आज आपको एक कहानी सुनाता हूँ.
पिछले साल की बात है, दिल्ली शहर में एक लडका रहता था. आँखों पर काला चश्मा लगाना, "चिग्गम" चबाना, और महंगे-से-महंगे तकनीकी खिलौने खरीदना उसका शौक था. और जब इतने दिखावे करने की आदत हो तो लाजमी है कि कई "दोस्त" भी होने चाहिये जिन्हें ये खिलौने दिखाकर अपनी शान बढाई जाये. ये लडका सारा दिन अपने दोस्तों की महफिल में घिरा रहता, और शाम को घर पर आने के बाद उन्हीं दोस्तों से फोन पर गपशप करते-करते सो जाता.
फिर एक दिन लडके को नौकरी मिली. लेकिन दोस्तों की महफिल देर रात तक चलने के कारण वह कभी समय पर दफ्तर नहीं पहुच पाता था. नतीजतन एक दिन मालिक ने उसे काम से निकालने की धमकी दे डाली. लडके का दिल टूट गया, और वो घर आकर खूब रोया. उस दिन उसे पता चला कि वो संचार-माध्यमों के मायाजाल में किस कदर फँसा हुआ था. उसने एक-दो दिन फोन बंद करने की कोशिश की, लेकिन हर पाँच मिनट में वह फोन चैक करता, कि कहीं किसी का मिस-कौल या SMS न आया हो. उसे महसूस हुआ कि यह काम उससे अकेले न होगा.
लेकिन मदद माँगे भी तो किससे?
उस रात घर वापस लौटते हुए उसे एक महात्मा जी दिखायी दिये. उसने सोचा कि हो न हो, ये महात्मा जी उसकी मदद अवश्य करेंगे. लडके ने महात्मा जी को अपनी सारी दुविधा बतला दी. महात्मा जी ने कहा कि उसे छ: महीने के लिये घर-बार छोडकर हिमालय की किसी गुफा में जाकर रहना होगा, तभी इन फोन-इंटरनेट के चक्करों से छुटकारा मिल पायेगा. लडके ने महात्मा जी की कही बात मानी, और अगले दिन पौ फटते ही बस पकडकर हिमालय पहुँचा, जहाँ एक गुफा में वो छ: महीने रहा.
छ: महीने रहने के बाद वो वापस दिल्ली आया, और महात्मा जी को दरवाजे पर खडा पाया. लडके को महात्मा जी पर बहुत गुस्सा था, क्योंकि वो अभी भी फोन और इंटरनेट की लत छोड नहीं पाया था, और उसकी उंगलियाँ अभी भी फोन पर जैसे खुद-ब-खुद SMS करती चली जा रही थीं. लडके ने महात्मा जी को खूब गालियाँ दीं, और बैठकर रोने लगा.
महात्मा जी ने उसे रोता देखकर पूछा "बेटा, तूने हिमालय की गुफाओं में रहकर क्या किया?"
लडका बोला "वहाँ मैं अपना फोन और सौर ऊर्जा से चलने वाला एक चार्जर ले गया था. और छ: महीने घर से बाहर रहना था, इसलिये फोन में पचास हजार रुपये का रीचार्ज कूपन भी भरवा ले गया था, ताकि दोस्तों से बात होने में कोई दिक्कत न हो".
यह सुनकर महात्मा जी ने अपना सिर पीट लिया, और अंतर्ध्यान हो गये.
माया दुनिया में नहीं, अपने दिल में होती है. दिल पर काबू पा लें, तो माया की एक न चले.
पिछले साल की बात है, दिल्ली शहर में एक लडका रहता था. आँखों पर काला चश्मा लगाना, "चिग्गम" चबाना, और महंगे-से-महंगे तकनीकी खिलौने खरीदना उसका शौक था. और जब इतने दिखावे करने की आदत हो तो लाजमी है कि कई "दोस्त" भी होने चाहिये जिन्हें ये खिलौने दिखाकर अपनी शान बढाई जाये. ये लडका सारा दिन अपने दोस्तों की महफिल में घिरा रहता, और शाम को घर पर आने के बाद उन्हीं दोस्तों से फोन पर गपशप करते-करते सो जाता.
