भाग १: क्यों नहीं जाते हैं डाक्टर गांवों में?
भाग २: क्यों नहीं जाते हैं डॉक्टर गांवों में?
पिछले दो भागों में मैंने यह बताने की कोशिश की थी कि आखिरकार डॉक्टर गाँवों में क्यों नहीं जा रहे हैं। जैसा कि आपसे वादा किया था, इस समस्या का हल करने के लिए भाग ३ में अपने परिचित-अपरिचित कुछ डॉक्टरों के सुझाव-विचार प्रकट कर रहा हूँ।
"गाँवों का स्वास्थ्य सुधारने के लिए इन चार चीज़ों पर प्रमुख ध्यान देना होगा:
1. तनख्वाह को बढ़ाना
2. विपरीत कार्य-परिस्थितियों को दूर करना
3. वरिष्ठ डॉक्टरों द्वारा गाँव में हो रहे काम का नीरीक्षण
4. बढ़िया उपकरण और आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करना "
"न सिर्फ़ डॉक्टर, बल्कि मैनेजमेंट और बाकी स्नातकों को भी गाँव में जाने को प्रोत्साहित किया जाए। सिर्फ़ एक तरह के बुद्धिजीवी गाँवों का भला नहीं कर पाएंगे, सभी को मिलकर ये काम करना होगा। तीन व्यक्तियों की एक टीम: एक डॉक्टर, एक मैनेजर, और एक अध्यापक: जादू कर सकती है। लेकिन अकेले रहकर ये तीनों ही बेकार सिद्ध होंगे।"
"गाँवों में होने वाली अधिकतम बीमारियाँ गंदे पानी से पनपती हैं। गाँवों में पीने के लिए साफ़ पानी मुहैया कराने से काफ़ी सुधार होगा। शुरू-शुरू में बहुत पैसा लगेगा पाइपलाइन डलवाने में, लेकिन लंबे समय में बहुत फायदा होगा देश को।"
"सरकार गाँवों में कुछ पैसा लगाकर अस्पतालों को दुरुस्त करे, तो डॉक्टरों के वहाँ जाने के लिए अपने-आप प्रोत्साहित होंगे।"
"गाँवों में जाने वाले डॉक्टरों के लिए आर्थिक और शैक्षिक प्रोत्साहन दिया जाए, उनकी कद्र की जाए" (शायद किसी पुरस्कार द्वारा? जनाब ये कहना भूल गए कि कैसे?)
"क़ानून बनाकर डॉक्टरों को गाँवों में ठूंसने का विचार बिल्कुल ग़लत है, और यह कुछ देशों में नौजवानों को दी जाने वाली अनिवार्य सैनिक-सेवा के जैसा है। महाराष्ट्र में इस कानून को लागू किया गया था, लेकिन अभी-अभी डाक्टरी पास किए हुए नए डॉक्टर मरीजों का इलाज ठीक से नहीं कर पाए थे। ऐसे में फायदे की जगह नुकसान ज़्यादा हो रहा था गाँवों को। सिर्फ़ मेडिकल छात्रों और नए डॉक्टरों को गाँव में अकेले न भेजा जाए, उनके निरीक्षण के लिए मंझे हुए वरिष्ठ डॉक्टर भी गाँव जायें ताकि दी जाने वाली सेवा की गुणवत्ता अच्छी हो।"
"बलपूर्वक आप एक घोड़े को तालाब पर लाकर खड़ा तो कर सकते हैं, लेकिन उसे पानी पीने पर मजबूर नहीं कर सकते"
"मीडिया को गाँव से जुड़े मुद्दों को सामने लाना चाहिए, न कि बेकार लेकिन सनसनीखेज ख़बरों को। लोकतंत्र का ये तीसरा स्तम्भ अपनी प्राथमिकताओं को भूल रहा है। भारत के तमाम लोगों के सामने गाँवों से जुड़ी परेशानियां रखी जाएँ, और जागरूकता लायी जाए।"
जिज्ञासा-पिपासु रह गए हैं अभी भी? आगे पढ़ें:
1. http://www.issuesinmedicalethics.org/154ed152.html
2. http://www.worldbank.org/html/dec/Publications/Workpapers/WPS1800series/wps1888/wps1888-abstract.html
3. http://www.sciencedirect.com/science?_ob=ArticleURL&_udi=B6VBF-3VGC5RW-1D&_user=10&_rdoc=1&_fmt=&_orig=search&_sort=d&view=c&_acct=C000050221&_version=1&_urlVersion=0&_userid=10&md5=84bbc7f259d0fcaf61d80f5d36588929
रविवार, 20 जुलाई 2008
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2 टिप्पणियां:
बलपूर्वक आप एक घोड़े को तालाब पर लाकर खड़ा तो कर सकते हैं, लेकिन उसे पानी पीने पर मजबूर नहीं कर सकते"
--बिल्कुल सही. इसके लिए तो वैसा माहौल तैयार करना पड़ेगा. पसंद आया आलेख.
अच्छा सुझाव और अच्छा आलेख है।समीर जी ठीक कह रहे हैं।
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