हम सभी जानते हैं कि चोरी करना बुरी बात है। लेकिन आज आपको कुछ ऐसी चोरियों के बारे में बताऊंगा जो हम सभी कर रहे हैं। नहीं जी, मैं लोकतंत्र इत्यादि के भारी-भरकम मुद्दे नहीं उठा रहा। मैं बात कर रहा हूँ कंप्यूटर के जरिये हमारे द्वारा की जा रही चोरियों की।
चोरी की परिभाषा है किसी दूसरे का माल उसकी अनुमति या जानकारी के बिना अपने पास रख लेना। या हूँ कहिये, "पराया माल हड़पने" को ही चोरी कहते हैं।
ऊपर लगे चित्र को देखिये। यह चित्र मैंने नहीं बनाया है। यह चित्र मैंने अंतरजाल से लेकर यहाँ चिपका लिया है। यह मेरा माल नहीं है, किसी और ने इस चित्र को मेहनत करके बनाया होगा। लेकिन मैंने गूगल बाबा की सहायता से इसे खोजकर यहाँ चिपका दिया। देखने वाले को यदि अच्छा लगा, तो कहेगा, "वाह अनिल, क्या चित्र लगाया है"। लेकिन यह वाहवाही उसको मिलनी चाहिये थी जिसने इसे बनाया था। तो यह सरासर चोरी ही हुई न?
दूसरी चोरी जो हम सब आजकल धड़ल्ले से कर रहे हैं, वह है संगीत की। उदाहरण के लिये रहमान को कई लाख रुपये देकर फिल्म निर्माता ने धुन लिखवायी, पैसे देकर गायकों से गाना गवाया, कैसेट-सीडी बनवायीं। यदि कोई उस संगीत को कैसेट-सीडी खरीद कर सुने, तो फिल्म निर्माता को अपना लगाया हुआ पैसा वापस मिलेगा। लेकिन यह क्या, किसी ने उसी संगीत को YouTube पर डाल दिया। अब उसकी कैसेट सुनने की बजाय लोग YouTube पर ही सुने जा रहे हैं। उस गाने को हमने अपने ब्लाग पर जगह देकर अपने दोस्तों को भी चोरी का भागीदार बना दिया!
तीसरी चोरी जो कंप्यूटर जगत में हो रही है, वह है सॉफ्टवेयर की। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने लाखों डॉलर देकर इंजीनियरों से "Windows" नामक सॉफ्टवेयर बनाया। "अडोबी" नामक कंपनी ने भी लाखों डॉलर की लागत से "फोटोशॉप" बनवाया। लेकिन जब हम दुकान से कंप्यूटर खरीदते हैं तो उसे कह देते हैं कि विंडोज़ और फोटोशॉप डालकर ही देना। विंडोज़ यदि हम खरीदने निकलें तो कम से कम तीन-चार हज़ार रुपये की सीडी मिलेगी। फोटोशॉप तो पैंतीस हज़ार में मिलता है। लेकिन हमने दिया ज़ीरो अंडा। तो यह हुयी सॉफ्टवेयर की चोरी।
जब चिट्ठों की चोरी पर इतना विवाद खड़ा हो सकता है, तो इन चीजों की चोरी पर हमारा ध्यान क्यों नहीं जा रहा है?
कंप्यूटर से जुड़ी इन "वस्तुओं" के दाम अक्सर पश्चिमी बाजारों को ध्यान में रखकर तय किये जाते हैं। लेकिन भारत में उन दामों पर इन्हें कोई नहीं खरीदेगा। पैंतीस हज़ार रुपये तो आजकल न्यूनतम गुजारा भत्ते की तरह हो गया है, इसमें कोई एक सीडी कौन खरीदेगा? जब तक पश्चिम में बनने वाले सॉफ्टवेयर, संगीत इत्यादि के दाम कम नहीं होंगे, तब तक भारत में उनकी "चोरी" ही होती रहेगी।
इस "बौद्धिक संपदा" की चोरी से कैसे बचें?
