पहले जब मेरा अंगरेजी चिट्ठा हुआ करता था, तब १० पोस्ट पर कोई एक टिप्पणी आती थी। लेकिन जब से हिंदी चिट्ठा शुरू किया है, १ पोस्ट पर १० टिप्पणियाँ आने लगी हैं। मैं सिर्फ अकेला ही नहीं हूँ, दर्जनों ऐसे ब्लाग हैं जिनपर कुछ भी लिख दिया जाये, टिप्पणियों का अंबार लगते देर नहीं होती। जब इतनी अधिक टिप्पणियाँ हों, तो एक आदर्श टिप्पणीकार संहिता बनाना भी जरूरी हो जाता है न?
आदर्श टिप्पणीकारिता के बारे में मेरे यह विचार हैं:
१) मूल पोस्ट का विषय ध्यान में रखें
यह सबसे पहला नियम है, खेद की बात है यह भी कहना पड़ रहा है। कई चिट्ठों पर विषय से परे टिप्पणियाँ देख चुका हूँ। इनमें से कुछ तो अत्यंत दर्दनाक होती हैं। एक प्रतिष्ठित साहित्यकार के इंतकाल पर यदि टिप्पणी के तौर पर "सुंदर" लिखा जाये तो इसे आप क्या कहेंगे?
२) टिप्पणी की लंबाई ध्यान में रखें
जितने कम शब्दों में आप अपनी बात कह सकते हैं, उतना फायदा है। लिखने वाले को भी सहूलियत होती है, और पढ़ने वाले को भी कम समय में बात पता चल जाती है। हाँ, कभी-कभी टिप्पणी में लंबी बात कहना आवश्यक हो जाता है। उदाहरण के लिये अनिल कान्त जी ने अपनी एक कहानी सुनायी, तो उसके जवाब में मैंने भी अपनी एक कहानी सुना डाली, जिसे आप उस पोस्ट के नीचे पढ़ सकते हैं। वैसे तो मैं इसपर अपनी भी एक पोस्ट ठेल सकता था, लेकिन विषय अनिल कान्त जी की पोस्ट पर उपयुक्त था, तो मैंने वहीं पर एक बहुत लंबी टिप्पणी दे मारी। इससे टिप्पणी पढ़ने वालों को एक नया अनुभव भी हुआ होगा।
३) सभ्य भाषा का प्रयोग करें
खेदजनक है कि पिछले कुछ दिनों में कुछ बहुत ही बेहूदा टिप्पणियों के दर्शन हुये हैं। पढ़े-लिखे लोगों के द्वारा अपमानजनक भाषा का प्रयोग न सिर्फ उनके व्यक्तित्व की झलक देता है, बल्कि हिंदी लेखन का अपमान भी है। यदि किसी से खुंदक निकालनी ही है तो शालीनता से आलोचना कीजिये, लोगों को पढ़ना भी रास आयेगा। और यदि आपकी "भाषा ही ऐसी है" तो फिर लेखक को गोपनीय ईमेल के जरिये संपर्क करें ताकि सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी न फैले। आपकी टिप्पणी आपके व्यक्तित्व का आईना है।
४) पोस्ट का लेखक मंझा हुआ है या नया है?
