(सरकार तुम्हें अच्छी शिक्षा नहीं दे सकती क्योंकि हमें अपने देश के दुश्मनों को सबक सिखाना है। )
एक मित्र ने मुझे कल बताया कि उसने ऑरकुट पर किसी कन्या का बहुत ही सुंदर प्रोफाइल देखा। उस कन्या के विचारों में बहुत दम है, और जो भी लिखती है, बहुत सटीक लिखती है। मेरी मित्र ने सोचा कि उसे दोस्त बनाने के लिए पहल करे, लेकिन फिर देखा कि वह तो पाकिस्तान से थी। इसीलिये मोबाइल नम्बर उपलब्ध होने के बावजूद मेरी मित्र ने उस पाकिस्तानी कन्या से संपर्क नहीं किया।
मेरे पूछने पर उसने कहा "कहीं कुछ अनबन हो जाती तो?"। उसका कहना है कि यदि वही कन्या अमेरिका या इंग्लैंड से होती तो संपर्क बनाने में कोई हिचक नहीं होती, फिर चाहे वह मूल रूप से पाकिस्तानी ही क्यों न हो।
"राजनैतिक डर" के चलते दो समान विचार वाले व्यक्ति एक दूसरे से विचार-विमर्श न कर पाएं, अपना ज्ञान न बाँट पाएं, इससे दुखद बात और क्या हो सकती है? खासतौर पर जब दोनों देशों में शिक्षा का घोर अभाव है।
लोग हमेशा आपस में प्यार-प्रेम से रहना चाहते हैं। लेकिन ये नेता हैं जो उनको हमेशा लड़ाते रहते हैं।
सुधार के लिए विचार: किसी भी व्यक्ति को उसकी राष्ट्रीयता से नहीं बल्कि उसकी काबिलियत और नीयत के हिसाब से पहचानें।
12 टिप्पणियां:
बिलकुल सही ओर सच्ची बात की, हे आप ने हीरा कही भी पडा हो, कहलायगा तो हीरा ही,उचविचार
धन्यवाद
ye bhed mit jaye to desh chaman ho jaye,fir in netaon ki to zarurat hi nahi rahegi,lekin abhi do deshon me to kya do pradeshon me,do dharmon me nahi do pantho me har kahin wahi haal nazar aayega.achhi post.badhai
भाटिया जी से मैं सहमत हूं, अनिल आज आपकी ये पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा। शायद ये सरहद की बात है।
शत प्रतिशत सही बात है..
खुदा खैर करे..
किसी भी व्यक्ति को उसकी राष्ट्रीयता से नहीं बल्कि उसकी काबिलियत और नीयत के हिसाब से पहचानें।
-बिलकुल सही.
panchhi nadiya pavan ke jhonke koi sarhad inhen na roke. sarhaden insanon ke liye bani..........
ye gana bas itna hi aata hai aage nahin aata (par mujhe lagta hai ki ye gana yahan ekdum fit baithata hai.
हीरा गटर में भी पड़ा हो तो वह हीरा ही रहता है. आभार.
आप से सोलह आने सहमत हैं। लेकिन यहाँ तो देश में ही अनेक प्रतिबंध हैं जी। जाति है, धरम है, और भी हैं न जाने क्या क्या?
इस आभासी दुनिया में न तो कोई पाकिस्तानी है और न ही हिन्दुस्तानी ...यहां भौगोलिक सीमायें कहाँ है भाई ,यह तो वसुधैव कुटुम्बकम है हाँ इस आभासी अस्मिता को बाहरी दुनिया में पहचानने जानने की कोशिश ही क्यों की जानी चाहिए .
अनिल जी,
आपके इस कथ्य को पढ़कर मुझे फराज साहब की एक पंक्ति याद आती है-
"मैं हवा हूँ कहाँ है वतन मेरा"
सचमुच रचनाकारों का तो कोई वतन नहीं होता.
इसी बात को बशीर बद्र साहब दूसरे अंदाज में कहते हैं की-
"मैं अपनी जेब में अपना पता नहीं रखता"
मुझे उम्मीद है मेरी इस भावना को आप अपने दोस्त तक पहुँचा देंगे.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
ये तो एकदम गलत किया आपके मित्र ने।
पाकिस्तान में रहने वाले सारे लोगों को दुश्मन जैसा मान लेने से ही बड़ी मुश्किल से ये दोनों देश उबर नहीं पा रहे हैं।
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