सोमवार, 30 मार्च 2009

स्वयंशिक्षा से सर्वशिक्षा



भारत में प्राचीनकाल से ही शिक्षा पर बहुत जोर दिया जाता रहा है। विश्व में सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला और नालंदा के ही तो थे।

लेकिन आज भारत में स्कूल-कालेजों की घनघोर कमी है। हजारों विश्वविद्यालय होने के बावजूद लोगों को अपने मनपसंद कोर्स में दाखिला नहीं मिल पाता। दाखिला मिल जाने के बावजूद कभी-कभी समय और धन के अभाव में कोर्स को जारी रखने में मुश्किल आ सकती है।

हर पेशे में सफल होने के लिये डिग्री होनी आवश्यक नहीं है (जैसे कि संगीत, लेखन, सौफ्टवेयर इत्यादि)। ऐसे में स्वयंशिक्षा विचारणीय सिद्धांत बन जाता है।

पेशे से एक डाक्टर होने के बावजूद मैंने स्वयंशिक्षा के सहारे अपने आपको कई विषय सिखाये, जैसे कि वेबसाइट बनाना, गिटार बजाना, फोटोशाप में चित्रसंपादन करना, फोटोग्राफी, और अब चिट्ठे लिखना भी! और आजकल मैं विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत सीख रहा हूँ। यह सब वे हुनर हैं जो जीवन भर मेरे साथ रहकर मेरे जीवन में ज्ञान और आनंद की भरमार करते रहेंगे। जब मैं अपने आप को कई विषयों में शिक्षित कर सकता हूँ, तो आप भी कर सकते हैं!

स्वयंशिक्षा के कई फायदे हैं। आप अपनी मनपसंद शैली से अपने मनपसंद विषयों में ज्ञानार्जन कर सकते हैं। खुद सीखने में कोई समयसीमा नहीं होती, और इम्तिहानों की टेंशन भी नहीं होती। और सबसे बड़ी बात, अपने आप किसी कला के माहिर बनने से आपके आत्मविश्वास को बहुत बल मिलेगा।

लेकिन आखिर स्वयंशिक्षा शुरू कैसे की जाये?

१) एक विषय चुनें जिसमें आपकी रुचि हो।

किसी विषय में अपने आप को शिक्षित करने के लिये विषय में रुचि होना बहुत जरूरी है। उदाहरण के लिये चित्रकला, पाककला, संगीत, इतिहास, भूगोल, राजनीति, या फिर चिट्ठाकारी। तो सबसे पहले तो आप एक विषय निर्धारित करें जिसमें आपकी सीखने की रुचि हो। भई मैंने तो संस्कृत सीखने का फैसला कर लिया है!

यदि आपकी बहुत सारे विषयों में रुचियाँ हैं फिर भी आप एक समय में एक ही विषय पर ध्यान दें। नहीं तो सभी चीजें एक साथ सीखने के चक्कर में कुछ भी नहीं सीख पायेंगे।

ध्यान रखें कि कुछ विषय ऐसे हैं जिनमें आपको कालेज गये बिना शिक्षा नहीं मिल पायेगी, जैसे डाक्टरी, वकालत इत्यादि। इनमें स्वयंशिक्षा से आप कभी पेशेवर नहीं बन पायेंगे।

२) पुस्तकालय में जाकर अध्ययन शुरू करें

विषय मिलने के बाद अपने आस-पास एक पुस्तकालय ढूंढकर उसके सदस्य बनिये। मोबाइल और अंतरजाल के इस युग में भी पुस्तकें ज्ञान का भंडार हैं। कोई भी पुस्तक छापने से पहले लेखक उसे कई बार संपादित करता है ताकि पुस्तक अच्छा ज्ञान दे। पुस्तक आप अपने साथ कहीं भी लेजाकर पढ़ सकते हैं। पुस्तक पढ़ने के कई और फायदे भी हैं, जिनकी खोज मैं आपपर छोडता हूँ। पुस्तकालय जाकर अपने निर्धारित विषय पर अधिक से अधिक पुस्तकें पढ़ें। नये विचारों को अपनी नोटबुक में लिखें, और बाद में उन्हें दोबारा पढ़ें।

३) अंतरजाल से अध्ययन में सहयोग लें

पुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ अंतरजाल भी आपकी स्वयंशिक्षा में योगदायी सिद्ध हो सकता है। विकिपीडिया से आप रोचक लेख पढ़ सकते हैं। MIT ने अपने सारे कोर्स अंतरजाल पर मुफ्त रख डाले हैं, जरा नजर मारिये। और यदि कुछ भी सामग्री कहीं नहीं मिल रही है तो गूगल पर एक खोज मारें, बहुत कुछ मिलने की उम्मीद रहती है। लेकिन याद रखें, अंतरजाल पर समय नष्ट करना आसान है, इसलिये जब भी कंप्यूटर पर बैठें, एक लक्ष्य लेकर ही बैठें।

४) अपनी प्रगति का ब्यौरा रखें

यदि अपनी प्रगति आप अपने शब्दों में ही एक डायरी में लिखते रहें तो इससे आपका हौसला बना रहेगा, और शिक्षा को एक दिशा और गति मिलेगी। कुछ लोग आजकल सीखते हुये चिट्ठों पर अपनी कहानी बयाँ करते हैं।

५) विषय सीखने वाले अन्यों से संपर्क करके नेटवर्किंग करें

तकनीकी विषय (जैसे कंप्यूटर इत्यादि) सीखने में यदि कोई मित्र मदद करे तो सीखने में बहुत ही कम समय लगता है। अन्य विषयों को सीखते हुये भी, यदि आप और सीखने वालों से संपर्क में रहें तो शिक्षा न सिर्फ आसान अपितु रोचक भी हो जाती है। पुस्तकालय में बैठकर पुस्तकें पढते हुए भी आपको कई समरुचि वाले व्यक्ति मिल जायेंगे।

६) वास्तविक अनुभव का कोई सानी नहीं है

अपने सीखे विषय को जहाँ भी मौका मिले, व्यक्तिगत जीवन में इस्तेमाल करें। मैं आजकल अपने आप संस्कृत सीख रहा हूँ। अगले कुछ दिनों में एक सज्जन मेरे पड़ोस में पधार रहे हैं जो संस्कृत पर मजबूत पकड़ रखते हैं। उनसे संस्कृत में वार्तालाप करूंगा। यह "वास्तविक अनुभव" मुझे दुनिया की कोई पुस्तक या अंतर्जाल पर कोई भी वेबसाइट नहीं दे सकती। इससे पहले भी जब मैंने अपने-आप फोटोग्राफी सीखी थी, तब मैं अपने सभी दोस्तों के घर होने वाली पार्टयों में जाकर फोटो खींचता था, जिससे मेरी फोटोग्राफी में चार-चाँद लग गये हैं।

निष्कर्ष: पुस्तकों, मित्रों और अंतरजाल के माध्यम से आप खुद को कई विषयों में पारंगत कर सकते हैं।

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