कई बार मुझे किसी मंझे हुये चिट्ठाकार का कोई लेख बहुत पसंद आता है लेकिन पहले से ही लोगों की वाहवाही की टिप्पणियों का ढेर लगा होता है। तो मैं उस लेख को अपने दोस्तों को ईमेल के जरिये भेजकर उसका प्रचार कर देता हूँ, लेकिन टिप्पणी नहीं करता क्योंकि मेरे "बहुत सुंदर" टिपियाने से कुछ नयी सूचना नहीं जुड़ेगी। हाँ, नये लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिये मैं अपनी टिप्पणी जोड़ने से बाज नहीं आता। जब मैं नया था तो मेरा भी इसी तरह प्रोत्साहन किया गया था, तो मेरा भी फर्ज बनता है कि नये चिट्ठाकारों की हौसलाअफजाई करूँ।
५) असहमति से पहले सहमति
यदि कोई पोस्ट आपको बहुत बुरी लग रही है और आपने उसको नेस्तनाबूद करने वाली टिप्पणी छोड़ने का इरादा कर लिया है, तो एक क्षण रुकिये। उस पोस्ट को दोबारा पढ़कर यह देखिये कि आपको "सहमति" किन बिंदुओं से है। टिप्पणी की शुरुआत यदि आप सहमत बिंदुओं से करेंगे तो एक "विकासशील" टिप्पणीकर्ता कहलायेंगे, नहीं तो निर्मम आलोचक ही बनकर रह जायेंगे।
६) स्वप्रचार की हदें
कई बार लोग अपनी हर टिप्पणी में अपना एक लिंक देकर आपको उसपर चटका लगाने के लिये अनुरोध करते हैं। यदि लिंक पोस्ट के मूल विषय से संबंधित है, और पाठकों को अतिरिक्त जानकारी प्रदान करता है, तो ठीक है। कुछ लोग टिप्पणी के अंत में अपने चिट्ठों के लिंक "हस्ताक्षर" की तरह भी उपयोग करते हैं, मुझे इसमें भी कुछ बुराई नहीं दिखायी देती। लेकिन एक ही टिप्पणी हर जगह देकर लोगों से अपने चिट्ठे पर चटकाने की याचना करना थोड़ी बचकानी हरकत लगती है। अत्यधिक स्वप्रचार से बचें।
७) विवादित विषयों से बचें
कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन्हें भुनाया जा सकता है, लेकिन इनपर विवाद भी खड़े होते हैं। मैं ऐसे कुछ विवादित विषयों से बचने की हरसंभव कोशिश करता हूँ। उदाहरण के लिये मैंने परमाणु संधि विषय पर बहुत टिप्पणियाँ नहीं की क्योंकि वह एक बहुत विवादित विषय था। उसी तरह से वरुण गाँधी पर भी मैं टिपियाने से बचा क्योंकि वहाँ भी विवाद का कटघरा हाजिर था। यदि मैं इन विषयों पर टिप्पणी करता तो मेरी भी टांग खींची जाती।
८) टिप्पणी की सदस्यता जरूर लें
आपने टिप्पणी कर तो दी। लेकिन उस टिप्पणी पर भी कुछ लोग बाद में उसी पोस्ट पर टिप्पणियाँ करते हैं। उनसे अवगत रहने के लिये टिप्पणी की ईमेल सदस्यता जरूर लें, ताकि पता चलता रहे की आपकी टिप्पणी पर क्या प्रतिक्रिया हुई।
९) टिप्पणी कर्मभाव से करें, फलभाव से नहीं
इस लेख के लिखे जाने के बाद यह संपादन किया गया है। श्री रजनीश परिहार जी कहते हैं कि "यदि आपको पोस्ट अच्छी लगे तो ही.. टिप्पणी करे ...बदले में मुझे भी टिप्पणी मिलेगी ,की भावना ना रखे ,यही ठीक है.."। मैं उनसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ। यही गीता का सार भी कहता है!
१०) अपने गिरेबान में जरूर झाँककर देखिये
हमेशा यह जरूर देखिये कि यदि वही टिप्पणी कोई आपके चिट्ठे पर छोड़ेगा तो आपको कैसा लगेगा?
नीचे टिप्पणी करने का लिंक दिया हुआ है, अभी से "प्रैक्टिस" शुरू कर सकते हैं!
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
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34 टिप्पणियां:
ये तो अविवादित सुनहले नियम हैं ! शुक्रिया !
आपने अच्छी ग़ज़ल लिखी है मेरे ब्लॉग पर भी आईये , अच्छा व्यंग है मेरे ब्लॉग पर भी आइये . ऐसी टिप्पणिया विचलित कर देती है . मेने अपने प्रिये मित्र की म्रत्यु के बारे मे लिखा तो ऐसी ही टिप्पणी से मुलाक़ात हुई थी .
टिप्पणी करूं मतलब क्या करूं :)
अच्छी जानकारी रोचक ढंग से।
५) असहमति से पहले सहमति - आपके इस बिन्दु पर दिये गये विचारों ने मन को संतोष दिया ।
अब निश्चित ही मैं संतुष्ट होकर अपने ब्लॉग पर टिप्पणीकारी केन्द्रित अपने आलेख को (जो क्लिष्टता के कारण अस्वीकृत (?) हो चुका है )पूरा कर पाउंगा ।
यदि आपको पोस्ट अच्छी लगे तो ही.. टिप्पणी करे ...बदले में मुझे भी टिप्पणी मिलेगी ,की भावना ना रखे ,यही ठीक है..
