सोमवार, 6 अप्रैल 2009
दूसरे तरह की मिसेज इंडिया
पिछले साल ग्लैडरैग्स मिसेज इंडिया का आयोजन हुआ, जिसमे विवाहित महिलाओं ने भाग लिया। प्रत्याशियों में महिला इंजिनियर, डाक्टर और पुलिस इंस्पेक्टर भी थीं। वैसे तो मैं सौंदर्य प्रतियोगिताओं का खास पक्षधर नहीं, लेकिन वैचारिक तौर पर जानकर अच्छा लगा कि विवाहित महिलाओं के लिये भी "कुछ" किया जा रहा है।
लेकिन पर्दे पर दिखाये जाने वाले सभी दृश्य सच नहीं होते।
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डाक्टर अनूप मिश्रा और डाक्टर आर एम पांडे ने भारतीय प्रौढ़ महिलाओं की सेहत का एक बहुत बड़ा सर्वेक्षण किया था। देश भर में साढ़े चार हज़ार महिलाओं की सेहत का जायजा लिया गया।
परिणाम हैरतअंगेज हैं।
पैंतीस साल से अधिक आयु की शहरों में रहने वाली हर तीन में से एक महिला को मोटापे की बीमारी है। गाँवों मे हर तीन में से एक महिला को भी मोटापे की बीमारी है। मैं इस मोटापे से शरीर की सुंदरता पर आने वाले असर की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं बात कर रहा हूँ मोटापे से होने वाली बीमारियों की। शहरों मे 25% और गांवों में 13% महिलाओं का कौलेस्टरोल निर्धारित मात्रा से अधिक है।
एक डाक्टर होने के नाते मुझे सबसे बड़ा दुख इस आंकड़े को सुनकर हुआ कि 96% महिलाओं में कौलेस्टरोल, रक्तचाप या मधुमेह का खतरा था। ये बीमारियाँ कोई छोटी-मोटी बीमारियाँ नहीं, बल्कि जानलेवा बीमारियाँ होती हैं।
कुछ महीने पहले मैंने आप सबसे कसरत करने का आह्वान किया था। कसरत से न सिर्फ शरीर स्वस्थ रहता है बल्कि दिल भी खुश रहता है। एम्स के इस सर्वेक्षण में पाया गया कि शहर और गांवों की तकरीबन आधी महिलायें हिलती-डुलती नहीं हैं, कसरत तो बहुत दूर की बात है।
कारण जो भी हों, यह साफ है कि भारतीय महिलायें मोटापे की महामारी के ढेर पर बैठीं हैं। भारतीय महिलाओं की सेहत के साथ यह खिलवाड़ सरासर नाजायज है। जब महिला का शरीर अस्वस्थ रहेगा तो महिला-सशक्तिकरण कहाँ से होगा?
इससे बाहर निकलने के लिये क्या करना होगा?
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6 टिप्पणियां:
दौड लगानी होगी, और क्या।
आप कब मिल रहे हो हमारे साथ दौडने के लिये :-)
पिछले एक महीने में सिर्फ चार दिन दौड़ पाया हूँ! बहुत से कार्यक्रम एक साथ चल रहे हैं। यदि दौड़ लगाना शुरू किया तो चिट्ठे लिखने बंद करने पड़ेंगे! आपके ईमेल का इंतजार अभी तक कर रहा हूँ!
सही कहा ... परिणाम हैरतअंगेज हैं ... महिलाओं की अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आवश्यक है।
दौड़ लगाना इस का इलाज नहीं है। वह सिलिसिला कुछ दिन चल कर बंद हो लेता है। इस का इलाज है हम रोजमर्रा के जरूरी कामों मे श्रम का हिस्सा बढ़ाएँ। मिक्सी के स्थान पर बिलौनी से दही बिलोएँ। घर का झाडू़ पोचा महरी के बजाए खुद लगाएँ। छोटी दूरियाँ पैदल तेज चाल से चल कर तय करें आदि आदि।
anil ji , shukriya .
mahilaon ke swasthy ke prti jagrookta lane ke bhi dhanywad.
renu ...
हम तो भई रोज ही व्यायाम करते हैं और भगवान की दुआ और व्यायाम की मेहनत से मोटे भी नहीं हैं याद नहीं कब से करते हैं शायद बचपन से ही :)
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