आसान है। ब्लाग पर चित्र चिपकाने के लिये कुछ ऐसी साइट हैं जहाँ लोगों ने चित्र बनाकर मुफ्त में आपके लिये रखे हैं, ताकि आप उन्हें इस्तेमाल कर सकें। इन्हें बनाने वालों ने या तो इनका कापीराइट अधिकार माफ कर दिया है, या फिर आप इन्हें इस शर्त पर इस्तेमाल कर सकते हैं कि इन चित्रों की काँट-छाँट नहीं की जायेगी। कुछ तो यह भी कह देते हैं कि काँट-छाँट भी कर लो, लेकिन ब्लाग पर "साभार" मेरा नाम ज़रूर डाल देना। मैं मुफ्त के चित्र यहाँ से उठाता हूँ।
ज़रूरी नहीं कि अंतरजाल पर आपको जो भी संगीत मिले वह वाकई में मुफ्त हो। मुफ्त संगीत के लिये भी ऐसी ही कई साइट हैं, जहाँ जाकर आप संगीत डाउनलोड कर सकते हैं। शुरुआत यहाँ से कर सकते हैं। यदि खुद के सुनने के लिये संगीत चाहिये तो रेडियो भी बहुत अच्छा माध्यम है। अंतरजाल पर भी कई रेडियो की साइट हैं, जैसे कि पंडोरा।
सॉफ्टवेयर की चोरी से बचने के लिये भी ऐसे ही मुफ्त सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किये जा सकते हैं, जिन्हें हमारे जैसे लोगों ने ही जनता के लिये बनाकर मुफ्त में उपलब्ध करवा दिया है। विंडोज़ न इस्तेमाल करके उबुंतू इस्तेमाल कीजिये। कंप्यूटर तेज़ तो चलेगा ही, वायरस की भी दिक्कत नहीं आयेगी! (उबुंतू के बारे में बाद में विस्तार से बताउंगा)। फोटोशॉप न इस्तेमाल करके जिंपशॉप इस्तेमाल कीजिये। इस पन्ने पर ऐसे ही मुफ्त सॉफ्टवेयरों की सूची दी गयी है। इनमें से कुछ तो महंगे सॉफ्टवेयरों से भी अच्छे हैं!
अंत में कहना चाहता हूँ, जो चित्र मैंने ऊपर चिपकाया है, वह चोरी का नहीं है। वह एक मुफ्त साइट से लिया गया है। आप भी ऐसी ही मुफ्त साइटों से अपने ब्लाग के लिये चित्र लें!
मुफ्त इस्तेमाल करते हुये भी चोरी से बचना संभव है!
रविवार, 12 अप्रैल 2009
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9 टिप्पणियां:
अनिल भाई , हम सभी चोर हैं कुछ न कुछ तो चुराते ही हैं सही लिखा आपने । हम सब यह कभी सोचते ही नहीं शायद । फ्री में काम हो जाये चाहे तरीका गलत ही क्यों न हो । सधी हुई पोस्ट बहुत पसंद आयी ।
उबुन्टू ही क्यौं, आप लिनेक्स का कोई भी डिसट्रीब्यूशन ऑपरेटिंग सिस्टम के लिये प्रयोग करें - किसी को भी प्रयोग करने से बौद्धिक सम्पदा अधिकार का हनन नहीं होता।
विंडोज़ में भी मुक्त सॉफ्टवेयर के प्रोग्राम प्रयोग करें इसमें भी बौद्धिक सम्पदा अधिकार का हनन नहीं होता। फोटो शॉप के लिये जिम्प का प्रयोग करें। यह लिनेक्स और विंडोज़ दोनो पर चलता है। इसी तरह ओपेनऑफिस डॉट ऑर्ग का ऑफिस स्वीट है, ऑडियो फइलों के संशोधन के लिये ऑडेसिटी है।
मैं आपकी दूसरी बात से पूरी तरह से सहमत नहीं हूं। मेरे विचार से इसके बाद वाले भाग के बारे में कुछ और कहा जा सकता है। मैंने इसके बारे में गोलमाल है भाई गोलमाल नामक चिट्ठी में लिखा है। आप शायद इसे भी देखना चाहें।