हिमांशुजी, आपके "टिप्पणी" विषय पर विचार पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आपको एक नया ब्लाग शुरू कर देना चाहिये: tippanicharcha.blogspot.com. अभी चटका लगाकर सुरक्षित कर लें। आपकी कल की प्रविष्टि क्लिष्ट नहीं हुयी, क्योंकि लेख की गुणवत्ता के टिप्पणियों की संख्या से कोई लेना-देना नहीं होता। तो बस लिखते रहिये।
रजनीश जी, आपकी टिप्पणी बहुत पसंद आयी। मूल लेख को संशोधित करके आपके नाम-समेत लिख दी गयी है। धन्यवाद!
बहुत सही लिखा .. धन्यवाद।
आपकी इस टिप्पणीकार परिक्षा में मुझे कितने अंक मिले ? :-)
टिप्पणी चिट्ठाजगत की जान है . विवादित विषय ही ज्यादा विवाद का कारण बनते हैं . अगर किसी टिपण्णी को पढ़कर आप आंदोलित हो जाते हैं तो कुछ गहरी साँसे लें , कुछ चहलकदमी करें, इसके बाद भी अगर मन शांत न हो तो अपनी टिप्पणी लिखकर किसी मित्र को भेज दें :)
jab tak aap likhi hui post mae kuch ghataa yaa badhaa nahin saktey
yaa
jabtak aap post kisi vivadit baat par apna paksh nahin raktey tab tak
bahut sunder , bahut achcha , likhtey rahey ityaadi kehna kewal aur kewal tippni karna hota ahaen
भाई मै आपसे सहमत हूँ पहले खुद के गरेबान में झांक कर देखना चाहिए फिर सौम्य भाषा का प्रयोग कर टिपण्णी लिखनी जाना चाहिए वो भी इस तरह की हो कि सामने वाले को बुरा भी न लगना चाहिए . बहुत बढ़िया पोस्ट झकास बधाई
अपना टिप्पणी करने का कोई नियम नहीं। जो पोस्ट पढ़ी उसी पर टिप्पणी करते हैं. जो मन में आता है टिप्पणी करते हैं। लोग बुरा मानें या भला मानें। हाँ इरादा कभी बुरा नहीं होता।
धार्मिक और राजनैतिक मामलों में टिप्पणी करने से बचता रहा हूँ। यही ठीक भी लगता है विवाद से बचने के लिए। विवाद हो ही जाते हैं इसके बावज़ूद। :-)
सही बात! आप तो यह पढ़ें जी!
??
ब्लाग पोस्टों पर दिखाई देती टिप्पणियों को लेकर कई बार यह तो लगता है कि बिना कुछ नया जोडे टिप्पणीकार ने सिर्फ़ अपनी उपस्थिति को दर्ज करने के लिए टिप्पणी की है और इसके पीछे ज्यादातर ऎसा ही मंतव्य होता भी है। इसलिए ऎसी टिप्पणियों को गैर जरूरी सा मानने लगता हूं। पर जब कभी सोचता हूं तो लगता है कि ऎसी टिप्पणियों की भी जरूरत है, खास तौर पर हिन्दी ब्लागिंग को जिन्दा रखने में ऎसी ही टिप्पणियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं जो भविष्य में, अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण रेखांकित की जाएंगी।
आम समस्याओं से नजर चुरा लेने कि हमारी प्रवृति ही हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होने देती. अमेरिका की बात और है और हमारी और . वहां व्यापक भ्रष्टाचार नहीं था लेकिन अब तो लोग identity भी चुराने लगे. इसका क्या प्रभाव होता है ये तो अनिल जी ही बता पाएंगे . भारत में तो identity फ्री में मिलती है , किसीकी फोटो किसी का नाम, कोई नहीं पूछता आपका जन्म स्थान.
आपने सच कहा है ...मेरी कहानी के प्रत्युत्तर में आपने जो टिपण्णी कि थी ...मुझे निजी तौर पर बहुत अच्छा लगा था ...दिल खुश हो गया था मेरा ....आपका ये लेख मुझे वाकई बहुत पसंद आया ....
दिलचस्प!
दीपक भारतदीप
बहुत ही संतुलित और सुन्दर आलेख.
कर्म भाव से कह रहा हूँ
भाई की आपने बड़े काम की
बातें कही हैं....उपयोगी पोस्ट.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
nice post sir ji...
आपकी सारी हिदायतें अच्छी हैं। वैसे तो मैं पहले से काफी हद तक इनका पालन करता आया हूं। आगे और भी रखूंगा। अच्छा, अब उम्मीद करता हूं कि आप भी एक अच्छे टिप्पणीकार की तरह मेरे ब्लाग पर आएंगे और बिना टिपियाए नहीं जाएंगे। शुक्रिया।
सही है गुरूजी।
सर जी, ग़िरेबाँ में झाँकने के लिये मुझे कमीज़ कुर्ता आया कुछ ऎसा ही पहनना पड़ेगा, न जी ?
