सिर्फ़ १० आतंकियों ने मुंबई में कितनी तबाही फैलाई , यह किसी से छुपा नहीं है। और अब सार्वजनिक कैमरों से जो विडियो आ रहे हैं, उन्हें देखकर साफ़ पता चलता है की भारत में न तो पुलिस के पास उनसे लड़ने की क्षमता है, और न ही आम नागरिकों के पास। AK-47 का जवाब पुलिस की लाठी कैसे दे सकती है?
इस विडियो में देखें की दो पुलिस वाले छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन पर एक आतंकी का कैसे सामना कर रहे हैं। एक पुलिस वाले के पास पुरानी राइफल है, जिससे उसने कुछ गोलियां चलायी भी, लेकिन आतंकी की AK-47 के सामने उसकी एक न चली। दूसरा पुलिसिया लाठी से "लैस" था, और दुम दबाकर भाग लिया।
मुझे सरकार से कोई अपेक्षा नहीं है की वह मुझे सुरक्षा देगी। कलियुग में यदि सुरक्षा चाहिए, तो ख़ुद लड़ना होगा। जैसे उस आतंकी ने पाकिस्तान में सैन्य शिक्षा पाई थी, वैसी ही सैन्य शिक्षा भारत में मुझे भी दी जाए, ताकि फिर कभी कोई आतंकी दिखाई दिया तो साले से लड़ तो सकूं। यदि मरना ही है तो लड़ते हुए क्यों न मरें?
बुधवार, 3 दिसंबर 2008
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4 टिप्पणियां:
बहुत कम पढ़े लिखे लोग सैन्य शिक्षा की मांग उठा रहे हैं, आमतौर पर यह मुद्दा उठाना टैबू माना जाता है या हिंदू आतंकवादी प्रवृत्ति का प्रतीक और पॉलीटिकली इनकरेक्ट, वैसे लोगों को अनिवार्य यौन शिक्षा कहीं ज़्यादा ज़रूरी लग रही है.
कोलेज में ncc बेहतर विकल्प है.. और ६ महिने कि ट्रेनिगं दे तो और भी बेहतर.. वक्त जरुरत काम आये..
आपके दिल की आवाज़ आज हर सच्चे भारतीय की आवाज़ है. आप ने अपना कीमती समय मेरे ब्लॉग को दिया आभारी हूँ. नेट पर कम ही आता हूँ. कभी आपकी शुक्रगुजारी अदा न कर पाऊँ तो माफ़ कर दीजियेगा.
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