बुधवार, 9 जुलाई 2008

सब झूठों का एक सच

मेरे मित्र कुमार उज्जवल से कल बात हुई. जनाब दिल्ली में एक विडियो पत्रकार हैं. एक नौकरी छूटने के बाद आजकल बेरोजगार थे. दनादन बढ़ते नए चैनलों की भरमार है, और आखिरकार एक चैनल ने उन्हें बुला ही लिया. कहा गया की अगले महीने उन्हें फ़ोन किया जाएगा और काम पर बुलाया जाएगा.

इधर एक महीना ख़त्म हो चला और बढती मेहेंगाई ने कुमार के सब्र के बाँध में सेंध लगनी शुरू कर दी. आखिरकार कुमार ने चैनल को फ़ोन किया. उन्होंने बोला "बुलाएँगे".

दो हफ्ते बाद भी कोई फ़ोन नही आया, तो कुमार ने फिर फ़ोन किया. इस बार भी वही जवाब आया "बुलाएँगे".

एक हफ्ते बाद कुमार ने फिर फ़ोन किया. इस बार चैनल वालो ने कहा की "आपको १००० रुपया कम तनख्वाह देंगे, चलेगा?" इस पर कुमार तुनक उठे - "यार बुलाना है तो बुलाओ, ये बनियागीरी मत करो".

चैनल वालों ने दोबारा फ़ोन करके उन्हें कहा है "कहीं और नौकरी मत पकड़ना भाई, हम आपको बुलाएँगे".

सालो, जब आदमी की जेब बिल्कुल खली हो जायेगी तब बुलाओगे? दिल्ली जैसे शेहेर में अकेले रह रहे बेरोजगार नौजवान को झूठे दिलासा देते शर्म नही आती? और वो भी न्यूज़ चैनल में होकर?

न्यूज़ चैनल का काम होता है सच बताना - अगर वही झूठ बोलने लग गए तो दुनिया में क्या बचा रह जाएगा यार?

कुछ तो सच बोलो! कम से कम अपने पेशे की तो लाज रखो.

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