शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

क्यों नहीं जाते हैं डाक्टर गांवों में?

३ दिन पहले विश्व चिकित्सक दिवस था। इसे आंग्लभाषा में "डाकटर्स डे" भी कहते हैं। अपने देश की राष्ट्रपत्नी ने भाषण दिया। (पहली महिला हैं जो राष्ट्रपति बनी हैं, मैं तो उन्हें राष्ट्रपत्नी ही कहूंगा)।

पढ़ाई और पेशे से मैं भी एक डॉक्टर ही हूँ। मैंने दिल्ली में पाँच साल तक मरीज़ों का इलाज किया है। अपने छोटे से पाँच सालों के तजुर्बे की बाबत मैं उनके भाषण पर कुछ टिप्पणीयाँ करना चाहूँगा।

यह सही है की भारत संसार में सबसे ज्यादा डॉक्टर और इंजिनियर पैदा करता है। लेकिन सिर्फ़ पैदा करने से ही सब कुछ नहीं हो जाता। परवरिश भी करनी पड़ती है। भारत के सबसे अच्छे मेडिकल कॉलेज से डाक्टरी करने के बावजूद मुझे २ साल तक नौकरी नहीं मिली। ओह, मिली तो थी, लेकिन ८००० रूपये में मेरा गुज़ारा नही चलता था - दिल्ली में तो कम से कम नहीं। फिर कुछ पैसा घर भी भेजना था। पैसे की इतनी तंगी मैंने कभी नहीं देखी थी। कभी कभी सोचता था, इससे तो अच्छा था कि मैं पास ही न होता, कम से कम पैसे की तो तंगी नहीं होती।

सरकारी नौकरी के तो और भी बुरे हाल थे। हालाँकि तनख्वाह थोडी अच्छी थी, लेकिन साल में पूरे हिन्दुस्तान में मात्र ५० डाक्टरों की मांग थी। मैं हर हफ्ते रोज़गार समाचार पढता था, हर तरह की नौकरियां पेश होती थीं, लेकिन कुल मिला के डॉक्टरों के लिए नौकरियां सारे अख़बार का १ प्रतिशत भी नहीं होती थीं। और अगर आपको डाक्टरी पास किए हुए १ साल से ऊपर हो गया हो, तो आप उन नौकरियों के फॉर्म भी नहीं भर सकते हैं। मैंने तो सुना था की जैसे जैसे डॉक्टर के बाल सफ़ेद होते जाते हैं, वैसे वैसे उसकी कीमत बढ़ती जाती है। लेकिन भारत सरकार पुराने डाक्टरों के प्रति भेदभाव कर रही है। ऐसे में पुराना डॉक्टर क्या करेगा? निजी हॉस्पिटल में काम करेगा। और निजी हॉस्पिटल कहाँ हैं? भारत के दूर दराज के गावों में? नहीं, वो अधिकतम शहर में ही हैं।

१९४७ से भारत की आबादी कितनी बढ़ी है, ये सभी जानते हैं । लेकिन उसके अनुपात में मेडिकल कालिजों की संख्या कितनी बढ़ी है? बहुत कम । निजी मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं, लेकिन जो आदमी डॉक्टर बनने के लिए निजी मेडिकल कॉलेज में २५-३० लाख रुपया खर्च करेगा, वो डाक्टरी पूरी होने के बाद गाँव में काम करेगा या शहर में? शहर में ही उस बेचारे को बैंक से लिए हुए अपने शैक्षिक ऋण उतारने का मौका मिलेगा।

ऐसी बात नही है की भारतीय बच्चे डॉक्टर नहीं बनना चाहते। वो बनना तो ज़रूर चाहते हैं, लेकिन उनके लिए मेडिकल कॉलेज अब कम पड़ रहे हैं। सरकार को चाहिए की आबादी के हिसाब से कई मेडिकल (और इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट भी) कॉलेज खोले ताकि सभी को पढने का मौका मिले।

गाँवों में न जाने का उलाहना देने से पहले गाँवों में अच्छे हॉस्पिटल बना कर उनमें दवाइयाँ भी रखनी चाहियें। सड़कें भी बनानी चाहियें और एक एंबुलेंस भी देनी चाहिए।

गाँव में काम कर रहे डॉक्टर के बीवी-बच्चों के लिए भी विकास के अवसर होने चाहियें। कम से कम गाँव में काम कर रहे डॉक्टर के बच्चे को स्कूल में फीस में छूट मिलनी चाहिए।