पर, मैंनें तो उतार रखा है, पोस्ट लिखते समय इन्हें उतार देने का प्राविधान पाया गया है !
वैसे भी ब्लागजगत के अंदर और बाहर आजकल बड़ी गरमी है !
यदि मैं ग़िरेबाँ में झाँक ही लेता, तो क्या दिखता, जी ?
इतनी विस्तृत टिप्पणीकर्ता चर्चा और संहिता बन ली और हमारा जिक्र तक गुम!! गज़ब हो गया..हे प्रभु, ये क्या देख रहा हूँ मैं?? :)
उड़न तश्तरी जी, आपका नाम लिये बिना हिंदी चिट्ठाजगत की टिप्पणी आचार संहिता कैसे बन सकती है? बिंदु चार में कहीं आप छिपे हैं, बस नाम नहीं लिखा ताकि किसी को आपपर बाण चलाने का मौका न मिले। आप वाकई वे "उड़न तश्तरी" हैं जो हर ब्लाग पर जाकर टिप्पणी-रूपी प्रसाद मुफ्त में छोड़कर ब्लागरों का उत्साह बढ़ाती है। और आजकल आप टिप्पणी के साथ साथ बोनस स्माइली भी छोड़ने लगे हैं :)
राज भाटिया जी आजकल कुछ व्यस्त हैं, नहीं तो वे भी शीर्ष टिप्पणीकारों में आते हैं। दिनेशराय द्विवेदी जी भी बिलकुल सीधी-सीधी टिप्पणी लिखने वालों में से हैं। कौतुक उन लोगों में से हैं जो लेख से भी अधिक लंबी टिप्पणी करने से नहीं सकुचाते, क्योंकि हर बिंदु पर विस्तार से विवेचना करने से मूल लेख में कुछ जुड़ता ही है। बाकी हिंदी ब्लागजगत में इतने सारे अच्छे टिप्पणीकर्ता मौजूद हैं कि यदि उन सबके नाम लिखने लगा तो नामों से ही पोस्ट भर जाती।
मूलत: यह पोस्ट आजकल टिप्पणियों के गिरते स्तर को देखते हुये लिखी गयी थी, कुछ हद तक व्यंग्य भी समझ सकते हैं, कुछ हद तक कटाक्ष भी। जिसने जो समझना हो, समझ ले!
मैं चला अगला लेख लिखने!
कमेन्ट फ़ालो-अप में अपने मेल बक्से से फिर यहाँ आया हूँ,
मेरा कटाक्ष केवल इतना ही है, डाग्तर बाबू, कि
अपने गिरेबाँ में कौन ईमानदारी से झाँकना ही चाहता है ?
जबकि पोस्ट लिखते समय, लोग जैसे कफड़ा तार तार करने पर उद्य्त हो उठते हैं !
आशा है, कि मेरा मँतव्य कुछ अधिक स्पष्ट हो सका होगा
लगता है कि अंग्रेजी ब्लोगों की टिपण्णी से पेंट के करीज़ खराब हो जाती होगी...हिंदी वाले ठेठ हैं..
Or may be they suffer form tight upper lip syndrome.
बहुत अच्छा लेख है। मेरे जैसे नए ब्लोगरों के लिए इसमें काफी उपयोगी संकेत हैं। खास करके पोइंट-2 मुझ पर लागू होता है। मैं बहुत ही लंबी-लंबी टिप्पणियां लिखता रहता हूं। आगे से सावधान रहूंगा।
अच्छा टिप्पणीकार सच्चे मन से सुधार की गुंजाइश बताने वाली बात लिखता है, मात्र छिद्रान्वेशी नहीं होता है। ब्लॉग का जन्म तो निजी विचार को व्यक्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के रूप में हुआ था। अब तो लोगों ने इसका क्षेत्र इतना विस्तृत बना दिया है कि कुछ भी लिखा या पोस्ट किया जा सकता है। अब आदर्श मान ही कौन रहा है। आदर्श मानने वाले को अव्यावहारिक करार दे दिया जाता है।
आपने तो सद्प्रयास किया है।
साधुवाद,
डॉ. दलसिंगार यादव
निदेशक
राजभाषा विकास परिषद
नागपुर
rvp@rvparishad.org
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