फिर एक दिन लडके को नौकरी मिली. लेकिन दोस्तों की महफिल देर रात तक चलने के कारण वह कभी समय पर दफ्तर नहीं पहुच पाता था. नतीजतन एक दिन मालिक ने उसे काम से निकालने की धमकी दे डाली. लडके का दिल टूट गया, और वो घर आकर खूब रोया. उस दिन उसे पता चला कि वो संचार-माध्यमों के मायाजाल में किस कदर फँसा हुआ था. उसने एक-दो दिन फोन बंद करने की कोशिश की, लेकिन हर पाँच मिनट में वह फोन चैक करता, कि कहीं किसी का मिस-कौल या SMS न आया हो. उसे महसूस हुआ कि यह काम उससे अकेले न होगा.
लेकिन मदद माँगे भी तो किससे?
उस रात घर वापस लौटते हुए उसे एक महात्मा जी दिखायी दिये. उसने सोचा कि हो न हो, ये महात्मा जी उसकी मदद अवश्य करेंगे. लडके ने महात्मा जी को अपनी सारी दुविधा बतला दी. महात्मा जी ने कहा कि उसे छ: महीने के लिये घर-बार छोडकर हिमालय की किसी गुफा में जाकर रहना होगा, तभी इन फोन-इंटरनेट के चक्करों से छुटकारा मिल पायेगा. लडके ने महात्मा जी की कही बात मानी, और अगले दिन पौ फटते ही बस पकडकर हिमालय पहुँचा, जहाँ एक गुफा में वो छ: महीने रहा.
छ: महीने रहने के बाद वो वापस दिल्ली आया, और महात्मा जी को दरवाजे पर खडा पाया. लडके को महात्मा जी पर बहुत गुस्सा था, क्योंकि वो अभी भी फोन और इंटरनेट की लत छोड नहीं पाया था, और उसकी उंगलियाँ अभी भी फोन पर जैसे खुद-ब-खुद SMS करती चली जा रही थीं. लडके ने महात्मा जी को खूब गालियाँ दीं, और बैठकर रोने लगा.
महात्मा जी ने उसे रोता देखकर पूछा "बेटा, तूने हिमालय की गुफाओं में रहकर क्या किया?"
लडका बोला "वहाँ मैं अपना फोन और सौर ऊर्जा से चलने वाला एक चार्जर ले गया था. और छ: महीने घर से बाहर रहना था, इसलिये फोन में पचास हजार रुपये का रीचार्ज कूपन भी भरवा ले गया था, ताकि दोस्तों से बात होने में कोई दिक्कत न हो".
यह सुनकर महात्मा जी ने अपना सिर पीट लिया, और अंतर्ध्यान हो गये.
माया दुनिया में नहीं, अपने दिल में होती है. दिल पर काबू पा लें, तो माया की एक न चले.
10 टिप्पणियां:
बाबा का अंतर्ध्यान होना ही ठीक था... बीमारी उन्हें भी लगने की पूरी संभावना है
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bahut badiya prastuti..
tabhi to kaha gaya hai...
Maaya moh maha thagini ham jaani, trigun fans liye bole madhur vaani...
मजेदार! लेकिन अनिल जी, आपने ब्लॉग का पता ही हिन्दी मे कैसे कर लिया? अनिल.blogspot.com मुझे बताइएगा? मैं तो अचंभित हूँ कि नाम हिन्दी में है।
हा हा हा
मिश्र जी, किसी भी साइट का पता हिंदी में करने के लिये IDN converter का इस्तेमाल कीजिये. ध्यान रहे कि URL को हिंदी में दिखलाने की क्षमता सभी broswers में नहीं है. सफारी यह काम बखूबी करता है, जबकि Firefox में आपको सिर्फ रोमन character ही दिखेंगे.
मुझे फेसबुकिया नामक बीमारी लग गई है इसका इलाज बताओ बाबाजी
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