बुधवार, 15 अप्रैल 2009
छात्र जीवन की महिमा
मेरे विश्वविद्यालय में एक 85 वर्षीय वृद्ध ने पढ़ने के लिये दाखिला लिया। अमूमन भारत में ऐसा करने से लोग हिचकिचाते हैं, लेकिन अमेरिका में शिक्षा के लिये वाकई कोई उम्र नहीं होती। तीन साल पहले जब मैंने उन्हें कक्षा में देखा, तो उन्हें चलने में मुश्किल होती थी और रह-रहकर खाँसी भी उठती थी। इतने वयोवृद्ध व्यक्ति को कक्षा में देखकर मैं भौंचक था, सो मैंने जिज्ञासावश उनसे दोस्ती बढ़ाई। उनकी अपनी कंपनी है, जिसमें वह आसपास के अस्पतालों को डॉक्टर मुहैया करवाते हैं।
लेकिन छात्र जीवन में प्रवेश करके जैसे उनकी जिंदगी ही बदल गयी। उनका झुककर चलना बंद हो गया, सीना तानकर चलने लगे। जहाँ पहले उनके माथे पर झुर्रियों का आवास था, अब चेहरे पर सदा मुस्कान रहने लगी। उनकी दमे की बीमारी भी रहस्यमयी रूप से पूर्णत: ठीक हो गयी! जब वे पढ़ने आये थे, 90 साल के लगते थे। तीन साल बाद आज वे 50 के लगते हैं।
मैंने भी अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा छात्र के रूप में बिताया है। बारह साल स्कूल में, छ: साल मेडिकल कॉलेज में, और तकरीबन चार साल जनस्वास्थ्य कोर्स में पूरे कर चुका हूँ। इस दौरान देखा कि छात्र जीवन के बहुत फायदे हैं।
किसी भी घर में जाकर फोटो अलबम खोलकर देखिये, जिसकी मुस्कान सबसे बड़ी होगी, वह छात्र ही होगा। अन्यों की तुलना में छात्र अधिक खुश दिखायी देते हैं। घर से दूर रहने वाले छात्रों को कई समस्यायें होती हैं, जैसे कि रोटी-कपड़े का खर्चा, अकेलापन, मनपसंद खाने का अभाव इत्यादि। लेकिन फिर भी वे प्रसन्नचित्त रहते हैं। छात्र जीवन में मनचाहा खाना जितना भी खाओ, मोटापे के आसार कम ही रहते हैं। छात्रों के सोने-जागने की आदतें अक्सर प्रतिकूल पायी जाती हैं, लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर मुस्कान ही बनी रहती है, और उनका शरीर स्वस्थ ही रहता है।
मैं पिछले चार साल से खुद खाना बनाता हूँ, खुद ही सब्जी-तरकारी इत्यादि की खरीदारी करता हूँ, खुद ही घर की सफाई करता हूँ, जनस्वास्थ्य के साथ-साथ डॉक्टरी के भी कई इम्तिहान दे डाले, और एक पार्ट-टाइम नौकरी भी की। पीछे मुड़कर देखा जाये तो बहुत पापड़ बेले, लेकिन सब खुशी-खुशी निकल गया। यह छात्र जीवन की ही महिमा प्रतीत होती है।
मेरी मानिये आप भी किसी कोर्स में दाखिला ले लीजिये, जीवन बदल जायेगा!
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7 टिप्पणियां:
आप ने सही कहा, मैं भी किसी स्कूल या कॉलेज जाना चाहता हूँ, जिस से कुछ नया सीख सकूं। हालांकि जीवन सीखते ही गया है। वकालत का पेशा ही ऐसा है कि रोज कुछ न कुछ सीखना पड़ता है। पर कॉलेज का मजा कुछ और है। वहाँ जीवन का आनंद कुछ और है।
पर मुश्किल है कि वकालत से टाइम ही नहीं मिलता है। लोग कॉलेज बुलाते भी हैं तो कानून के बारे में बताने के लिए।
student life ke to kya kahne ...
bas ab to yahi aata hai ...
dil dhoondhta hai fir wahi fursat ke rat din
ये पक्का इत्तेफ़ाक है,
इस फ़ोटो में सबसे दाहिनी और खडी मोनिका सियरा मेरी भी दोस्त हैं। अरे वाह, छोटी सी दुनिया।
विद्यार्थी हो जाना तो निस्सन्देह काया पलट कर देता है किन्तु हमेशा युवाओं के साथ उठना बैठना भी आपको बूढा होने से बचाए रखता है।
हिंदुस्तान से हूस्टन: सफर के मजे आपने एक ही लेख में करवा दिए! लेकिन बन्धु याद रखना: डाक्टरी के धंधे में पढाई कभी बंद नहीं होती! खासकर अगर अमेरिका में ही अड्डा जमाये रखना है. अपने भारत में तो नीम हाकिम व् शिक्षित डॉक्टर एक ही डंडे से हांके जाते हैं!
भारत में सत्ताईस साल से अधिक के व्यक्ति को पीजी में नियमित छात्र होने की अनुमति नहीं है. यहाँ सौ प्राथमिक विद्यालय प्रवेश लेने वालों में से एक ही पीजी कर पाता है, फिर भी कॉलेज और संसाधनों की भारी कमी है. प्रोफेसरों की योग्यता के बारे में जितना कहा जाए कम है, ज्यादातर ने शायद ने नौकरी पाने के बाद एक भी किताब खोल कर नहीं देखी होगी. शिक्षा के स्तर का हाल यह है की, कोर्पोरेट जगत ने साफ़ कह दिया है 'मोस्ट ऑफ़ द इंडियन ग्रेजुएट्स आर नॉट एम्प्लोयेबल'. जो हैं भी उन्हें कम्पनियाँ रिक्रूट करने के बाद अलग से छः महीने की ट्रेनिंग देती हैं.
इन्ही कारणों से यहाँ चाहे तो भी कोई बड़ी उम्र का आदमी कॉलेज जा कर अपनी अधूरी पढाई पूरी करने का सपना नहीं देख सकता. पत्राचार ही उसके लिए एकमात्र आशा है.
दिनेशराय जी, छात्र जीवन के लुत्फ तो अनिल कान्त जी के चिट्ठों पर आपने ले ही लिये होंगे! अब किसी कोर्स में दाखिला ले ही लीजिये। वकालत के अलावा भी किसी और विषय के मजे लूटकर जीवन को "संपूर्ण" बनाने की ओर कदम उठायें!
विष्णु बैरागी जी की बात बिल्कुल सही है, जैसी संगत में रहेंगे, वैसे ही हो जायेंगे!
मुनीश जी, अपनी कर्मभूमि तो भारत ही है। काम भारत में ही होगा, चाहे कितनी ही देर क्यों न लग जाये।
विवेक जी, आपने जो स्नातकोत्तर कोर्स के लिये आयुसीमा बतायी है, क्या वह वाकई में सही है? यदि हाँ, तो शिक्षा को आयुसीमा की लगाम से बाँधने का मैं पहले ही विरोध कर चुका हूँ। यहाँ पढ़ें।
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