आज मैंने जीवन में पहली बार कुछ कविता-दोहेबजी की है। कुछ आजकल के हालात पर है, और कुछ अपने साथी चिट्ठाकारों पर। क्योंकि ये मेरा "फर्स्ट टाइम" है, इसलिए "लाईटली" लें।
मुलाहिजा फरमाएं:
==============================
परमाणु पर लीखिए, चाहे ज्ञान हो कोरा ।
खाली बाल्टी लीजिये, पीटत शहर ढिंढोरा ॥ १ ॥
==============================
सारा देस जब जल रहो, शासक चैन तै सोवें ।
संसद में मेहनत करत, नोटों की गड्डी ढोवें ॥ २ ॥
==============================
एक आरुषि मर गई, लगे करन सब त्राहि ।
गाँव गाँव किसान मरत, कबहूँ सुधि न लाही ॥ ३ ॥
==============================
दूजन की चिट्ठी पढ़त, चेपत अपन चिट्ठों पर ।
पूछन पर कहत लगत, वा पाई थी फ्रीजा पर ॥ ४ ॥
==============================
दूजन का चिट्ठा पढ़त, फिर चिपकात अपनाहूँ चिट्ठापर ।
विज्ञापन आय और वाहवाही को, लूटत चपर चपर ॥ ५ ॥
==============================
सोमवार, 28 जुलाई 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
लिखते रहिये-सही दिशा पकड़ी है.. :) शुभकामनाऐं.
bhut sahi. jari rhe.
एक टिप्पणी भेजें