मंगलवार, 31 मार्च 2009

भई बड़े महंगे खिलौनों से खेल रहा है भारत!

कल उड़ीसा में "अचानक" ही एक तूफान आया। बिजली के खंभे उखड़ गये, घर टूटकर बिखर गये, और जहाँ देखो वहाँ हाहाकार मच गया। भारत ने दर्जनों उपग्रह छोड रखे हैं मौसम की टोह लेने के लिये। उनसे ली गयी तस्वीरें भी समाचारों में नियमित रूप से दिखायी जाती हैं। लेकिन सिर्फ तस्वीरें लेने से काम नहीं चलता. मौसम विभाग में बैठे किसी विषेशज्ञ को वह तस्वीरें देखकर मौसम की भविष्यवाणी भी करनी होती है।

इस बार लगता है कि विशेषज्ञ साहब भविष्यवाणी करना भूल गये. नतीजा आपके सामने है:





और कहानी यहाँ पर खत्म नहीं होती। तूफान से दर्जनों लोगों के मरने के बाद भी मौसम विभाग को किसी तूफान की कोई सूचना नहीं है - उनका "तूफान पन्ना" अभी भी खाली है - यहाँ चटका लगाकर देखें

हमारे देश के प्रतिभावान इंजीनियरों ने उपग्रह तो बनाकर कक्षा में स्थापित कर दिये, लेकिन उन उपग्रहों से ली गयी सूचना सरकारी महकमों के अंधेरे गलियारों में लटकती रहती है। सरकारी महकमों के काम करने का अंदाज निराला होता है। फाइलें सरकने में कई दशक लगा देती हैं। लेकिन कुछ महकमे ऐसे होते हैं जहाँ लोगों की जान दाँव पर लगी होती है - कम से कम उन्हें तो मुस्तैद कर दो!

कुछ सुझाव:

१) मौसम विभाग इस तूफान की पहले से खबर क्यों नहीं दे सका - इसकी जाँच की जाये, और दोषियों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाये, जिससे सरकारी महकमे आम आदमी की जान से खिलवाड़ करना छोड़ें।
२) मौसम विभाग के "तूफान डिपार्टमेंट" को चुस्त रखा जाये, फिर चाहे वह छंटनी करके हो, या फिर कर्मचारियों को नयी ट्रेनिंग देकर।
३) नये प्रस्तावित उपग्रहों को तब तक प्रक्षेपित न किया जाये जब तक उनसे ली गयी सूचना को आम जनता के इस्तेमाल में लाने की योजना न बना ली जाये।

हम भारत हैं, अमेरिका नहीं जो इतने महंगे खिलौनों से खेल सकें।

7 टिप्‍पणियां:

Everymatter ने कहा…

every govt. department is busy in corruption even the department which created to stop corruption.

L.Goswami ने कहा…

हम सिर्फ लिखकर खीज उतार सकतें हैं ..और कुछ नही कर सकते

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

उड़ीसा हाईकोर्ट को चाहिए वह केन्द्र और राज्य सरकारों से पूछे कि कहाँ कोताही हुई। उड़ीसा उच्चन्यायालय के वकील इस तरह की जनहित याचिका भी प्रस्तत कर सकते हैं।

