सोमवार, 28 जुलाई 2008

वर्तमान के दोहे

आज मैंने जीवन में पहली बार कुछ कविता-दोहेबजी की है। कुछ आजकल के हालात पर है, और कुछ अपने साथी चिट्ठाकारों पर। क्योंकि ये मेरा "फर्स्ट टाइम" है, इसलिए "लाईटली" लें।

मुलाहिजा फरमाएं:
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परमाणु पर लीखिए, चाहे ज्ञान हो कोरा ।
खाली बाल्टी लीजिये, पीटत शहर ढिंढोरा ॥ १ ॥
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सारा देस जब जल रहो, शासक चैन तै सोवें ।
संसद में मेहनत करत, नोटों की गड्डी ढोवें ॥ २ ॥
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एक आरुषि मर गई, लगे करन सब त्राहि ।
गाँव गाँव किसान मरत, कबहूँ सुधि न लाही ॥ ३ ॥
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दूजन की चिट्ठी पढ़त, चेपत अपन चिट्ठों पर ।
पूछन पर कहत लगत, वा पाई थी फ्रीजा पर ॥ ४ ॥
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दूजन का चिट्ठा पढ़त, फिर चिपकात अपनाहूँ चिट्ठापर ।
विज्ञापन आय और वाहवाही को, लूटत चपर चपर ॥ ५ ॥
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2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

लिखते रहिये-सही दिशा पकड़ी है.. :) शुभकामनाऐं.

बेनामी ने कहा…

bhut sahi. jari rhe.