शुक्रवार, 27 जून 2008
अपने ही देश में परदेसी
आज मैं एक भारतीय सज्जन से बात कर रहा था। जनाब आंध्र-प्रदेश से हैं। उनसे बातचीत के दौरान मेरे उत्सुकताभरे मन को एक सवाल पूछने की जिज्ञासा हुई। मैंने किसी और जनाब से (जो कि आंध्र से ही हैं) किसी ज़माने में एक शब्द सुना था - "तेलंगाना" - सो मैंने लगे हाथ इन्हीं से पूछ ही लिया - "यार ये बताओ कि ये तेलंगाना क्या चीज़ है"।
बस मेरा ये कहना था कि अचानक की उनकी आंखों में एक अजीबोगरीब चमक आई, और उनकी आवाज़ भी बुलंद हो चली। शब्द निकलने लगे, लेकिन जनाब इतने उत्तेजित हो चुके थे कि उनके शब्दों का मतलब निकालना मुशकिल हो चला। वो बस एक ही बात बार-बार बोले जा रहे थे - " मैन दीज़ कोस्टल पीपल आर रिच पीपल, मैन दीज़ कोस्टल पीपल आर रिच पीपल"। मैंने उन्हें थोड़ा टोकना चाहा - "लेकिन यार अगर वो रिच पीपल हैं तो क्या एक ही प्रदेश में दूसरा राज्य बना देंगे?"।
मेरी बात उनके कर्णपटह पर टकरा कर ऐसे नीचे गिरी जैसे कालिदास पेड़ की टहनी से गिरे थे। मेरे सुने को उन्होनें अनसुना करके फिर से वही आलाप शुरू कर दिया - "मैन दीज़ कोस्टल पीपल आर रिच पीपल"।
मैंने मन ही मन सोचा - "भले मानुस, मुझे अभी अभी पता चल गया है कि मैंने किसी नाज़ुक रग पर हाथ नहीं, पंाव रख दिया हो। लेकिन तुम पढ़े लिखे आदमी हो, अमरीका में रह रहे हो। कम से कम अपनी भावनाओं पर इतना तो काबू पा लो कि बोलने लायक सांस ले सको।"
अंत में मैंने किसी तरह विषय बदला और अपने कमरे में घुस कर अंदर से ताला लगा लिया।
अंग्रेज लोग बहुत चालाक निकले साले। जब तक हिंदुस्तान में थे, खूब खून चूसा हमारे देश का। जाते जाते कई टुकड़े कर गये। और आपसी भेदभाव और क्षेत्रवाद का ऐसा बीज बो गये, जो मिटाये ना मिटे।
बचपन की किताबों में पढ़ा था - भारत भांति भांति के लोगों का देश है। लगता है ये किताबें सिर्फ मैंने ही पढ़ी थीं - बाकी सारे लोग कुछ और ही सोच रहे हैं। मुझे लगता है कि भारत की आबादी अगर १ अरब है, तो देश को १ अरब टुकड़ों मे बांट देना चाहिये - इससे हर एक व्यक्ति के "कलचर" की "आइडेंटिटी" "प्रिज़र्व" रहेगी।
हम भारतीय लोग कब एक साथ मिलकर रहना सीखेंगे?
या फिर अंग्रेजों को दोबारा आना पड़ेगा?
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1 टिप्पणी:
ब्लॉग पढने या लिखने में अधिक रूचि तो नहीं है फिर भी हिंदी में "भारतीय" शब्द सुन कर अच्छा लगा. राज्यों की भीड़ में भारत तो खो ही गया है शायद |
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