आपने अपनी चिट्ठी में पहली बात सही लिखी है पर मेरे विचार से आप यदि लिंक दे कर चित्र का प्रयोग (जैसा कि मैंने इसी चिट्ठी में किया है) करते तो इसमें कोई गलत नहीं है। लिंक देने से उस चिट्ठी की अन्तरजाल में महत्व बढ़ता है।
बौद्धिक संपदा वास्तव में सामाजिक संपत्ति है। उस पर पहरा लगाया है उन लोगों ने जो उस से भी आर्थिक लाभ कमाना चाहते हैं। इंटरनेट के इस युग में बौद्धिक संपदा का इस्तेमाल होने से कोई भी व्यवस्था नहीं रोक सकती। यह मामला इतना गंभीर है कि आधी दुनिया पुलिसमेन बन जाए तब भी इसे रोका जाना संभव नहीं है। यहाँ तो बस एक ही सिद्धान्त चल सकता है वह है, यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद रखे। अब भला इंटरनेट पर कोई अपने सामान की सुरक्षा कर सकता है?
फिर अभी तक यह एक दीवानी मामला है। आप को चोरी की खबर लग जाए तो आप जूझिए न्याय व्यवस्था से। जो मोटी चीजों के चोर उच्चक्कों से तो निबट नहीं पा रहे हैं। फिर यह चोरी नहीं है। यह कॉपीराइट का उल्लंघन है। प्लीज इसे चोरी कहना तो बंद करें।
अनिल जी,
कुछ चोरियां प्यारी-प्यारी सी होती हैं, जैसे किसी का दिल चुराना, किसी की नींद चुराना, किसी का चैन चुराना। ये तथाकथित चोरियां भी शायद उसी "कैटेगरी" में आती हैं।
ठीक कहा आपने.......चाहे कैसी भी हो, आखिर चोरी तो चोरी ही कहलाऎगी.
दिनेशराय जी से सहमत, यह कॉपीराइट का उल्लंघन है न की चोरी. यह बौद्धिक सम्पदा का बिना अनुमति इस्तेमाल का मामला है, इसे चोरी या लूट नहीं कहा जा सकता.
अनिल जी अच्छे विचार लिखे है । मै तो चोरी करता हू लेकिन साथ मे चोरी वाली जगह भी बता देता हू । अभी तक तो किसी ने आपत्ति नही की है । जब भी कोई आपत्ति करेगा हटा देंगे ।
hello anil, Main aiims mein mbbs chaatr hun aur aapko facebook duara jaana. AApka blog bahut dilchasp paaya aur jaankari aur ek progressive drishtikon se bharpoor. Halanki angrezi mujhe kaafi achchi lagti hai ,hindi aur apni matr bhasha se mujhe bahut pyar hai.
AApki anya post bhi dekhi.Maza aa gaya ki hamare college ka senior itna achcha likhta hai(no irony intended). Apne seh-AIIMSonians mein aapke blog ki zaroor charcha karoonga, taaki aapke pearls of wisdom ka woh bhi fayda utha sake. Satsriakal
hello anil, Main aiims mein mbbs chaatr hun aur aapko facebook duara jaana. AApka blog bahut dilchasp paaya aur jaankari aur ek progressive drishtikon se bharpoor. Halanki angrezi mujhe kaafi achchi lagti hai ,hindi aur apni matr bhasha se mujhe bahut pyar hai.
AApki anya post bhi dekhi.Maza aa gaya ki hamare college ka senior itna achcha likhta hai(no irony intended). Apne seh-AIIMSonians mein aapke blog ki zaroor charcha karoonga, taaki aapke pearls of wisdom ka woh bhi fayda utha sake. Satsriakal
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