आपसे निवेदन है कि किसी के जीने-मरने का सवाल है, २ मिनट कहानी पढ़कर फैसला अवश्य दें।
"राम" और "करीम" दो भाई थे। एक साथ मिलजुलकर रहते थे। लेकिन उनके मकान मालिक ने उन दोनों को अपने ही घर में बंदी बना रखा था। वह उनपर बहुत अत्याचार करता था। दोनों भाइयों ने लंबे अंतराल तक अत्याचार सहा। लेकिन जब अति हो गयी तो दोनों ने साथ मिलकर मकान मालिक के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी। आखिरकार मकान मालिक उनको छोड़कर जाने के लिये राजी हो गया। लेकिन धूर्त जाते-जाते घर को दो हिस्सों में बाँट गया। मकान बंटने से दोनों भाइयों में तकरार शुरू हो गयी। पलंग मेरा, कुर्सी तेरी इत्यादि। किसी बीच-बचाव के आभाव में दोनों ने लाठी उठाकर एक दूसरे की पिटाई कर डाली। राम के पलंग का आधा हिस्सा करीम ने हथिया लिया और पलंग के बीचों-बीच कीलें ठोककर लकीर बना दी।
रह-रहकर वे दोनों एक दूसरे से लड़ते रहते। कोई समझौता होते न देख करीम ने दूर गली में रहने वाले दोस्त "नत्थूखैरे" से हस्तक्षेप करने की अपील की। नत्थूखैरे बहुत चालाक था, वह मन ही मन राम और करीम से जलता था। उसे पता था कि यदि ये दोनों एक हो गये तो बहुत ताकतवर हो जायेंगे। नत्थूखैरे ने दोनों को एक-दूसरे से सुलह करने के बजाय पीठ-पीछे चुगली करके लड़ने को मजबूर किया। राम को कहता रहा कि तुम अच्छे आदमी हो, धीरज रखो। और करीम के हाथ में डंडा पकड़ा दिया कि तुम राम की जम के पिटाई करो। इन दोनों की लड़ाई देखकर बाजू में रहने वाला "चिंतन" भी बीच में आ फसा, और उसने भी राम की पिटाई करके पलंग का एक हिस्सा हड़प लिया।
कई सालों तक दोनों भाई रह-रहकर लड़ते रहे।
करीम शरीर से कमज़ोर था, लेकिन डंडे के बल पर उसने राम का जीना हराम कर दिया। एक दिन तो हद ही हो गई। करीम ने सोते समय राम की छाती पर इतने जोर का प्रहार किया कि राम पीड़ा के मारे बिलबिला उठा। राम को जिंदगी में पहली बार गुस्सा आ गया।
अब आप ही फैसला करें।
शनिवार, 6 दिसंबर 2008
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1 टिप्पणी:
राम का तो ऐसा है कि सात पड़ोसियों से उसका घर घिरा हुआ है। हैसियत और ताकत में सिर्फ चिंतन ही उसके आस-पास है। मौके-बेमौके, दुख: सुख में भी वह सबके काम आता है। फिर भी उसकी प्रगति को देख जलने वालों की कमी नहीं है। यहां तक की उसके अपने परिवार वाले ही उसको नोचने-खसोटने में लगे रहते हैं। अब तो उसके हितैषी उसे यही सलाह देते हैं कि - वह खुद ही को इतना सक्षम बना ले कि मोहल्ला, देश, संसार वाले तो क्या भगवान भी उसकी इच्छा के बगैर पत्ता ना हिलाये।
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