बचपन से सुनता आ रहा हूँ:
पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब - खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब।
नतीजा? कभी कभार क्रिकेट ज़रूर खेला, लेकिन व्यायाम से कोसों दूर रहा।
लेकिन १३-१४ साल की उम्र में भगवान ने कुछ सोचने-समझने की ताकत दे दी। अपने आसपास देखा। मेरी बाज़ुएँ कमज़ोर थी, १० मिनट भाग नहीं सकता था। अपने आसपास बड़ों को भी देखा - सबकी तोंद निकली हुई थी। कभी कभी आश्चर्य होता था कि एक मोटा पुलिसवाला किसी चोर का पीछा कैसे करेगा?
उस दिन से मैंने प्रण कर लिया - रोज़ व्यायाम करने लगा, और क्रिकेट छोड़कर फुटबॉल खेलने लगा। शरीर मज़बूत हुआ, और आश्चर्य तो तब हुआ जब रोजाना ३ घंटे खेलने के बावजूद मेरी पढ़ाई भी अपने आप अच्छी होती चली गई। समझ में नहीं आया, यह हुआ तो क्यों हुआ?
आज मैं एक डॉक्टर हूँ। भारी-भरकम मेडिकल रिसर्च पेपर पढ़कर उनसे काम की बात निकलना सीख गया हूँ। तो आज सुनाता हूँ कुछ काम की बातें।
जब आप व्यायाम करते हैं, तो शरीर में कई बदलाव आते हैं। दिमाग में बहुत सारे हारमोन स्रावित होते हैं जिनसे शारीरिक दर्द दूर होता है। याद है कभी-कभी खेलते हुए चोट लगती है लेकिन पता भी नहीं चलता? और खेलना बंद करते ही दर्द होता है? इसीलिये।
व्यायाम करते समय अधिवृक्क ग्रंथियों से एड्रीनलीन हारमोन स्रावित होता है, जिससे दिल, धमनियों और फेफडों की खूब कसरत होती है। कसरत से दिल की बीमारी, फेफडों की बीमारी, रक्तचाप, मधुमेह इत्यादि रोग भाग खड़े होते हैं। जो लोग रोजाना दौड़ते हैं, उनका जीवनकाल अधिक लंबा और स्वस्थ होता है।
यदि आप कसरत करने के बाद तुंरत पढ़ाई करने बैठ जाते हैं, तो ये सभी हारमोन आपकी समझने और याद करने की क्षमता बढाये रखते हैं, और पढ़ाई फर्राटेदार तरीके से चलती है। यह बात आपको कोई भी नहीं बताएगा। आज़माके देखें!
सभी विक्सित देशों में लोग आमतौर पर रोजाना व्यायाम करते देखे जाते हैं। मैं अमेरिका में रह रहा हूँ, और यहाँ सुबह ४ बजे से लेकर रात के १२ बजे तक भी लोग सड़कों पर दौड़ते नज़र आते हैं। भारत में कभी सड़कों पर किसी को दौड़ते नहीं देखा। शायद प्रदूषण से डरते हैं, या कुत्तों से, या फिर पुलिसवालों से।
और एक बात जो मेडिकल रिसर्च आपको नहीं बताती। वह यह कि कसरत करने से देश को ओलंपिक में मैडल मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है। यकीन नहीं आता तो जितेंदर, विजेंदर, अखिल और सुशील कुमार से पूछ के तो देखें!
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12 टिप्पणियां:
sahi kaha aapne.
अरे वाह,
हिन्दी ब्लाग जगत में एक तो बन्धु मिले जो दौडने की बात कर रहे हैं । मैं जनवरी में ह्यूस्टन मैराथन दौड रहा हूँ । मैने भी दौडने पर कुछ लेख लिखे हैं आपको समय मिले तो अवश्य पढें :-)
http://antardhwani.blogspot.com/2008/07/blog-post_17.html
http://antardhwani.blogspot.com/2008/01/blog-post.html
http://antardhwani.blogspot.com/2007/10/blog-post_2735.html
http://antardhwani.blogspot.com/2007/06/blog-post_26.html
साभार,
दोड़ते रहे..
मेरे विचार में भी खेलो, कूदो और सीखो ही सही सिद्धान्त है।
पर भारत में व्यायाम बस खानापूर्ती मात्र है. भला हो बाबा रामदेव का .. जो लोगों में व्यायाम और योग की अलख जगा रहे हैं.
जानकारी से भरपूर ताजगी भरी पोस्ट ..
आप के आलेख से पता तो लगा कि नीरज दौड़ाक भी हैं।
बहुत अच्छा लिखा है .....जानकारी भी है ...
आपके विचार से पूर्ण रूप से सहमत हूं. व्यायाम को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना चुका हूं. कभी किसी कारण से अगर कई दिन छूट जायें तो एक अजीब किस्म की लेथार्जी तारी हो जाती है.
ज्यादातर तो स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग ही करता हूं, लेकिन तमन्ना है कार्डियो-वैस्क्युलर वर्काउट भी ज्यादा किया जाये. वैसे अब उम्र भी इसी की आने वाली है :)
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यदि कोई अवश्यकता भयंकर हो जाये, तो...
उससे मुँह मोड़ लेने ही भलाई है... और वही तो हम कर रहें हैं !
आँखें खुल गई. :) अच्छा आलेख मगर कर पायें तो काम बने.
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
Bahut Achi Jankari Hai Sir
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