सोमवार, 18 अगस्त 2008

ओलंपिक के धोखे: भाग ३



कुछ लोग कह रहे हैं कि चीन में ओलंपिक खेलों की तयारी अमानवीय ढंग से की जाती है। नौजवान युवक और युवतियों को कालापानी की तरह स्टेडियम में बंद करके उनसे दिन-रात मेहनत करायी जाती है ताकि वे अपने देश का नाम रोशन कर सकें। मात्र ३-४ साल की उम्र में ही इन बच्चों को घर से उठाकर स्टेडियम में डाल दिया जाता है, और दिन-रात खेल का प्रशिक्षण दिया जाता है। कुछ खेलविदों का कहना है कि ऐसे खिलाड़ियों से खेल की नहीं बल्कि सैन्य-शिक्षा की भावना ज़्यादा झलकती है। वे कहते हैं कि ये खेल भावना के साथ धोखा है।

मैं कहता हूँ कि यह धोखा नहीं है। हमारे देश में भी तो कई अभिभावक अपने बच्चों को कमरे में बंद करके उनसे दिन-रात पढ़ाई करवाते हैं ताकि वे डॉक्टर, इंजिनियर बनकर उनके परिवार का नाम रोशन करें? भई आख़िर आत्म-प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए कोई कुछ भी कर सकता है। इसमें धोखे वाली बात कहाँ से आ टपकी?

और मरने के लिए सिर्फ़ खेल भावना ही थोड़े है, दूसरी भी भावनाएं हैं भारत में जिनपर लोग मर मिटते हैं। ५ दिन पहले ख़बर मिली कि एक युवक ने देवी के सम्मान में जीभ काटकर चढा दी। फिर मौके पर इलाज न मिलने की वजह से उसकी मौत भी हो गई। देवी को प्रसन्न करने चला था, देवी के पास ही पहुँच गया। ज़रा सोचिये यही युवक यदि जीभ काटकर मरने के बजाय चीन के जैसे किसी स्टेडियम में डाल दिया जाता, तो कम से कम भारत के लिए कुछ पदक-वदक तो जीत लाता?

खैर छोडिये, अब किसे पड़ी है पदकों की? इस बार का एक पदक तो हमने जीत ही लिया है। कोटा पूरा हो चुका है। अब ४ साल तक मेहनत करने की कोई आवश्यकता नहीं रही है।

ओलंपिक के धोखे: भाग १ | भाग २ | भाग ३ | भाग४

5 टिप्‍पणियां:

admin ने कहा…

किसी भी क्षेत्र में कामयाबी तभी मिलती है, जब उसे जुनून की हद तक किया जाए। शायद चीन की कामयाबी का यही एक राज है। मेरी समझ से जुनून एक आंतरिक भाव है, जो किसीभी प्रकार जबरन नहीं पैदा किया जा सकता।

राज भाटिय़ा ने कहा…

चीन मे आज जो भी हे हमारे से बेहतर नही तो गन्दा भी नही हे, सभी देशो मे कानुनो मे सख्ती हे, ओर वह कानुन सव के लिये हे चाहे आलु हो या लालु. उस मुर्ख जवान क मर जाना ही उचित था जिस ने अंधविशवास के पीछे मर गया, अगर मरना ही था तो किसी नेता ,किसी गुण्डे को ले कर मरता, फ़िर अगर चीन मे सख्ती हे तो उस का रजल्ट यहा देखे..
http://news.bbc.co.uk/sport1/hi/olympics/medals_table/default.stm
धन्यवाद, एक अच्छे लेख के लिये

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ेगा, और जबरन किसी से मैडल नहीं जितवाया जा सकता जब तक कि उस की खुद की इच्छा न हो।

बेनामी ने कहा…

दरअसल चीन निंदा के नए नए रिपोर्ट पश्चिम मीडिया (विशेष कर BBC) ही निकल रहा है है.......क्यों निकाल रहा है, इसके लिए लोगो को ज़्यादा दूरदर्शी या विद्वान होने की ज़रूरत नही है, दरअसल अगला Olympic, लन्दन में ही है.....पश्चिम के लोग हमेशा एशिया मुल्को को भिखारी समझते है, परन्तु चीन ने उद्घाटन समारोह में ही जो सकती और समृद्धि का प्रदर्शन किया, उससे अच्छे अच्छो की बोलती बंद हो गई है........
विशेषज्ञों का कहना है, की अब ज़्यादा पैसे खर्च कर के भी चीन जैसा Olympic, लन्दन में नही बनाया जा सकता, क्युकी पैसे खर्च करने पर भी वो लोग अब इतने मानव-श्रम इकठ्ठा नही कर पाएंगे, जितना की चीन ने पास था (भले ही लोगो से तथाकथित बलपूर्वक काम करवाया गया हो)
तो अब ऐसे परिस्थिति में क्या किया जाए??.........अंगूर तो खट्टे लग रहे है?.........अरे ये तो खट्टे अंगूर ही है!! :)

Udan Tashtari ने कहा…

सब अमरीकन साजिश से चीन को बदनाम करने की.