राष्ट्रपत्नी आगे कहती हैं की भारत में मेडिकल रिसर्च होनी चाहिए। जो लोग रिसर्च करते हैं, उनका तो आप ये हाल करते हो (डॉक्टर प्रदीप सेठ की कहानी सुनी है आपने? उन्होनें ऐड्स से बचने का टीका बनाया था, और उसके बाद उनके प्रोजेक्ट को मिलने वाला पैसा काट दिया गया था। शायद अपने राजनेता सोच रहे होंगे की १-२ साल और रुक जायें तो कोई गोरी चमड़ी वाला भी वोही टीका बना ही लेगा । फिर हम इंपोर्टेड टीके लगायेंगे अपने बच्चों को, जैसा कि आजतक लगाते आये हैं )। और जो डॉक्टर पश्चिमी दवाईयों को भारतीय शरीरों में डालकर उनका प्रभाव देखते हैं, उनको आप "अच्छा डॉक्टर और रिसर्चर" बताते हो।

MBBS जैसी डिग्री जो अंग्रेज लोग हमें दे गये थे, उसको अब आगे बढ़ने की ज़रूरत है। ज़्यादा से ज़्यादा स्नातकपूर्व कॉलेज खोलने की ज़रूरत है जिससे कि हर साल बनने वाले ३१००० MBBS डॉक्टर में से अधिक से अधिक अपने देश में ही मेडिकल दीक्षा पा सकें और विदेश जाने की ज़रूरत न पड़े।

दिल की भड़ास निकालने के बाद, आखिर में एक और चीज़। डाक्टरों को गाँवों में जाने की सलाह देने से पहले मैं भारतवर्ष के राजनेताओं से पूछना चाहूँगा की वे ख़ुद आखिरी बार गाँव में कब गए थे?

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8 टिप्‍पणियां:

रंजन (Ranjan) ने कहा…

आपको जो पढाई मिली है.. उसमे देशवासियों का पैसा लगा है..उनके प्रति आपकी नैतिक जिम्मेदारी है..

गांव के लोगो को जीने का हक है..

८०००/- मै आपका गुजारा नहीं होता कोई बात नहीं... पर केवल अपने गुजारे के लिये आप देशवासियों को मरता नहीं छोड सकते..

नेता गांव जाये ना जाये ये अलग मुद्दा है...

गावों मे बेहतर सुविधाए जरुर होनी चाहिये..

अनुनाद सिंह ने कहा…

आपने गावों की समस्या बतायी। सब सही है। किन्तु इसका समाधान यह नहीं है कि पहले गावों में शहरों जैसी सुविधायें मिलें तभी कोई डाक्टर वहाँ जायेगा। (न मन तेल होगा, न राधा नाचेगी)

आप खुद जानते हैं कि मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिये कितनी मारामारी है और कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। ऐसे में यदि कोई सरकार केवल इतना करे कि प्रवेश के समय ही गांवों में सेवा देने के इच्छुक डाक्टर चिन्हित कर ले । इन्हें प्रवेश में पांच-दस प्रतिशत अंकों का छूट हो; इनकी फ़ीस ४०-५०% कम ली जाय और इनसे पहले ही बाण्ड भरा लिया जाय कि ये कम से कम सात वर्ष तक गावों में काम करेंगे - तो बड़ी आसानी से काम बन जायेगा। ऐसा भी किया जा सकता है कि ठेठ गांव के स्कूलों में पढ़े हुए विद्यार्थियों के लिये कुछ विशेष आरक्षण दे दिया जाय।

Anil Kumar ने कहा…

आरक्षण हर समस्या का हल नहीं है। अगर हल होता तो बहुत सारी समस्याएं हल हो गयी होतीं आज़ादी के ६० सालों में। मेरा तो ये कहना है कि गावों आर्थिक विकास के बिना डाक्टर तो क्या, बाकी पेशेवर लोग भी वहां नहीं जाना पसंद करेंगे। सरकार को गांवों की चिकित्सा-संबंधी समस्याओं का निदान करने के लिये कुछ हटकर (यानि सीधी तरह) सोचने की ज़रूरत है न कि डाक्टरों को गांव में न जाने के लिये उनकी निंदा करने की।

