आज सुबह सोकर उठा, नहा-धोकर तैयार हुआ, और जैसे ही खिडकी खोली तो बाहर ये नजारा देखने को मिला!
आज मेरा ड्राइविंग टेस्ट भी था, लेकिन ऐसे मौसम में गाडी चलाना खतरे से खाली नहीं. इसलिये मैं तो रजाई ओढकर फिर से निद्रा की मुद्रा में चला गया! कल काम पर जाना है, उम्मीद है ये मुई बर्फ पिघल जायेगी. नहीं तो मेरे मरीजों का क्या होगा?
शनिवार, 19 दिसंबर 2009
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11 टिप्पणियां:
सही है सोओ सोओ हम तो यहाँ मुंबई की गर्मी में हैं और आपके यहाँ की बर्फ़ देखकर थोड़ी शीतलता महसूस होती है।
ओह्हो इत्ती ठंड .....बिल्कुल सही आईडिया है इस मौसम में इससे बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता ..सोईये आराम से चादर ...नहीं नहीं रजाई तान के
बहुत दिनो से सो रहे हो :)
कैसे हैं अनिल जी। आज तक बर्फबारी नहीं देखी है। रोमांच समझ सकता हूं। इतनी ठंड में कहां गाड़ी चलाने का ख्वाब देख रहे हैं। दिल्ली में इस साल रजाई गायब है। कंबल और चादर से ही रात कट जा रही है।
महेश जी ने कुछ कहा! सुना ना आपने?
हा हा
बी एस पाबला
मुंह ढक के सोईये, आराम बडी चीझ है. बधाई हो इस भाग्मभाग की जिंदगी मे पृकृति ने ऐसे फ़ुरसत के क्षण दिलवा दिये.
रामराम.
अब इस ठंड में बाहर जाने से अच्छा रजाई मे घुसे रहना ही अच्छा है...हमारी तो सुबह सुबह भजन सुन कर नींद टूट जाती है........जागो मोहन प्यारे जागो....;)
आपको इतने दिनों बाद देख कर प्रसन्नता हो रही है, आशा है कुशल से होंगे. कभी कभी हिंदी ब्लोगों की तरफ भी कृपा दृष्टि डाल लिया करें.
..नजारा अच्छा लगा.
क्या गज़ब का दृश्य है, अदभुत !
हाँ, सोना ही ठीक है इस मौसम में ।
अमरीका मे कहाँ है। कल हमारे साले साहब ने भी वर्जीनिया की बर्फबारी का सीधा प्रसारण दिखाया था और यहाँ जरमनी मे तो तापमान साहब - १० है।
भाई, हमारे यहाँ का हाल भी कुछ ऐसा ही है.
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