बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

श्री राम सेना को गांधी का जवाब



श्री राम सेना ने भारत की बालाओं को संस्कृति सिखाने का जो ज़िम्मा उठाया है, उसपर आजकल खासा बवाल उठ खड़ा हुआ है। मेरा यह मानना है कि किसी को आदेश देना, और उसकी अवहेलना करने पर उसको पीटना आतंकवाद का ही एक रूप है। ओसामा बिन लादेन और प्रमोद मुतालिक में रत्ती भर का फर्क नहीं है।

लेकिन इस आतंकवाद का विरोध कैसे किया जाए? कुछ महिलाओं ने श्री राम सेना के कार्यालय पर तीन-चार हज़ार गुलाबी चड्डियां भेजने का फैसला किया है। हालांकि चड्डी पुरूष और महिला दोनों पहन सकते हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति में गुलाबी रंग अक्सर महिलाओं के साथ जोड़ा जाता है। इसीलिये शायद इन पबगामी बालाओं ने गुलाबी चड्डियां भेजने का फैसला लिया होगा।

कहीं-कहीं सुनने में आ रहा है कि उनके विरोध का यह तरीका गांधीवाद से प्रेरित है।

क्या आज महात्मा गांधी जिंदा होते तो क्या वे भी श्रीराम सेना को गुलाबी चड्डी भेजते?

मुझे ऐसा नहीं लगता।

सबसे पहले वे वह तरीका आजमाते जिसका हक़ सभी को है - न्याय पाने के लिए न्यायपालिका जाना। कचहरी में केस दाखिल करके श्रीराम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक की पेशी करवाई जाए, और उनके ख़िलाफ़ उनके गुंडों द्वारा पीटी गई महिलाओं के बयान लिए जाएँ। यदि कोर्ट फैसला सुनाता है कि प्रमोद के गुंडों ने वाकई क़ानून तोड़ा था तो उन्हें सज़ा मिलेगी। यदि यह साबित होता है कि पब जाना जुर्म है तो पब बंद हो जायेंगे। मामला साफ़।

यदि कोर्ट पबगामी महिलाओं के विपक्ष में फैसला सुनाता है फिर उनके पास और भी रास्ते हैं। जनता में अपनी मांगों के लिए जागरण-अभियान चलाना उनमें से एक है।

लेकिन अभियान "सविनय" होना चाहिए - नहीं तो गांधीजी कभी भी उसे अनुमति नहीं देंगे। यदि आतंकवाद के दबाव में आकर कोई अपना विनय खो दे तो उसमें और आतंकी में कुछ ख़ास फर्क नहीं रह जाएगा। इन बालाओं ने पुरुषों को महिलाओं की चड्डियाँ भेजने से कोई "विनय" नहीं दिखाया है।

अब अन्याय और आतंकवाद के विरुद्ध सविनय लड़ने की आवश्यकता है।

5 टिप्‍पणियां:

Dr. Praveen Kumar Sharma ने कहा…

बसे पहले वे वह तरीका आजमाते जिसका हक़ सभी को है - न्याय पाने के लिए न्यायपालिका जाना।
ये क्या कह डाला आपने ?
जहा तक याद है समाचारों में सुना था की पब में पीटी गयी/ गया पबगामी आधुनिक भारतीय रिपोर्ट लिखवाने के लिए आगे नही आया. अगर व्यक्तिगत रूप में पूछा जाए तो इनका जवाब होगा की कौन ऐसे सड़क छाप लम्पटो से (श्री राम सेना) से दुशमनी मोल ले. जो क़ानून प्रदत्त आपने अधिकारों के लिए लड़ नही सकते वो ही भारत के प्रगतिशील और आधुनिक विचारो वाले लोग है. ये कोई नयी बात नही है, गाँधी जी के ज़माने से के पहले से ऐसे तथाकथित प्रगतिशील लोगो का एक बड़ा वर्ग भारत में मौजूद था और आगे भी रहेगा. जिनको अपनी आत्मा से प्रेम ना हों, समाज से प्रेम ना हों (जिसके लिए वो गुंडों से मुकाबला कर सके ) वो पब में जा के नशे में डूब के ही दूसरो से प्रेम करने का नाटक कर सकते है. उनको वैलेंटाइन डे का मतलब सिर्फ़ इतना ही पता है की कुछ पि लिया जाए गिफ्ट ले लिया जाए दे दिया जाए, वो सेंत वैलेंटाइन नही हों सकते, जो की मनुष्य के नैसर्गिक जरूरतों के दमन के विरोध में सत्ता के सामने खड़ा हों जाए.

Anil Pusadkar ने कहा…

चड्डी भेजने से समस्या हल हो जाती तो सारी व्यवस्थाओ को खतम कर देना चाहिये।सड़्के चाहिए ,अस्पताल चाहिए चड्डी भेजो।पता नही किसके दिमाग की उपज है। आपने सही लिखा,आपसे सहमत हूं।

विष्णु बैरागी ने कहा…

नहीं। गांधी किसी कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाते। वे उपवास पर बैठते और अत्‍याचार करने वालों के कल्‍याण की प्रार्थना करते। उनका उपवास पर बैठना बडी घटना होता। समाल भी उद्वेलित हो, उनका साथ देता और अत्‍याचारी अपने किए पर लज्जित हो सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करता। गांधी 'वृत्ति' के विरोधी थे, 'व्‍यक्ति' के नहीं।

Girish Kumar Billore ने कहा…

मुझे यकीं ही नहीं विश्वाश है की प्रेम के प्रोत्साहक विचार सदैव सर्वोपरि होंगे

बेनामी ने कहा…

जी आपने सही कहा है अब देश को सुधारने का जिम्मा प्रमोद मुतालिक के हाथ ही आ गया है । पहले संघ बजरंग दल मिलकर किया करते थे अब पद बदल गया है धन्यवाद