महेन ने कहा…

आपके तर्कों से सहमत हूँ। रंजन और अनुनाद के तर्कों से भी असहमति नहीं है। वास्तव में यह मुद्दा लंबी बहस का विषय है। कुछ दिनों पहले ही "एक डाक्टर की मौत देखकर हटा हूँ। आगे बढ़ने का हक़ सभी को है इसलिये दूसरे को यह नैतिकता सिखाना कि जाकर 8000 की नौकरी करो सही नहीं है। एक सामान्य ग्रैजुएट भी इससे ज़्यादा कमा लेता है। मेरा मानना है कि हर डाक्टर के लिये कुछ वर्ष गांवो में खर्च करना आवश्यक बना दिया जाना चाहिये, ताकि जो पैसा उनपर खर्च किया गया है उसे वसूला जा सके। मगर तो भी पहले तो गांवो में ढंग के अस्पताल खोलने होंगे। अच्छे डाक्टर क्या कर लेंगे अगर न दवाई होगी न बिस्तर। अभी कुछ दिनों पहले पटना के एक सरकारी अस्पताल में डाक्टर-मरीज़ छाता लगाकर बैठे थे क्योंकि अस्पताल की छतें लीक कर रही थीं। ऐसी जगह व्यवस्था में कौन काम करना चाहेगा।

बेनामी ने कहा…

भारत में लोग दूसरों को उपदेश देने बे सर्वोपरि है.........गाँव की समस्याओं से सभी अवगत है.........हर कोई यह चाहता भी है समस्या का समाधान भी होना चाहिए.परन्तु जहाँ पर बात कुछ करने की आती है, तो लोग दूसरो का कन्धा ढूँढने लगते है उन्हें उनके दायित्वों का बोध कराने के लिए, और उन्हें उनकी सारी कर्तव्यनिष्ठा की सूची याद दिला देते है.........अफ़सोस चिकित्सकों के साथ भी यही होता है.....कोई उनकी समस्याओं को सुनने को तैयार नही......जैसे ही कहीं पर कर्तव्य निभाने की बारी आती है, बेचारे चिकित्सक को सबसे पहले खोज कर मंच पर बिठा दिया जाता है.........और फ़िर हर दिशा से उस पर नैतिकता के बाण गिरने लगते है........
चिकित्सक को हम भगवान के सामान सम्मान देते है, उन पर सरकार का पैसा लगा है, चिकित्सक का नैतिक कर्तव्य है लोगो की सेवा करना......इत्यादि इत्यादि.......परन्तु लोग यह भूल जाते है, की चिकित्सक भी एक इंसान है, और एक इंसान होने के नाते उसे भी भोजन की आवश्यकता होती है, उसे भी मनोरंजन की आवस्यकता होती है, उसे भी अपने घर के बिजली और पानी का बिल भरना होता है..........परन्तु नही, चिकित्सक पे तो सरकार का पैसा लगा है (जैसे के रेस के घोडे पर पैसा लगा हो), इसलिए चिकित्सक को चाहे नौकरी मिले न मिले, अपने बच्चो के लिए अच्छा विद्यालय मिले न मिले, अपने परिवार को अच्छे कपड़े-भोजन देने को मिले न मिले, उसे दौड़ना ही चाहिए, उसे गाँव में सेवा करनी ही चाहिए........
जहाँ तक सरकारी खर्चे की बात है, तो हम में से अधिकांश भारतीय या, तो सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालयों/विश्वविद्यालयों में पढ़ा होता है. सरकार का पैसा उन पर भी लगा है. कोई उनसे क्यों नही पूछता की आप क्यों नही जाते गाँव?? श्री रंजन जी, और श्री अनुनाद जी से मै पूछना चाहूँगा की आप किस गाँव में रहते है?? शर्तिया आप गाँव में नही रहते है.....अगर आप गाँव में होते, तो internet पर बुद्धिजीवी बनने के लिए internet तो दूर, आप के पास बिजली तक नही होती..........चलो माना आपने जीवनपर्यंत private school में शिक्षा ग्रहण करी अपने पैसो पर, फिर भी जिन नैतिक मूल्यों के आधार गाँव में सेवा करने का उपदेश आप दूसरो को दे रहे है, उसी आधार पर आपको भी गाँव में जा कर लोगो की सेवा करनी चाहिए.......और वो भी part time नही बल्कि full time........ आख़िर गाँव के लोग आपके भी देशवासी है, आप क्यों नही गाँव में जा कर बस जाते है उनकी सेवा के लिए?? तब शायद आपके नैतिकता के भाषण में थोड़ा वज़न बढे.
आरोप-प्रत्यारोप तो चलते ही रहेंगे, पर अगर आप गाँव की समस्या को वाकई सुलझाना चाहते है, तो सिर्फ़ नैतिकता के उपदेश से ज्यादा कुछ और भी करना होगा.....नैतिकता के उपदेश लोग पिछले ५० सालों से दे रहे है, उससे क्या लाभ मिला गाँव वालों को? फिर २६ जनवरी आएगा, फिर १५ अगस्त आएगा, और कोई मंच पर नैतिकता के पाठ पढ़ा कर चला जाएगा...........गाँव की समस्या वैसी की वैसी हे रहेगी, और लोग एक दूसरे के कन्धा खोजते रहेंगे दोषारोपण और उपदेश देने के लिए.........

