सिदेंस (incidence) है? वैसे विश्वसनीय आंकडे मिलने मुश्किल हो सकते हैं, लेकिन फिर भी कोई जानकारी हो!

कुन्नू सिंह ने कहा…

मैने फायर-फोक्स से पेमेंट सेंट किया था और फायर-फाक्स मे पेज को जल्दी आगे बढाने के लिये उसके बटन पर दो बार क्लिक करना पडता है।

अब सायद वापस नही हो सकता :(


हूं सिगरेट पिने का आदत तो मूझे 2009 मे पेपर(exam) के समय लगा था और मैने उसी वकत से छोड दिया क्यो कि मै ट्राई कर रहा था कि कैसे पिते हैं । थोडा सा धूवा लिया तो लगा की अब तो अंतीम समय आ ही गया है.

Anil Kumar ने कहा…

मुनीश जी, देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। भारत में नशीले पदार्थों के सेवन पर संयुक्त राष्ट्र और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने मिलकर शोध किया था। नतीजे यहां हैं।संक्षेप में:
तंबाकू = 55.8%
शराब = 21.4%
भांग = 3.0%
अफीम और उससे बने पदार्थ: 0.7%
औसतन, किसी भी समय 3.6% लोगों ने कम से कम एक नशीले पदार्थ का सेवन किया होता है। इनमें से अधिकांश युवा वर्ग के लोग होते हैं। धड़ल्ले से बिक रहे गुटखों की बाबत अब भारत मुंह और जीभ के कैंसर में सर्वोपरि हो चुका है, और बीड़ी-सिगरेट से होने वाले फेफड़ों के कैंसर में भी बढ़ोतरी हो रही है। ये सब आँकड़े बहुत चिंताजनक हैं। इसीलिये मैंने सुझाव दिया था कि नशे के विरुद्ध स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में मुहिम शुरू की जाये, और माँ-बाप खुद भी नशा करना छोड़ दें।

Paise Ka Gyan ने कहा…

Parrot in Hindi
Rabbit in Hindi
Saturn in Hindi
Tortoise in Hindi
Sparrow in Hindi
Mars in Hindi
Peacock in Hindi
Horse in Hindi

Paise Ka Gyan ने कहा…

Tiger in Hindi
Moon in Hindi
Uranus in Hindi
Sun in Hindi
Mercury in Hindi
Technology in Hindi
Venus in Hindi
Cow in Hindi