बुधवार, 29 अप्रैल 2009
काबुली वाला
रवींद्रनाथ टैगोर लिखित कहानी "काबुली वाला" मेरी पसंदीदा कहानियों में से एक है। अपनी बेटी और देश के लिये ऐसे प्रगाढ़ प्रेम का चित्रण सिर्फ टैगोर ही कर सकते थे।
अफगानिस्तान में युद्ध के कारण विस्थापित "रहमत" भारत में आकर जीविका के लिये फल-इत्यादि बेचने लगता है। इसी दौरान उसकी पहचान "मिन्नी" नामक बच्ची से होती है। मिन्नी में रहमत को अपनी बच्ची का स्वरूप दिखायी देता है। लेकिन कुछ समय बाद रहमत के नाम अफगानिस्तान से एक चिट्ठी आती है जिसमें उसकी बेटी की बीमारी की खबर होती है। यह खबर सुनकर रहमत अपने वतन अफगानिस्तान वापस लौटने का निर्णय लेता है। लेकिन मकान-मालिक से किराये की रकम पर झगड़ा होने पर उसका पठानी खून खौल उठता है और रहमत मकान-मालिक को चाकू मार देता है। हत्या के जुर्म के लिये रहमत को आठ साल की जेल हो जाती है। जेल से बाहर निकलने के बाद रहमत मिन्नी से मिलने जाता है, तो पता चलता है कि मिन्नी अब बड़ी हो गयी है और उसकी शादी होने वाली है। रहमत सोच में पड़ जाता है कि अब शायद उसकी बेटी भी शादी के लायक हो गयी होगी। और उसी समय रहमत अपने वतन लौट चलता है।
मन्ना डे के गाये इस गाने में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ है। मानवीय संवेदनाओं का किसी भी गीत में यदि सबसे खूबसूरत चित्रण हुआ है, तो मेरी नजर में इसी गीत में हुआ है। आशा है आपको भी पसंद आया होगा। आजकल की मसाला फिल्में देखने वालों की आँखों में भी यह गीत आँसू ला सकता है।
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20 टिप्पणियां:
आपने बिलकुल सही कहा ये गाना वाकई आँखों में आंसू ले आता है ...और कहानी भी बहुत ही मर्मस्पर्शी है
मेरा अपना जहान
गीत और कहानी दोनो ही बहुत मर्मस्पर्षी हैं. शुभकामनाएं.
रामराम.
सही बात है. यह अमर गीत है.
गीत और यह कहानी तो कभी भुलाई नहीं जा सकती है ...मुझे भी दोनों बहुत पसंद है ..शुक्रिया
बहुत ही सुंदर .
कम ही होता है कि कालजयी कथाओं पर फिल्म भारी पड़े। पर इसमें बलराज साहनी जी ने अपने अविस्मरणीय अभिनय से पठान के पात्र को साकार कर दिया था।
वाकई ये एक ऐतेहासिक मिसाल है दो देशों के बीच के सम्बन्ध की.
ये गीत तो हम बेवतनों को हर दफा रुला जाता है.
"काबुली वाला " अभी भी मेरे जहन में बैठी है. अविस्मरनीय कहानी.
yah geet main apne mobile ke madhyam se bhee sunta rahta hoon. mere blog par aapkee tippani milee. aapke vichar ne mujhe aapke blog tak khinch laya. Aashcharya hua ki aap door desh me rakhkar bhee Apne Bharat ke baare me itna sochte hain aur beintaha muhabbat karte hain.
Email: deepakkazh@gmail.com
इस अमर गीत की याद दिलाने का शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Meri bhi pasandida kahaniyon mein ek hai yeh.
इस गीत की एक खासियत के बारे में एक बार ओम थानवी जी ने अपने लेख में बताया था। इसमें काबुलीवाला अपने वतन यानि अफगानिस्तान के बारे में गाता है। यह गीत इतना मर्मस्पर्शी है कि हिन्दुस्तान में इस गाने को ऐ मेरे प्यारे वतन को भारत समझकर गाते हैं। फिल्मकार के सामने भी यह चुनौती रही होगी कि जब काबुलीवाला गाए तो भारतीय खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस करे। कहने की जरूरत नहीं कि इस कालजयी रचना ने सीमाओं को तोड़ दिया और दिल के भीतर बैठ गई।
कहीं आप भी तो अफगानिस्तान नहीं चले गए ?
अरे नहीं महेश जी, मैं अफगानिस्तान में नहीं हूँ. मैं संयुक्त राज्य अमेरिका में डाक्टरी की पढाई के लिये वापस आया हूँ. अभी इंटरनेट भी नहीं है, इसलिये चिट्ठे नहीं लिख पा रहा हूँ. समय की भी बहुत कमी हो चली है. धीरे-धीरे फिर से कुछ लिखना शुरू करता हूँ. धन्यवाद!
इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
ज्ञात हुआ आज आपका जन्मदिन है ...हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.
धन्यवाद लवली जी! :)
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं....!
हमारी ओर से भी बधाई
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