तीन दिन पहले जब मैं इस मकान में घुसा, तो बाहर से तो बहुत चमक-दमक दिखायी दी। दिल में थोड़ी खुशी हुयी, कि चलो हम भी बढ़िया मकान में कुछ दिन बितायेंगे। लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खोलकर ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ा, स्थिति थोड़ी बदल गयी। इधर-उधर पुराने कागज़ और पीकर फेंके गये गिलास बिखरे पड़े थे। थोड़ा और ऊपर जाने पर मकान का अंदरूनी दरवाज़ा खुला, और खुलते ही एक मेज़ दिखी। मेज़ न हुयी, भानुमति का पिटारा हो गयी। मेज़ पर जाने क्या-क्या बिखरा पड़ा था - चिट्ठियाँ, अखबार, गिलास, बासी खाने से भरी प्लेट, बिखरी चाय, पिज्जा का खाली डिब्बा, व्यायाम करने के लिये डंबल, एक हुक्का, और भी जाने क्या-क्या।
फिर पाँच कमरों में पहले से ही पाँच लड़के रह रहे हैं, तो मेरे लिये लिविंग रूम (ड्राइंग रूम) में सोफे पर चादर बिछा दी गयी। कमरे का हाल तो आप देख ही रहे हैं - यहां भी फर्श पर सब कुछ बिखरा पड़ा है। और कमरे में तीन हुक्के भी बिखरे हुये हैं जो पूरे घर को तंबाकू की महक से सुसज्जित किये हुये हैं। रात भर तंबाकू की महक के मारे खाँसता रहा, बड़ी मुश्किल से नींद आयी। सुबह साक्षात्कार के दौरान नींद ने हमला किया तो कॉफी पीकर लड़ता रहा। किसी तरह दोपहर ३ बजे साक्षात्कारांत हुआ और मैं वापस अपने दड़बेनुमा घर में आ घुसा।
यहां बाथरूम का तो ऐसा हाल है कि सेंसर बोर्ड के डर के मारे फोटो भी नहीं दिखा सकता। नमूने के लिये एक फोटो पेश है (नीचे देखें)। और गंदगी इतनी कि समझ में नहीं आ रहा था कि मैं यहां नहाकर अपने आपको साफ कर रहा हूं या गंदा कर रहा हूं।
जल्द ही भूख ने हमला किया। फ्रिज खोला तो ऐसी बदबू आयी जैसे कुत्ते के माँस को तड़का लगाकर पकाया गया है। फटाफट फ्रिज बंद किया, और बाहर निकलकार थोड़ी ताजा हवा खाई। फिर बगल में एक भारतीय रेस्तराँ दिखा, तो वहाँ जाकर शाही पनीर ऑर्डर किया। सालों ने चीनी डालकर बनाया था - कहीं अमरीकियों की जीभ न जल जाये मसालों से। खैर भूख लगी थी तो जल्दी-जल्दी गटक गया।
रसोई का हाल थोड़ा बेहतर था। कूड़ा कूड़ेदान में फेंका गया था, और फर्श साफ-सा दिख रहा था।
इतनी गंदगी मैंने भारत में किसी घर में नहीं देखी जितनी यहाँ इन नवयुवकों ने फैलायी हुयी है। अचरज की बात है कि ये पाँचों लड़के पढ़े-लिखे हैं और बहुत ही बढ़िया विश्वविद्यालयों में डिग्री कर रहे हैं। एक तो एमबीबीएस डॉक्टर भी है। घर में झाड़ू भी दिखा, और वैक्यूम क्लीनर भी - लेकिन इन यंत्रों को इस्तेमाल कौन करता है, ये मेरे लिये हमेशा एक रहस्य ही बना रहेगा।
बहुत सुना था बॉस्टन शहर के बारे में, लेकिन इन लड़कों ने जो हाल बना रखा है, उससे तो भगवान बचाये!
6 टिप्पणियां:
एक कहावत है 'तू भी रानी, मैं भी रानी, तो कौन भरेगा पानी'
वही चरितार्थ होती लगती है।
ऍसे रूम देखने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं। किसी भी कॉलेज के हॉस्टल में ऍसे नमूनेदार लड़कों के रूम आपको मिल जाएँगे। हमने तो इंजीनियरिंग में अपने बैच के लरकों के ऍसे रूम देखे जहाँ बेड तक पहुंचने के लिए आपको दस बारह सामानों के ऊपर पेर रहकर पहुँचना पड़े :)
ये "हरकतें" वे तभी तक कर सकेंगे जब तक वे बैचलर हैं… मनीष से सहमत कि यह एक आम आदत है कि जब हॉस्टलनु्मा मकान में लड़के एक साथ रहते हैं तो यह होता ही है, जब हम होस्टल में थे तब साप्ताहिक सफ़ाई करते थे, और प्रति रविवार को एक लड़के का नम्बर यानी कि अपना नम्बर आते-आते एक महीना लगता था, ऐसे में एक महीने में एक बार सफ़ाई करना नहीं अखरता था… :)
हाँ कुछ लड्को के होस्दल के कमरे मैने भी देखे हैँ.कुछ लोगो की आदत ही होती है.
हाँ कुछ लड्को के होस्दल के कमरे मैने भी देखे हैँ.कुछ लोगो की आदत ही होती है.
हाहा.......मैंने सच में इससे भी कहीं ज़्यादा गंदे घर देखे है.......दरअसल जब कुछ लोग साथ रहते है, तो सफाई हर कोई दूसरे के सर पर मढ़ना चाहता है........पर मैंने जो गन्दगी के विश्व विजेता देखे है, वो अकेले रहते थे.....एक का कमरा पूरा ecosystem था, जहाँ तिलचट्टे, फफूंद, चूहें, बासी भोजन, मकोडे और मनुष्य सभी सामंजस्य के साथ रहते थे.......सभी एक दूसरे के अस्तित्व का पूरा सम्मान करते थे, और ecosystem को बनाये हुए थे....... हा हा हा
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