Anil Kumar ने कहा…

समीक्षा में भाग लेने के लिये तहेदिल से शुक्रिया नीतेश। आपने ये बहुत तर्क की बात पकड़ी कि देश का पैसा तो सभी पर लगा है, फिर क्यों नहीं जाते इंजिनियर और मैनेजर गांव? गांवों को जरूरत तो उनकी भी है। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान कुल मिला कर लगभग १ साल से भी ऊपर गांव में बिताया है मैंने, और कुतुब मीनार के पीछे गंदी बस्तियों में जाकर लोगों का इलाज भी किया है। लेकिन क्या ये काफी है? नहीं!

बहस करें तो बहुत लंबी खिंच जायेगी, इसलिये कम शब्दों में कहना चाहूंगा - अगर कोई एक काम है जो सरकार को गांवों के लिये प्राथमिकता के साथ करना चाहिये, वो है सड़कों का निर्माण। औद्योगीकरण के इस समय में सड़क से ही सभी क्षेत्रों का विकास हुआ है, गांवों का भी होगा।

Dr.Parth Singh Meena ने कहा…

मई नीतेश की बातो से सौ फीसदी सहमत हु...भाषण देना बहुत आसान है पर हकीकत का सामना करना बहुत मुश्किल ....मेरे अपने घर से एक व्यक्ति सरकारी चिकित्सा अधिकारी हैं जो की एक गाँव में पोस्टेड हैं ..जिस गाँव में वो तैनात हैं वहां केवल ६ घंटे बिजली आती है....( नेट तो दूर की बात)...टॉयलेट की सुविधा नही है....पीने का साफ़ पानी नही है और रहने के लिए सरकारी आवास नही है...डॉक्टर कोई ऐरा गैर आदमी नही होता...एक किशोर जिसने सारे सुख त्याग कर किताबो के नाम अपना सारा वक्त लिख दिया हो वो mbbs में सेलेक्ट हो पता है...फ़िर साढ़े पाँच साल तक जवानी घिसने के बाद डॉक्टर बन पता है..ऐसा करते करते उसकी आधी ऊर्जा और पूरी जवानी खप जाती है ..फ़िर इसका इनाम ये की उसको ऐसी जगह नौकरी करने भेज दिया जाता है जहाँ वह अपने परिवार को रखना तो दूर की बात ख़ुद बारह घंटे भी नही टिक पाए ..
और ऊपर से शगूफा ये की डॉक्टर को तो सेवा के लिया बनाया जाता है....मै पूछता हु क्या इंजिनियर को सेवा करने हेतु नही तैयार किया जाता? फ़िर वो क्यों नही गाँव में जाकर रहता? करोडो रूपये कमाने वाले MBAs
गाँव में जाकर क्यों नही विकास की योजनाओ पर काम करते...काम करना तो दूर ये लोग वहां की सड़क पर चल भी नही सकते ...ठीकरा फूटे तो सिर्फ़ डॉक्टर के सर वो भी सिर्फ़ १०-१२००० की नौकरी के लिए...!!
यही वजह है की पिछले ३ वर्षो में जीव विज्ञानं लेने वालो छात्रो की भरी कमी हुई है ..कई स्कूल में तो जीव विज्ञानं सेक्शन समाप्त कर दिया गया है...आखिर क्यो कोई सिर्फ़ दिखावे का " भगवन " बनने के लिए अपनी जिंदगी से खिलवाड़ करे..

Dr.Parth Singh Meena ने कहा…

एक और बड़ी विचित्र बात है...अगर कोई जाहिल लेकिन अमीर बाप की बारहवी फ़ैल औलाद पैसे देकर किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पैसे के दम पर रो रोकर mbbs की डिग्री ले कर डॉक्टर बन जाए तो उसको कोई बुरा नही कहता मगर एक गाँव के सरकारी स्कूल में संघर्ष करते हुए पढ़ कर आरक्षण का लाभ लेकर mbbs में सेलेक्ट हो जाए और फ़िर बाकि लोगो के बराबर या उनसे अधिक मेहनत करके mbbs पास करके डॉक्टर बन जाता है तो उसको लोग हेय दृष्टि से देखते हैं..कमाल है....