Neetesh ने कहा…

भारतीय सरकारी तंत्र कई बार इस हद तक निकम्मा हो जाता है, की फिर अन्दर का क्रोध फूट पड़ने लगता है........पता नहीं लोग सरकारी विभागों में जाते ही इतने निकम्मे क्यों हो जाते है? क्या उन्हें बिना काम की तनख्वा लेने में रत्ती भर भी ग्लानी नहीं होती?? मैं यह नहीं कह रहा की सभी सरकारी कर्मचारी कामचोर होते है, या सरकारी दफ्तरों में काम बिलकुल नहीं होता, पर क्या इस सच से भी मुझ मोडा जा सकता है की सरकारी दर्फ्तारो में काम निजी दफ्तरों से १० गुना सुस्त रफ्तार से चलता है?? और फिर ऐसी घटनाओ की और क्या तार्किक व्याख्या निकाली जा सकती है?? क्यों हो जाते है हम इतने कामचोर सरकारी दफ्तर जाते ही? एक वजह जो सर्वविदित है वह यह, की आपको नौकरी से कोई हटा नहीं सकता. वो आपको निलंबित कर सकते है, पर नौकरी से निकालने के लिए तो संजीवनी बूटी खोजने जितना महनत करना पड़ेगा. तो इस अमरत्व के वरदान का अच्छा इस्तेमाल किया हम भारतीयों ने.......हो गए कामचोर!
पर किसी एक महकमे की कामचोरी के लिए दुसरे विकास को रोकना भी मैं सही नहीं मानता.......अगर मौसम विभाग के कर्मचारियों में सुस्ती है, तो इसका मतलब यह नहीं की हम दुसरे प्रगति कार्यो को भी बंद कर दे......यह एक नकारात्मक तरीका होगा....... ज़रुरत है कर्मचारियों को चुस्त करने की, न की उपग्रहों की प्रगति को सुस्त करने की. हमें तो और उत्तम और आधुनिक उपग्रह बनाना चाहिए. अगर हम सिर्फ यह सोच कर उसका विकास रोक दे, की सरकारी महकमे की सुस्ती की वजह से उसका दुरुपयोग होगा (या उपयोग ही नहीं होगा), तो हम एक दुसरे क्षेत्र के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे. जो काम भी पहले हो (चाहे उपग्रह पहले छूटे, या पहले उपग्रह के उपयोग का तंत्र बने), काम होते रहना चाहिए बस!

not needed ने कहा…

जिम्मेदारी फिक्स की जाये: यह कार्य - संस्कृति देश में आ जाये तो देश का कल्याण हो. नहीं तो हमारे नेता व् बाबू लोग आमोद -प्रमोद में लगें ही हुये हैं !

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

इस देश में केवल राजनीति ही है जिस पर खुल कर चर्चा होती है .बाकी जीवन से जुड़े मुद्दों पर बात करनें के लिए किसी के पास वक्त नहीं है .

Anil Kumar ने कहा…

Everymatter जी, माना कि सभी भ्रष्ट हैं, लेकिन इस भ्रष्टदेव को सबके सामने लाना हर भारतीय का कर्तव्य है।

लवली जी, लिखकर खीज तो उतर ही जाती है, थोड़ा सा जन-जागरण का "मिशन" भी हो जाता है। हम तो सिर्फ कर्म कर रहे हैं, फल की चिंता "ऊपरवाले" के हाथ छोड़ें :)

दिनेशराय जी, इस मसले पर मुझे लगता है कि उड़ीसा से कोई-न-कोई जनहित याचिका या फिर RTI जरूर दाखिल करेगा।

नीतेश की टिप्पणी में कुछ ज्वलंत प्रश्न हैं जिनपर शीघ्र ही चर्चा की जायेगी।

मुनीश जी, जिम्मेदारियाँ तो सबकी पहले से ही फिक्स हैं, संविधान में सब कुछ लिखा है। लेकिन इन जिम्मेदारियों के पूरा करने को सुनिश्चित करने में ही गड़बड़ी हो गयी है।

मनोज जी, राजनीति पर लिखने वाले बहुत हैं। सुना है आजकल राजनैतिक दल लोगों को पैसे दे-देकर चिट्ठे लिखवा रहे हैं, वो भी टिप्पणियों के अधिकार को छीनकर। इसीलिये मैं राजनैतिक दलों पर लिखने से बचता हूँ, लेकिन राज"नीति" पर जरूर लिखता हूँ। चिट्ठे के अनुसरणकर्ता बनने के लिये धन्यवाद!