रविवार, 17 अगस्त 2008

क्या देश में हजारों प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोल दिए जायें?


देश में मेडिकल कॉलेज की भारी कमी है। सभी जानते हैं। सरकार को मालूम भी है।

कल कोई कह रहा था कि सरकार यदि नए मेडिकल कॉलेज खोलने में आर्थिक कारणों से असमर्थ है तो ढेरों नए प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोल दिए जायें। यदि ऐसा किया गया तो क्या होगा? चलिए पहले इंजीनियरिंग कॉलेजों की कमी सरकार ने कैसे दूर करने की कोशिश की, उसपर एक नज़र डालते हैं।

इंजीनियरिंग कोलेजों की भारी कमी को दूर करने के लिए सरकार ने कई नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोले, प्राइवेट इंजीनियरिंग कोलेजों को खुलने की अनुमति दी, और साथ ही साथ ६ नए IIT खोलने का निर्णय लिया गया। इसका हश्र तो आजकल आपने अख़बारों में पढ़ ही लिया होगा - कि नई तो क्या पुरानी IIT में प्राध्यापकों की भारी कमी हो गई है। और पिछले महीने एक और रपट आई कि कमी न सिर्फ़ प्राध्यापकों की, बल्कि छात्रों की भी है!

मेडिकल कॉलेज के मामले में तो और भी बुरे हाल हैं। करीब १० साल पहले आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में सैकडों प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोले गए थे । मेरे कुछ परिचित डॉक्टर हैं जिन्होंने ऐसे प्राइवेट मेडिकल कोलेजों में २५-३० लाख रूपये का डोनेशन देकर दाखिला पाया। वे कहते हैं कि वहाँ पढ़ाई नहीं होती। न मरीज़ देखे जाते हैं। Medical Council of India वाले जब निरीक्षण करने आते हैं तो १०-१० रूपये देकर दिहाड़ी मजदूरों को अस्पताल के बिस्तरों पर लिटा दिया जाता है। इन प्राइवेट मेडिकल कोलेजों से डाक्टरी पास किए सभी डॉक्टर विदेश में आ बसने का सपना संजोये बैठे हैं। उनका तर्क ये है कि २५-३० लाख रूपये निवेश किए हैं, वसूलने तो विदेश में ही जायेंगे न, भारत में थोड़े ही कमा पता है कोई डॉक्टर इतनी रकम।

मैं यह कोई सुनी-सुनाई बात नहीं कह रहा हूँ - अपने आसपास होने वाली हकीकत बयां कर रहा हूँ।

सुझाव के लिए कुछ विचार:
  • मेडिकल कोलेजों की संख्या एकदम से न बढाई जाए, बल्कि हर साल थोड़ा-थोड़ा इज़ाफा हो। इससे शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक रहेगा।
  • देश के हर जिले में कम से कम १ सरकारी मेडिकल कॉलेज का लक्ष्य हो। बड़े जिलों में २ सरकारी मेडिकल कॉलेज हों। इससे जिले के छात्रों को अपने आसपास ही डाक्टरी करने को मिलेगी, विदेश तो क्या दिल्ली-मुंबई भी जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। (गौरतलब है कि भारत में करीब ६१२ जिले हैं, लेकिन सिर्फ़ २०० मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें से भी अधिकतम शहरों में केंद्रित हैं)
  • मेडिकल कोलेजों की बढती संख्या के अनुपात में डॉक्टरों के सरकारी नौकरियों में भी बढोतरी की जाए। नहीं तो हजारों नए डॉक्टर भूखे मरते नज़र आयेंगे, और विदेश भागने लगेंगे।
  • MBBS के साथ साथ स्नातकोत्तर मेडिकल कोलेजों की संख्या में भी धीरे-धीरे वृद्धि हो ताकि डॉक्टरों को विशेषज्ञ बनने के अवसर मिलें।
  • डाक्टरी की अन्तिम परीक्षा सारे देश में एक ही साथ एक ही प्रश्न-पत्र पर हो ताकि सरकारी और प्राइवेट कोलेजों में छात्रों को एक ही पैमाने पर तौला जा सके।
  • मेडिकल कोलेजों का निरीक्षण बिना पूर्व सूचना के, अकस्मात् किया जाए।
जैसा कि आप देख ही रहे हैं, कई पहलू हैं जो एक साथ अंजाम दिए जाने हैं। सिर्फ़ मेडिकल कॉलेज बढ़ाने से कुछ नहीं होगा। अब मैं यह देखता हूँ कि कौन माई का लाल स्वस्थ्य मंत्री होगा जो इन सबको कर के दिखायेगा।

3 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप से सहमत हे, फ़िर तो पेसो दो ओर डिग्री ले जाओ,धन्यवाद

Nitish Raj ने कहा…

अनिल मैं आप से सहमत हूं। पर कई घपले पिछले दिनों हुए उस से तो सतर्क रहना ही होगा।

संगीता पुरी ने कहा…

शिक्षा का क्षेत्र भी अब पूर्ण व्‍यावसायिक हो गया है .. विद्यार्थियों के भविष्‍य से अधिक महत्‍व पैसों का हो गया है .. खुद के आगे बढने की चिंता सबको है .. नैतिक अधोपतन से ही समाज में विकट स्थिति उतपन्‍न हुई है .. किसी न किसी रूप में इसका प्रभाव आनेवाली पीढी पर पडना ही है।