शनिवार, 19 जुलाई 2008
जब कृष्ण और राधा का साथ तोड़ दिया गया
एक दिन भगवान कृष्ण को पृथ्वी की ख़बर लेने की सूझी। तो वे राधारानी के साथ मानव रूप धर कर दिल्ली आ पहुंचे। धरती की इतनी तरक्की देख कर दोनों बहुत खुश हुए। इतने में दूर से कहीं भजन गाने की आवाज़ सुनाई दी। कोई दूर से कृष्ण-भजन गा रहा था। कृष्ण और राधा एक दूसरे की ओर देख कर मन ही मन मुस्का दिए। फिर दोनों ही भजन की आवाज़ के स्रोत की तरफ़ चल दिए।
आखिरकार कुछ ही देर में भगवान कृष्ण और राधारानी वहाँ पहुँच ही गए जहाँ से भजन गाया जा रहा था। लेकिन वहाँ पहुँचते-पहुँचते भजन की आवाज़ इतनी अधिक बढ़ चुकी थी की दोनों के कान दुखने लगे। ऊपर देखा तो पता चला कि कुछ भोंपू जैसे दिखने वाले बड़े-बड़े यन्त्र लगे हुए हैं जिनसे बहुत ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ निकल रही है। कृष्ण ने सोचा, "जब मैं वृन्दावन में बंसी बजाता था, तब मुझे तो नहीं पड़ती थी ऐसे भोंपुओं की ज़रूरत। फिर भी सारी गोपियाँ खिची चली आती थी"।
ख़ैर, दोनों ने आगे जाने का फैसला कर ही लिया था। कुछ ही कदम दूर एक विशालकाय कृष्ण-मन्दिर दिख रहा था। उसे देखकर दोनों अपने-अपने कानों का दर्द भूलकर मन्दिर की और जल्दी-जल्दी बढ़ने लगे।
अन्दर पहुँच कर देखा तो श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ बैठी थी। सामने राधा और कृष्ण की मूर्तियाँ थी, जिनके एक ओर पुजारीगण बैठे हुए थे, और दूसरी ओर भजन गाने वाले। बस फिर क्या था, राधा और कृष्ण बैठ गए उस भीड़ में जाकर, और मधुर संगीत के साथ अपने ही भजनों का आनंद लेने लगे।
अभी उन्हें बैठे बैठे २ मिनट भी नहीं हुए थे की कृष्ण के कंधे पर किसी ने टोका। कृष्ण ने पीछे मुड़कर देखा तो ख़ाकी सलवार-सूट पहने एक महिला थी। उसके कंधे पर "सिक्यूरिटी" का बिल्ला लगा हुआ था। उसने कृष्ण से कहा, "आप दोनों एक साथ नहीं बैठ सकते। लेडीज दायें ओर, जेंट्स बांयें ओर।"
बेचारे कृष्ण कभी अपनी तरफ़ देखते, कभी राधा की तरफ़। खैर, अब मानव रूप धारण करके आए हैं तो मानव की बनाई हुई मर्यादाएं भी निभानी पड़ेंगी। कृष्ण बायीं ओर बैठ गए, और राधा दायीं ओर।
लेकिन संगमरमर की बनी राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ अभी भी आलिंगनबद्ध थीं।
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4 टिप्पणियां:
सही कह रहे हैं। राधा कृष्ण की भक्ति कर न थकने वाले प्रेमियों से चिढ़ते देखे जाते हैं।
घुघूती बासूती
ना इन्हे कोइ अलग कर सकता है और ना ये कभी अलग हुए थे शान दार
कृष्ण राधा को कौन अलग कर पाया ....:)
क्या बात हे,
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